आचार्य रवि सुखवाल के मतानुसार , श्रावणी पूर्णिमा पर यजमानों के लिए कर्मकांड यज्ञ, हवन आदि करने की जगह ब्राह्मण खुद अपनी आत्मशुद्धि के लिए तर्पण और ऋषि पूजन करते हैं। श्रावणी उपाकर्म उत्सव में यजुर्वेदीय वैदिक विधि से हेमाद्री प्राक्त, प्रायश्चित संकल्प, सूर्याराधन , दस विधि स्नान, पितृ तर्पण, सूर्योपस्थान, यज्ञोपवीत धारण, प्राणायाम, अग्नि होत्र एवं ऋषि पूजन किया जाता है। पं.अभिनव द्विवेदी के अनुसार पंचगव्य महा औषधि है। श्रावणी में दूध, दही, घृत, गोबर, गोमूत्र प्राशन कर शरीर के अंत:करण को शुद्ध किया जाता है।