ऐसे में victory of good over evil बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में दशहरे पर भारत में रावण अलावा उनके भाई कुंभकर्ण और पुत्र मेघनाथ के भी विशाल पुतले जलाए जाते हैं, लेकिन भारत में ही कई स्थान ऐसे भी हैं जहां Ravan Worship रावण को पूजित मानते हुए उसके idols of Ravana मंदिर बनाए गए हैं। और दशहरे के दिन इन Temples मंदिरों में लोगों की खास भीड़ उमड़ती है। इस दिन रावण के उपासक उसे एक विद्वान मानते हुए उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं।
Must Read- रावण और कुंभकरण से जुड़ा ये सच, क्या आप जानते हैं?
ऐसे में आज हम आपको रावण को समर्पित उन छह मंदिरों के बारे में बता रहे हैं जहां उनके उपासक उनकी पूजा करते हैं:-
बिसरख को रावण का जन्मस्थान माना जाता है और यहां एक मंदिर लंका के राजा को समर्पित है। यह देश में राक्षस राजा के सबसे प्रसिद्ध और प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है।
Rawana As a God रावण को इस क्षेत्र में एक भगवान के रूप में माना जाता है और यहां रावण के पुतले जलाकर दशहरा नहीं मनाया जाता है। नवरात्रि के नौ दिन बिसरख के कस्बे में मातम का समय होता है।
मंदिर को भगवान राम में विश्वास करने वाले लोगों के क्रोध का सामना करना पड़ा है, लेकिन रावण के भक्तों ने मंदिर की रक्षा के लिए उनसे लड़ाई लड़ी है।
मध्यप्रदेश के विदिशा में एक ऐसा गांव हैव, जिसका नाम स्वयं रावण के नाम पर रावणग्राम रखा गया है, यह लंका के राजा रावण के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। रावण की पत्नी मंदोदरी विदिशा से मानी जाती है।
विदिशा में कई रावण उपासक उनकी पूजा करने के लिए मंदिर जाते हैं। मंदिर में रावण की 10 फुट लंबी मूर्ति है। पूर्व में यह मंदिर किसी भी अन्य मंदिर की तरह ही था जहां लोग शादी के दिनों और अन्य महत्वपूर्ण अवसरों पर जाते थे। लेकिन, कुछ साल पहले से यहां दशहरे के दौरान रावण पूजा ने भव्य रूप ले लिया है।
रावण के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक काकीनाडा रावण मंदिर आंध्र प्रदेश के पूर्वी गोदावरी जिले के शहर में स्थित है। मंदिर समुद्र तट के करीब स्थित है और एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। आंध्र प्रदेश में काकीनाडा एकमात्र ऐसा स्थान है जहां रावण की पूजा की जाती है।
माना जाता है कि रावण ने भगवान शिव का मंदिर बनाने के लिए इस स्थान को चुना था।यहां एक विशाल शिवलिंग भित्ति है, जो भगवान शिव के लिए रावण की भक्ति का प्रमाण है।
दशानन रावण का करीब 125 साल पुराना दशानन मंदिर कानपुर के शिवाला इलाके में स्थित है। कहा जाता है कि मंदिर का निर्माण 1890 में राजा गुरु प्रसाद शुक्ल ने करवाया था। इस मंदिर दरवाजे हर साल दशहरे पर भक्तों के लिए खोले जाते हैं।
बताया जाता है कि मंदिर निर्माण के पीछे का मकसद यह था कि रावण भगवान शिव का सबसे बड़ा भक्त होने के साथ ही अत्यंत विद्वान भी था। यहां दशहरे के अवसर पर, भक्तों द्वारा ‘दशनन’ (रावण – या दस सिर वाले) की मूर्ति को ‘आरती’ के बाद सजाया गया था।
इस दौरान लोग मिट्टी के दीये जलाते हैं और मंदिर में त्योहार मनाने के लिए धार्मिक अनुष्ठान करते हैं।
मध्य प्रदेश के मंदसौर में भी लंका के राजा का एक मंदिर है। यहां खानपुर क्षेत्र में 35 फुट ऊंची 10 सिर वाली रावण की मूर्ति स्थापित है। दरअसल मंदसौर शहर में नामदेव वैष्णव समाज से संबंध रखने वाले लोग दशहरे पर रावण की पूजा करते हैं। इनका मानना है कि रावण की पत्नी मंदोदरी इसी शहर की थीं। ऐसे में रावण को उस क्षेत्र के लोग दामाद मानते हैं और रावण दहन नहीं करते हैं।
माना जाता है कि मंदसौर का मंदिर वह स्थान है जहां रावण और मंदोदरी का विवाह हुआ था। मंदिर में विभिन्न महिला देवताओं की मूर्तियां हैं जिनकी नियमित रूप से पूजा की जाती है। मंदिर को अत्यंत पुराना माना जाता है क्योंकि हड़प्पा सभ्यता की लिपि में देवताओं के बगल में ग्रंथ पाए जाते हैं।
जोधपुर में श्रीमाली समाज के गोधा गौत्र के लोग स्वयं को रावण का वंशज मानते हैं। कहा जाता है कि ये गोधा गोत्री श्रीमाली लोग रावण की बारात में आए और यहीं पर बस गए। जोधपुर के मेहरानगढ़ किला रोड पर इन्होंने रावण का मंदिर भी बना रखा है, जहां उसकी पूजा की जाती है।
इसके अलावा जोधपुर के ऐतिहासिक मेहरानगढ़ फोर्ट की तलहटी में भी रावण और उसकी पत्नी मंदोदरी का मंदिर बना हुआ हैं। जहां हर रोज रावण और रावण की कुलदेवी खरानना देवी की पूजा की जाती है।
मंदिर में वर्ष 2008 में विधि विधान से रावण की मूर्ति स्थापित की गई थी। बताया जाता है कि ये पहला रावण का मंदिर है, जहां रावण के परिजनों व रावण की पूजा-अर्चना की जाती है और लंकाधिपति को अपना वंशज मानते हुए पंडितों को भोज कराया जाता है।