मामला कोटड़ा के बड़ली गांव के साइबागमार के परिवार का है। साइबागमार डेढ़ साल तक मुंह के कैंसर से ग्रसित रहा। तीन माह पहले उसकी मौत हो गई, लेकिन पीछे परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। परिवार में भूखे मरने को नौबत आ गई है, क्योंकि साईबा की मजदूरी से ही घर का गुजारा चलता था। मौत से पहले साईबा डेढ़ साल से बीमारी के कारण मजदूरी भी नहीं कर पा रहा था। थोड़े-बहुत पैसे थे, वे भी उपचार में खर्च हो गए थे। साईबा के जिंदा रहते कोटड़ा हॉस्पिटल की एएनएम सुभी और पड़ोसीकेशरसिंहगमार ने मदद की, लेकिन साईबा को नहीं बचा पाए। साईबा के 6 संतान, तीन लड़के और तीन लड़कियां है। बड़े बेटे 12 वर्षीय कपूरचन्द और दस वर्षीय जगदीश परिवार का गुजारा चलाने के लिए कुछ दिनों पहले ही मजदूरी के लिए गुजरात गए। कपूरचंद 7वीं में पढ़ता है, जबकि जगदीश कभी स्कूल ही नहीं जा पाया। लड़कीहीता कुमारी स्कूल जाती है, लेकिन बाकी तीन बच्चे घर पर ही रहते हैं।
शिक्षक ने समझी जिम्मेदारी
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय रेलवे ट्रेनिंग के शिक्षक दुर्गाराम मुवाल को परिवार की मुसीबत के बारे में पता चला तो अपने साथी राउप्रावि बुरावाड़ा के शिक्षक सुखलाल गमार, गोविंद कुमार मीणा के साथ पीड़ित के घर पहुंचे। पता चला कि टापरे में बिछाने को बिस्तर और खाने को अनाज भी नहीं था। परिवार को कभी खाद्य सुरक्षा का अनाज नहीं मिला और साईबा की पत्नी थावरी को विधवा पेंशन भी नहीं मिली। बच्चों के नाम भी पालनहार योजना में नहीं जुड़े। लाचार परिवार की जानकारी के बावजूद किसी ने सहायता पहुंचाने की कोशिश नहीं की। शिक्षक दुर्गाराम ने बच्चों की जिम्मेदारी ली। बच्चे उदयपुर के आवासीय विद्यालय में पढ़ेंगे।