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Bisalpur Dam : विलुप्त होने की कगार पर मछलियों की देशी प्रजाति, ये बन रहा मौत का कारण

Bisalpur Dam : मत्स्य विभाग की अनदेखी कहें या फिर मिलीभगत। इसके चलते पिछले कुछ वर्षों से प्रदेश के जलाशयों में मछली ठेकेदारों की ओर से डाली जा रही चट्टी (नीले रंग को) जाल मछलियों के लिए मौत का कारण बनता जा रहा है।

टोंकApr 02, 2024 / 11:04 am

Kirti Verma

बनवारी लाल वर्मा
Bisalpur Dam : मत्स्य विभाग की अनदेखी कहें या फिर मिलीभगत। इसके चलते पिछले कुछ वर्षों से प्रदेश के जलाशयों में मछली ठेकेदारों की ओर से डाली जा रही चट्टी (नीले रंग को) जाल मछलियों के लिए मौत का कारण बनता जा रहा है। ऐसा टोंक जिले के बीसलपुर बांध में नजर आ रहा है। जहां अवैध च‌ट्टी जाल पर कार्रवाई नहीं की जा रही है। इस कारण देशी मछलियों की प्रजातियां धीरे-धीरे विलुप्त होने के कगार पर पहुंचने लगी है।

गर्मी में सुखाते हैं मछलियों को
सभी प्रजाति की छोटी मछलियों को गर्मी में सुखाया जाता है। यह मालिया सिल्लीगुड़ी, आसाम, उत्तर प्रदेश के गोरखपुर, हावड़ा (कोलकाता) में बेची जाती है। जहां इसके दाम अन्य बड़ी मछलियों से दो से तीन गुना तक मिलते हैं। प्रति ट्रक बीस से पच्चीस लाख तक बिकता है। इन मछलियों के दाम प्रति 40 किलो के 10 से 15 हजार तक या इससे अधिक भी मिल जाते हैं। इन सूखी हुई मछलियों से अचार व सलाद तैयार किया जाता है। आसाम की होटलों व रेस्तरां आदि जगहों पर इनकी डिमांड है।

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पांच करोड़ का ठेका
बीसलपुर बांध में मछली का टेंडर तीन वर्ष पूर्व 4 करोड़ 23 लाख में हुआ था। जो प्रतिवर्ष 12 प्रतिशत राशि बढ़ाकर पांच वर्ष के लिए होता है। गत वर्ष यही राशि 12 प्रतिशत बढ़ाकर उसी ठेकेदार को 4 करोड़ 73 लाख 76 हजार में यथावत कर दिया गया था। वहीं इस वर्ष फिर से 12 प्रतिशत राशि बढ़ाकर 5 करोड़ 30 लाख 61 हजार 120 में मछली टेंडर हुआ है।

इन मछलियों की मांग अधिक
जानकारी के अनुसार एक मछली एक बार में हजारों अंडे देती हैं। अंडे देने के दौरान मत्स्य विभाग की ओर से मत्स्य आखेट पर रोक लगाई जाती है। विदेशी व फार्मी मछली के तौर पर टाइगर, कोमलकार, सिल्वर, सिलोन, गिलासकार आदि प्रजाति की मछलियां पाई जाती है। जिनका बीज विभाग व ठेकेदार की ओर से डाला जाता है। मंडियों में इनके दाम देशी की अपेक्षा कम लगते हैं। सिंघाड़ा, लैची, बाम, समल आदि होती है, जिसमें कांटे कम होने से अधिक दामों पर बिकती है।

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