उदयपुर पहुंचा समुद्री बाज, जो धरातल पर उतरे बिना ही कर लेता है मछली का शिकार
6 हजार किमी दूरी तय कर पहुंचे समुद्री बाज ने बढ़ाई मेनार की खूबसूरती,
उमेश मेनारिया/मेनार. मेनार के धण्ड तालाब पर ऑस्प्रे पक्षी की भी आमद दर्ज हुई है । बोलचाल की भाषा में इसे समुद्री बाज या फिश हॉक भी कहते हैं। ये अपने शिकार और उसके अनूठे तरीके के बारे में जाना जाता हैं। शिकार करते वक्त उनका लक्ष्य ऐसा रहता है कि पानी या फिर समुद्र में तैरती मछली का महज 5 से 10 सेकंड में शिकार कर लेते हैं। पक्षी का नाम मछलीमार (ऑस्प्रे) है। ये मछलियों को पकड़ने में मछुआरों से भी तेज होता है । मछली पकड़ने वाले मछुआरों के पास तो ऐसे कई मौके आते हैं जब मछली उनकी पकड़ में नहीं आती है या फिर उनकी पकड़ से छूट जाती है लेकिन इस मछली मार पक्षी के शिकार बहुत कम ही खाली जाते हैं। वाइल्डलाइफ फ़ोटोग्राफर विधान द्विवेदी ने बताया कि ये ऊपर आकाश में उड़ते समय यह मछली मार पक्षी एक से दो मिनट में अपने शिकार को तलाश लेता है। इसके बाद वह तेज गति से पानी की तरफ झपटा मारता है और पानी में तैर रही मछली को अपने पंजों में पकड़कर फिर आकाश में उड़ जाता है। इसके बाद यह मछली को किसी पेड़ पर बैठकर उसे खाता है। यह यूरोपियन महाद्वीप के समुद्री तटों से ओस्प्रे पक्षी 6 हजार किमी से अधिक की दूरी तय कर भारत पहुंचते हैं। अप्रेल के शुरुआत में ये वापस चले जाते हैं। ऑस्प्रे का आहार 99 प्रतिशत तक मछली बनता है वन्यजीव विशेषज्ञ डॉक्टर सतीश शर्मा ने बताया कि ऑस्प्रे को हिंदी में मछलीमार भी कहते हैं । ऑस्प्रे का मुख्य भोजन नदियों व बांधों जलाशयो में मिलने वाली मछली है। इसमें विशेष प्रकार की शारीरिक विशेषताएं होती है जो शिकार करने और पकड़ने के दौरान अद्वितीय व्यवहार दर्शाता है। यह शिकार करने वाले बड़े आकार का पक्षी हैं। विभिन्न नामों नें पहचाने जाने वाला यह पक्षी ओस्प्रे की लंबाई 55 से 60 सेंटीमीटर की होती है। वहीं इसका वजन 1,000 से 1800 ग्राम का होता है। नर की तुलना में मादा ओस्प्रे बड़ी होती है। मादा ओस्प्रे का वजन 1,200 से 2,000 ग्राम का होता है। इनके पंखों की लंबाई 120 से 175 सेमी. होती है। इनका ऊपरी भाग ब्राइट ब्राउन होता है। इसका वैज्ञानिक नाम पंडियन हेलिएटस है । ऑस्प्रे रेपटर आस पास पेड़ या ऊची जगहो पर बैठा रहता है वही तभी दृष्टिपात करता है, जब कोई मछली जल के सतह पर आती है या जब इसे कोई शिकार करना होता है। इसकी दृष्टि बड़ी तीव्र होती है और यह पानी के अंदर मछली के सतह पर आते ही अपने शिकार को ऊँचाई से ही देख लेता है। और पंजो से पकड़ हवा में ही उसका शिकार कर लेता है । अपने कुल मे ये सिर्फ एक मात्र सदस्य है। यह हिमालय के उस पास यूरोप का निवासी है जो ठंडे प्रदेशो से सर्दियों में यहां आता है। ऑस्प्रे का आहार का 99% मछली बनता है । वही मई जून के मध्य यूरोप में घोंसला निर्माण करता है। हिमालय के उस पार ठंडे प्रदेशों से आने वाला यह पक्षी भारत में पाकिस्तान, श्रीलंका, मयांमार, बांग्लादेश से आता है । जलीय पक्षियों के आगमन के साथ इसका भी आगमन होता है वहीं जब ये लौटते हैं तो ये भी इनके साथ चला जाता है।
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