इतना ही इनके ममत्व पर कवि व्यास की ये पंक्तियां सटीक बैठती हैं… ‘मां संवेदना है, भावना है, अहसास है।
मां जीवन के फूलो में खुशबू का वास है।
मां रोते हुए बच्चे का खुशनुमा पलना है।
मां मरुस्थल में नदी या मीठा-सा झरना है।’
मां जीवन के फूलो में खुशबू का वास है।
मां रोते हुए बच्चे का खुशनुमा पलना है।
मां मरुस्थल में नदी या मीठा-सा झरना है।’
संगीता ने दो बच्चियों को मां यशोदा की तरह पाला…
उज्जैन जिले के अलकधाम डिस्पेंसरी में नर्सिंग ऑफिसर एसोसिएशन की जिला अध्यक्ष संगीता शर्मा पदस्थ हैं। वह बताती हैं, वर्ष 2001 की बात है, उस समय अनाथ बच्चों को मेटरनिटी वार्ड में रखते थे। मैं अनाथ बच्चों को ब्रेस्टफीडिंग कराती थी। पब्लिक ट्रांसपोर्ट से जैसे-तैसे उन बच्चों के पास पहुंचती और केयर करती थी। मैंने दो गर्ल्स चाइल्ड बेबी की ब्रेस्टफीडिंग और उनका मां की तरह पूरा ख्याल रखा। कुछ दिनों बाद उन दोनों को गोद ले लिया। वे आज बड़ी हो चुकी हैं, स्वस्थ हैं। कोरोना काल में मरीज के घर वाले मरीज को वार्ड में छोड़कर चले जाते थे। उनके पास जाना से डरते थे, तब मैं उन्हें दवा, पानी अपने हाथ से देती थी। यह सेवा ही नर्स को मां जैसा सम्मान दिलाती है। मैं हार्ट पेशेंट हूं और कोरोना काल में पॉजिटिव हो गई थी। सेवा के जज्बे के कारण मेरी दोनों बेटिया डॉक्टर बन चुकी हैं।
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ममता और मां यशोदा की पर्याय हैं रुनीजा की सिस्टर मंजुला
रुनीजा. वर्तमान दौर में बहू-बेटी की डिलीवरी के लिए बड़े शहरों के अस्पतालों में ले जाते हैं लेकिन रुनीजा जैसे उपस्वास्थ्य केंद्र में सिस्टर मंजुला निगम के पास दूर-दराज के ग्रामीण क्षेत्रों से डिलीवरी के लिए पहुंचते हैं। यही वजह है, इस केंद्र में महीने की 50 से अधिक डिलीवरी और साल की लगभग 500 डिलीवरी हो जाती है। इतनी डिलीवरी बड़नगर तहसील के नगर को छोड़कर अन्य किसी भी केंद्र पर नहीं होती है। सिस्टर मंजुला निगम कुशल चिकित्सक की तरह डिलीवरी के कार्य को अंजाम देती है। दीदी ने कई जुड़वा बच्चों की नार्मल डिलीवरी करवाई है। जननी मां के पास सुलाकर स्वयं खड़े रहकर मां को स्तनपान के लिए गाइड भी करती हैं। बिजली की समस्या के चलते लालटेन तथा मोमबत्ती की लाइट में भी सफल डिलीवरी करवाई है। 2007 जब जबसे जननी सुरक्षा योजना के अंतर्गत रुनीजा डिलीवरी पाइट चालू हुआ। रुनीजा ही नहीं आसपास के सैकड़ों गांव जहां तक की रतलाम बदनावर तथा खाचरौद तहसील तक के कई परिवार अपने गर्भवती यहां डिलीवरी करने आते हैं।
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पति को गुजरे 37 साल हो गए, दो बेटे भी चले गए, अब इन बच्चों में अपने बेटों को देखती हूं
देवकला बाई, 19 साल से मातृछाया में सेवा दे रही हैं। उन्होंने बताया जैसे अपने बच्चों की सेवा करते हैं, वैसे ही दूसरों के बच्चों की करती हूं। मेरे जीवन में बहुत उतार-चढ़ाव आए, लेकिन हिम्मत नहीं हारी। एक बेटा मेरा 30 साल का था, एक्सीडेंट में चला गया। उसकी शादी को केवल तीन साल ही हुए थे। यह दुख मेरे लिए पहाड़ जितना बड़ा था। पति को गुजरे 37 साल हो गए। मेरे अपने बच्चों को वे मेरी गोदी में दूध पीता छोडक़र चले गए। ये दुख किस से जाकर कहूं। चार बेटे और एक बेटी थी, जिसमें दो बेटे काल के गाल में समा गए। मातृछाया में इसीलिए इस उम्र में भी काम कर रही हूं क्योंकि इन बच्चों में मुझे अपने बच्चे नजर आते हैं। इनके लालन-पालन और उनके साथ खेलते हुए मैं सारा दुख भूल जाती हूं। यही सोचती हूं कि इनका भी इस दुनिया में कौन है, अपने लिए तो सब करते हैं, लेकिन इनका कौन है। मेरा तो यही कहना है कि जो दूध पिलाए, वो मां है। यह अलग बात है कि जनम कहां लिया, पाला किसी ओर ने और बड़ा होकर जाएगा कहां…किसी को कुछ नहीं पता।