डॉ मुकुल तिवारी ने कहा कि श्री अन्न की खेती अधिक श्रम वाला है जबकि गेहूं और चावल में मेहनत कम लगती है लेकिन गेहूं चावल खाने के बाद हम लोग रक्तचाप और मधुमेह जैसी बीमारियों से ग्रसित हो रहे हैं उन्होंने भोजन में रागी, सांवां, कोदो, काकुन, छोटी कंगनी, रामदाना, ज्वार, बाजरा जैसे श्री अन्न भोजन को शामिल करने की अपील की।
कृषि विज्ञान केंद्र वैज्ञानिक डॉक्टर अर्चना सिंह ने अध्यापकों से कहा कि मिड डे मील में श्री अन्न भोजन को शामिल करें। बच्चों को खिलाएं। रागी, सांवां, कोदो, काकुन, छोटी कंगनी, रामदाना, ज्वार, बाजरा आदि से बनने वाले भोजन के विषय में विस्तृत जानकारी दी और होने वाले लाभ के विषय में भी बताया। श्री अन्न से रोटी, चावल के अतिरिक्त बिस्किट, नमकीन, मट्ठी, डोसा, सैंडविच, खीर, पुलाव, खिचड़ी, लड्डू, पेड़ा, बर्फी भी बनाया जा सकता है।
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दो प्रकार से इस्तेमाल किए जा सकते हैंडॉ रंजन द्विवेदी ने बताया कि श्री अन्न दो प्रकार होते हैं। पहले जिसे हम चावल के रूप में इस्तेमाल करते हैं। जैसे सांवां, कोदो, काकून, छोटी कंगनी, कुटकी, ज्वार, बाजार, कुट्टू का आटा के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं। जबकि ज्वार, बाजरा, सांवां, कोदो को हम पुलाव, खिचड़ी तथा मसालेदार चावल बनाकर भोजन में शामिल कर सकते हैं। इस मौके पर कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉक्टर ए के सिंह, डॉक्टर रत्ना सहाय, डॉक्टर धीरज तिवारी, डॉक्टर सुनील द्विवेदी सहित राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन योजना के जनपदीय तकनीकी सहायक आदि भी मौजूद थे।