क्षिप्रा (kshipra river) किनारे करीब 2000 साल पुराना श्री अवंति पार्श्वनाथ जैन तीर्थ (Shree Avanti Parshwanath Jain Tirth) है। मंदिर देश के 108 मंदिर तीर्थ में शामिल हैं। यह प्रतिमा चमत्कारी बताई जाती है। इसे लेकर लोक प्रचलित है कि शिवलिंग नुमा मिट्टी के टीले से भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा स्वत: प्रकट हुई थी। इसकी पहचान तत्कालीन समय में आचार्य सिद्धसेन दिवाकर महाराज ने की थी।
श्री अवंति पार्श्वनाथ जैन श्वेतांबर मूर्ति पूजक मारवाड़ी समाज ट्रस्ट के अध्यक्ष अशोक कोठारी का कहना है, यह प्रतिमा 2 हजार वर्ष से अधिक पुरानी है। प्राचीन काल में मूर्तियों को सुरक्षित रखने के लिए जमीनों में दबा दिया जाता था। कालांतर में वह मिट्टी का टीला शिवलिंग जैसी आकृति जैसा नजर आने लगा।
मान्यता है कि एक बार आचार्य सिद्धसेन दिवाकर भ्रमण करते हुए उज्जैन पहुंचे। उन्होंने तपोबल से जान लिया कि मिट्टी के शिवलिंग नुमा टीले में भगवान पार्श्वनाथ का वास है। वे अंदर जाने लगे तो द्वारपालों ने रोककर कोड़े मारे। किवदंति है कि चोट के निशान सम्राट की रानियों के शरीर पर उभर रहे थे। इसके बाद सम्राट ने आचार्य से क्षमा मांगी। इसके बाद शिवलिंग फटा, परतें उतरती गईं और भगवान की प्रतिमा प्रकट हुई।
मान्यता: ऐसे प्रकट हुई प्रतिमा
अवंति पार्श्वनाथ मंदिर परिसर में शिव मंदिर भी है। जैन मान्यताओं के अनुसार मंदिर में स्थापित मूलनायक भगवान पार्श्वनाथ की यह प्रतिमा शिवलिंग से प्रकट हुई थी। यह घटना सम्राट विक्रमादित्य के समय की बताई गई है। 1761 में प्रतिमा को पुन: स्थापित किया गया था। मंदिर स्थापित करने की लंबी कहानी जैन परंपरा में प्रचलित है। इस पुराने मंदिर का 12 साल में जीर्णोद्धार कर 2019 में प्रतिष्ठापन महोत्सव धूमधाम से मनाया गया था।