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आशियाना बनाना हुआ महंगा, एक साल में डेढ़ गुना हो गए इंट, सीमेंट, रेत के दाम…

गिट्टी, सरिए में भी उछाल, कोरोना महामारी के दौर में दम तोड़ती पारिवारिक अर्थव्यवस्था में टूट रहा है अपने घर का सपना

उज्जैनDec 13, 2021 / 08:43 pm

Hitendra Sharma

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उज्जैन. हर व्यक्ति का अपना घर बनाने का सपना होता है। धनाढय वर्ग को छोड़ दें तो सामान्य और गरीब तबका बहुत मेहनत और समय के साथ इस सपने का साकार कर पाता है, लेकिन कोरोना ने हर वर्ग को आफत में डाल दिया। एक तो महागारी की यार से अर्थव्यवस्था बिगड़ी; अब घर निर्माण सामग्री के आसमान छूते भाव आशियाने के सपने को चकनाचूर कर रहे हैं।

रेत, ईंट, गिट्टी, सीमेंट, सरिया, डस्ट के भाव एक साल में सवा से डेढ़ गुना हो गए। जो सरिया एक साल पहले 4 हजार रुपए क्रिटल था वह अब बढ़कर 6200 रुपए क्रिंटल हो गया। यही हाल बालू रेत के हैं। पहले यह 40 से 45 रुपए फीट में आती थी, जो अब बढ़कर 60 रुपए फीट हो गई। मजदूरी भी लगभग डेढ़ गुना हो गई, जिससे घर का सपना भी अब डराने लगा है।

क्या कहते है सप्लायर
पत्रिका ने जब शहर के कुछ बिल्डिंग मैटेरियल सप्लायर से बात की तो उन सभी का एक मत था कि बाजार की प्रत्येक वस्तु महंगी हुई तो बिल्डिंग मैटेरियल कहां सस्ता रहने वाला था। पत्रिका ने जिन बिल्डिंग मैटेरियल सप्लायर से बात की उनमें रोहित प्रजापत, मनोज जोशी, सरिता ट्रेडर्स, मारूति ट्रेडर्स हैं। सभी का यही कहना है कि सबसे ज्यादा तेजी सरिए में आई, जबकि मजदूरी भी महंगी हो गई। ये बताते हैं कि पहले नदी की रेत आसानी से नहीं मिलती थी, लेकिन अब प्रकार बदलने से मतलब पत्थर कटिंग रेत (मेन्युफैक्चरिंग सेंड) होने से चाहे जितनी जरूरत हो आसानी से मिल जाती है।

ऐसे समझे आशियाने का गणित
– दो साल पहले 250 से 300 रुपए रोज में मजदूर मिल जाते थे। अब 500 रुपए से नीचे कोई बात नहीं करता है।
– एक साल पहले बालू रेत 40 से 45 रुपए अब 60 रुपए फीट हो गए दाम।
– सीमेंट भी एक साल में 300 से बढ़कर 400 रुपए बोरी।
– सरिया एक साल में डेढ़ गुना से ज्यादा महंगा हो गया। एक साल पहले जो सरिया 4 हजार रुपए क़िंटल मिल रहा था वह अब 6200 रुपए क्विंटल हो गया है।
– ईंट भी साल भर पहले 4 हजार रुपए प्रति हजार के दाम से मिल जाती थी, जो अब 5500 से 6 हजार के भाव में मिल रही है
– गिट्टी का 10 मीटर वाला डंफर एक साल पहले 5500 रुपए में मिल जाता था। अब इसके दाम 7 हजार रुपए हो गए।
– पहले नदी की रेत मिल जाती थी, जिसके 10 मीटर वाली गाड़ी के भाव 10 हजार रुपए थे। अब नदी के बजाय पत्थर कटिंग रेती, जिसे डस्ट कहते हैं के दाम भी 13 हजार रुपए गाड़ी हो गए हैं।

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