टोंक

विश्व मजदूर दिवस पर विशेष:हकदारों से दूर है हक,सरकारी बेरुखी उद्योगों व मजदूरी पर भारी

टोंक. जिलेभर में सोमवार को मनाए जाने वाले विश्व मजदूर दिवस पर प्रशासन तथा कई संगठनों की ओर से बैठक तथा संगोष्ठियों का आयोजन होगा। इनमें मजदूरों की परेशानियों पर कुछ देर चर्चा की खानापूर्ति कर ली जाएगी।

टोंकMay 01, 2017 / 02:13 pm

pawan sharma

टोंक में रविवार को एक स्थान पर चल रहे निर्माण में जुटे मजदूर।

टोंक. जिलेभर में सोमवार को मनाए जाने वाले विश्व मजदूर दिवस पर प्रशासन तथा कई संगठनों की ओर से बैठक तथा संगोष्ठियों का आयोजन होगा। इनमें मजदूरों की परेशानियों पर कुछ देर चर्चा की खानापूर्ति कर ली जाएगी। यही वजह है कि अभी तक मजदूरों के हितों के बारे में कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है। ऐसे में मजदूरों को उनका नहीं मिल रहा है। हालांकि सरकार ने मजदूरों के लिए कई योजनाएं चलाई है, लेकिन जमीनी हकीकत ये है कि अधिकतर मजदूरों को इसका पता तक नहीं है। इसमें उनको योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है।
 मजदूरों की बेटियों के विवाह के लिए सरकार राशि देती है। ये राशि जिले के 2 प्रतिशत मजदूरों को ही मिल पाई है। इसका कारण मजदूरों को योजनाओं की जानकारी नहीं होना है। चौंकाने वाली बात ये भी है कि 14 लाख 21 हजार की आबादी वाले जिले में महज सात हजार श्रमिक ही पंजीकृत हैं। जबकि इनकी संख्या लाखों में है, लेकिन जागरूकता के अभाव में वे योजनाओं तक नहीं पहुंच पा रहे हैं।
ये भी है बड़ा कारण

सुविधाएं व सरकारी सहायता नहीं मिलने के कारण धीरे-धीरे जिले में संचालित औद्योगिक इकाइयां बंद होने लगी हैं। हालात ये है कि अकेले टोंक में ही 103 इकाई में से 48 इकाई बंद हो चुकी हंै। ऐसे में आठ से दस हजार मजदूर बेरोजगार हो गए, जो यहां से पलायन कर गए। अकेले जयपुर शहर में ही जिले के हजारों लोग मजदूरी कर रहे हैं। टोंक जिला तकनीकी शिक्षा में भी पिछड़ा हुआ है। उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार व जिला प्रशासन कितना सजग है। इसकी बानगी इससे पता लग रही है कि जिले के औद्योगिक क्षेत्र वीरान होते जा रहे हैं।
 सुविधाओं के अभाव में उद्योगपति उद्योगों को बंद कर रहे हैं। मजबूरी में श्रमिक भी जिले से पलायन कर रहे हैं। जिला मुख्यालय पर 149 यूनिट वाले औद्योगिक क्षेत्र में महज 500 श्रमिक ही काम कर रहे हैं। इनमें से भी पंजीकृत महज 250 ही हैं। बाकी श्रमिक दिहाड़ी मजदूरी पर हैं। उन्हें भी कब काम से निकाल दिया जाए इसका अंदाजा नहीं है। इसका कारण सरकार की ओर से औद्योगिक विकास पर ध्यान नहीं देना है। जिले में उद्योग लगाने वाले उद्योगपति को सरकार की ओर से अनुदान तथा सुविधाएं नहीं मिल रही हैं। इसके चलते वे मुनाफा नहीं होने पर उद्योग नहीं लगा रहे हैं। सरकार इस ओर ध्यान दें तो पलायन भी रुक जाएगा। 
जिले में साक्षरता भी बढ़ी है

जिले में साक्षरता का ग्राफ भी बढ़ा है। जनगणना के अनुसार वर्ष 2001 में 52 फीसदी लोग शिक्षित थे। वर्ष 2011 में यह प्रतिशत बढ़कर 62.46 प्रतिशत हो गया। ऐसे में जिले में शिक्षित लोगों के बढऩे के साथ बेरोजगारी भी बढ़ गई।
पूरी फौज है बेरोजगारों की 

ऐसा भी नहीं है कि जिले में काम करने वालों की कमी है। औद्योगिक इकाइयां श्रमिकों के हितों को ध्यान में रखें तो बेरोजगारों की लाइन लग सकती है। इसका उदाहरण ये है कि जिले में 13 हजार 558 बेरोजगार हैं, जो रोजगार कार्यालय में पंजीकृत है। 
ये हो तो बने बात

जिले में उद्योगों की स्थापना तथा उन्हें विकसित करने के लिए सरकार को विशेष ध्यान देना चाहिए। इसके लिए सबसे पहले जिले को औद्योगिक दृष्टि से अति पिछड़ा घोषित करना होगा। इसके साथ ही प्रोत्साहन योजनाएं लागू की जानी चाहिए। इसमें उद्योग लगाने वाले उद्यमियों को ऋण पर ब्याज में कमी, अनुदान तथा अन्य सुविधाएं भी देनी होगी। इसके अलावा जिले में फैक्ट्रियों, ईंट भट्टा, दुकान, भवन निर्माण समेत अन्य कार्यों में मजदूरी करने वालों का पंजीयन किया जाना चाहिए। उन्हें सम्बन्धित फर्म से न्यूनतम मजदूरी भी दिलाई जानी चाहिए। 
हजारों लोग हैं बाहरजिले में रोजगार की कमी होने से करीब 10 हजार लोग जयपुर, दिल्ली समेत अन्य बड़े शहरों में काम करने पर मजबूर हैं। जयपुर के प्रतापनगर, मानसरोवर आदि इलाकों में टोंक जिले के लोग समूह के रूप में रहते हैं। ये दिहाड़ी मजदूरी पर निर्भर हैं। इन्हें जिले में ही नियमित रूप से रोजगार मिले तो ये अन्यत्र नहीं जाएंगे। 
पंजीकृत श्रमिकों की स्थिति 

श्रम विभाग के मुताबिक जिले की 105 फैक्ट्रियों में पंजीकृत श्रमिक काम करते हैं। इनकी संख्या 6 हजार 523 है। जबकि जिले में 793 फैक्ट्रियां हैं, लेकिन इनमें काम कर रहे करीब 2 हजार श्रमिक पंजीकृत नहीं हैं। 
छोटे उद्यम हो गए बंद

जिला उद्योग केन्द्र में दस साल पहले मध्यम स्तर के 8 हजार 778 उद्योग पंजीकृत थे। अधिकारियों के अनुसार इनमें से 4 हजार 300 उद्योग वर्तमान में बंद हो गए हैं। इनका कारण समय पर मजदूर नहीं मिलना है। अधिकारी बताते हैं कि मजदूर नहीं मिलने पर समय पर काम नहीं होता और फैक्ट्री मालिक पर रकम व माल की तैयारी का बोझ बढ़ जाता है। इसके चलते वे उद्योगों को बंद कर देते हैं। 
यह है वर्तमान स्थिति 

टोंक में 103 में से 48 हैं संचालित

देवली में 133 में से 119 हैं संचालित

मालपुरा में 172 में से 160 हैं संचालित

निवाई में 385 में से 381 हैं संचालित
52 फीसदी लोग वर्ष 2001 में थे शिक्षित 

62.46 फीसदी शिक्षित हैं अभी 

Hindi News / Tonk / विश्व मजदूर दिवस पर विशेष:हकदारों से दूर है हक,सरकारी बेरुखी उद्योगों व मजदूरी पर भारी

Copyright © 2024 Patrika Group. All Rights Reserved.