दरअसल मध्यप्रदेश के रायसेन जिले में एक काफी पुराना भगवान शिव का मंदिर है, प्राचीन सोमश्वर महादेव मंदिर के नाम से प्रसिद्ध ये मंदिर रायसेन के प्राचीन दुर्ग परिसर के एक ऊंचे पहाड़ पर स्थित है। यहां भगवान सोमेश्वर महादेव के दर्शन काफी दुर्लभ माने जाते हैं।
इस मंदिर की सबसे खास बात ये है कि इसके पट वर्ष में सिर्फ एक बार महाशिवरात्रि पर ही खुलते हैं। सुबह 6:00 बजे से लेकर शाम को 6:00 बजे तक प्रशासनिक अधिकारियों और पुरातत्व विभाग के अधिकारियों की मौजूदगी में मंदिर के ताले केवल 12 घंटे के लिए खोले जाते हैं। यानि इस दिन भी सूर्याेदय के समय मंदिर के दरवाजे खोने के पश्चात सूर्यास्त के बाद इन्हें बंद कर दिया जाता है।
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इसके अलावा कुछ भक्त यहां साल भर आते हैं, लेकिन इस दौरान मंदिर का ताला बंद रहता है।ऐसे में भक्त गेट के बाहर से ही बाबा सोमेश्वर की पूजा करने आते हैं और मन्नत मांग कर मंदिर के लोहे के दरवाजे पर ये भक्त कलावा और कपड़ा बांध जाते हैं। इसके बाद मनोकामना पूरी होने पर फिर ये भक्त इस कपड़े को खोलने भी आते हैं।
इस शिव मंदिर में बने शिवलिंग की ये अद्भुत बात है कि सूर्य की किरणें जब इस शिवलिंग पर पड़ती हैं तो यह सोने सा दमक उठता है। वहीं श्रावण मास में श्रद्धालुओं को जलाभिषेक के लिए यहां अलग से व्यवस्था की जाती है। इस दौरान लोहे की जाली लगाकर भगवान शिव के दूर से ही दर्शन कराए जाते हैं और पाइप के जरिये शिवलिंग पर जल अर्पित किया जाता है।
विवाद के बाद लगाया ताला
स्थानीय लोगों के मुताबिक सोमेश्वर महादेव मंदिर अतिप्राचीन है। मंदिर को लेकर कुछ विवाद थे। इसी कारण पुरातत्व विभाग ने इस मंदिर में ताला लगा दिया। इसके बाद वर्ष 1974 में तत्कालीन सीएम प्रकाश चंद्र सेठी खुद मंदिर का ताला खोलने आए थे।
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उन्होंने महाशिवरात्रि के दिन ताला खोलकर महादेव का पूजन किया। तब से महाशिवरात्रि पर ही मंदिर के पट खोले जाते हैं।
पैदल ही पहाड़ी चढ़कर आते हैं हजारों श्रद्धालु
भगवान सोमेश्वर का यह मंदिर रायसेन सहित आसपास के जिलों के लोगों के लिए आस्था का प्रमुख केंद्र है। कई श्रद्धालु पैदल ही पहाड़ी चढ़कर यहां आते हैं। पाइप के जरिये भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक तक करते हैं। महाशिवरात्रि पर यहां हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।
महाशिवरात्रि पर मेला
महाशिवरात्रि पर सुबह से मंदिर में भक्तों का मेला लगता है। जिसमें सैकड़ों श्रद्धालु पहुंचकर भगवान शिव की पूजा अर्चना करते हैं। वहीं कुछ भक्त तो बचपन से ही यहां हर साल आ रहे हैं।