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उज्जैन

एंटीबॉयोटिक का खतरनाक रिजल्ट, बेअसर हो रहीं सभी दवा, खत्म नहीं हो रहे कीटाणु

उज्जैन में एंटीबॉयोटिक के मनमाने उपयोग के खतरनाक रिजल्ट सामने आने लगे हैं। कुछ कीटाणु किसी भी दवा से खत्म नहीं हो रहे। कान से मवाद निकलने की समस्या लेकर जिला अस्पताल आने वाले मरीजों की जांच में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं।

उज्जैनNov 25, 2023 / 02:03 pm

deepak deewan

एंटीबॉयोटिक के मनमाने उपयोग के खतरनाक रिजल्ट

उज्जैन में एंटीबॉयोटिक के मनमाने उपयोग के खतरनाक रिजल्ट सामने आने लगे हैं। कुछ कीटाणु किसी भी दवा से खत्म नहीं हो रहे। कान से मवाद निकलने की समस्या लेकर जिला अस्पताल आने वाले मरीजों की जांच में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। इन मरीजों के मवाद का जब कल्चर करवाकर गया तो 20 से 30 प्रतिशत मामलों में ऐसे कीटाणु मिले हैं जो किसी भी दवा से नहीं खत्म हो रहे। संबंधित मरीजों के शरीर में एंटीबॉयोटिक प्रतिरोध इतना बढ़ चुका है कि अब उनके अंदर के कीटाणुओं पर दवा का असर होना लगभग खत्म हो गया है।
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दवा का असर नहीं या कम होने की यह स्थिति सिर्फ मवाद संबंधित मामलों की ही नहीं है, ऐसे सभी मरीज के साथ हो सकती है जिनके शरीर में एंटीबॉयोटिक प्रतिरोध बढ़ रहा है। लोगों के शरीर में एंटीबॉयोटिक प्रतिरोध बढ़ना, भविष्य में चिकित्सा क्षेत्र सबसे बड़ी चुनौती माना जा रहा है। इसलिए सरकार ने एंटीबॉयोटिक को लेकर जनजागरण शुरू किया है।
इसके अंतर्गत सिविल सर्जन डॉ. पीएन वर्मा ने चिकित्सीय विशेषज्ञों के साथ कार्यशाला कर एंटीबॉयोटिक दवाओं के मनमाने उपयोग के घातक परिणामों की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि एंटीबॉयोटिक दवाओं का उपयोग बैक्टेरिया को मारने में होता है। चिकित्सक अनिवार्य स्थिति में मरीज की समस्या, उम्र आदि के आधार पर आवश्यकतानुसार एंटीबॉयोटिक दवा प्रिस्क्राइप करते हैं।
इसके विपरीत कई मरीज अपनी मर्जी से या अनाधिकृत व्यक्ति की बताई दवाई ले लेते हैं जिनमें एंटीबॉयोटिक भी शामिल होती है। दवाइयों को इस प्रकार मनमाना उपयोग भविष्य में मरीज के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। डॉ. वर्मा ने एंटीबॉयोटिक प्रतिरोध के खतरे को कान के मवाद से पीड़ित मरीजों का हवाला देकर बताया। उन्होंने बताया, ऐसी स्थिति में डॉक्टर को मिडिएशन बदलना पड़ता है और उपचार में लंबा समय लगता है।
समझें ऐसे हो रही हानि
एंटीबॉयोटिक दवा का उपयोग बैक्टेरिया के लिए होता है लेकिन ऐसी स्वास्थ्य समस्याओं में भी इनका उपयोग हो रहा है जिसमें इनके बिना उपचार किया जा सकता है। दरअसल एंटीबॉयोटिक दवाओं के मनमाने उपयोग के कारण लोगों के शरीर में एंटीबॉयोटिक प्रतिरोध बढ़ने लगा है। शरीर में आवश्यकता से कम या ज्यादा एंटीबॉयोटिक दवाएं जाने से शरीर में मौजूद बैक्टेरिया आदि इनके साथ जीने की क्षमता बढ़ा लेते हैं।
इससे यह इतने शक्तिशाली हो जाते हैं कि जब किसी बीमारी में मरीज को दवाई दी जाती हैं तो कीटाणुओं पर इनका असर ही नहीं होता। चिकित्सा क्षेत्र में इसे भविष्य की सबसे बड़ी चुनौती माना जा रहा है, इसलिए एंटीबॉयोटिक के उपयोग की गाइड लाइन तैयार की गई है, जिसके आधार पर चिकित्सकों के साथ ही मरीज, मेडिकल संचालक, युवा व लोगों को जागरूक किया जा रहा है। बिना प्रिस्क्रिप्शन के दवा देने पर कार्रवाई की निर्देश भी दिए हैं।
इन कारणों से बढ़ता है प्रतिरोध
कम डोज
स्वास्थ्य समस्या अनुसार मरीज को दवा के जितने डोज की जरूरत है, उससे कम डोज मिलने पर बैक्टेरिया मरते नहीं और दवा के साथ जीने की क्षमता पैदा कर लेते हैं।
अधिक डोज
आवश्यकता से अधिक दवा का डोज देने से स्वास्थ्य तो सुधर जाता है, लेकिन शरीर के बैक्टेरिया को इतने हेवी डोज की आदत हो जाती है। कम डोज में वे नहीं मरते और बाद में हेवी डोज में ही सरवाइव करने लगते हैं।
अनियमित डोज
अक्सर देखने में आता है कि डॉक्टर जितनी बार और जितने दिन की दवाई देते हैं, मरीज उसका शतप्रतिशत पालन नहीं करते। थोड़ा सुधार महसूस होने पर मरीज बीच में ही दवा लेना बंद कर देता है या डोज कम कर लेता है। इससे कुछ दिन बाद फिर बीमारी के लक्षण आते हैं और दोबारा वही दवाई शुरू करने पर बैक्टेरिया पर उनका असर पहले की तुलना में कम हो जाता है।
(नोट- इसलिए अधिकृत चिकित्सक की सलाह का पूरा पालन करना चाहिए। समस्या होने पर पुन: परामर्श या सेकंड ओपिनियन लें।)

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