ऐसा कहा जाता है कि पांडवों ने यहां वेद व्यास मुनि की प्रेरणा से घाघरा नदी के किनारे कुल्छात्तर नामक जगह पर रूद्र महायज्ञ का आयोजन किया था। लोधेश्वर महादेव से 2 किलोमीटर उत्तर नदी के पास आज भी कुल्छात्तर में यज्ञ कुंड के प्राचीन निशान मौजूद हैं, उसी समय यहां पांडवों ने इस शिवलिंग की स्थापना भी की थी। पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान रामनगर से सटे सिरौली गौसपुर इलाके में पारिजात वृक्ष को लगाया था और गंगा दशहरा के दौरान खिलने वाले सुनहरे फूलों से भगवन शिव की आराधना की थी, विष्णु पुराण में यह उल्लेख है कि इस पारिजात वृक्ष को भगवान कृष्ण स्वर्ग से लाए थे और अर्जुन ने अपने बाण से पाताल में छिद्र कर इसे स्थापित किया था।
मंदिर में है जलकुंड
लोधेश्वर महादेव मंदिर में महाभारत के समय का एक जलकुंड है। इस कुंज को पांडव-कुप्प के नाम से जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जो व्यक्ति इस पानी को पीता हैं उसकी कई बीमारियां दूर हो जाती है। इस मंदिर में पूरे देश से लाखों-हजारों श्रद्धालु कावड़ लेकर शिवलिंग पर जल अर्पित करने आते हैं। श्रद्धालु अपनी कावड़ यात्रा कानपुर देहत के वाणेश्वर, बांदा, जालौन और हमीरपुर से भगवान शिव की पूजा करते हुए आखिरी में अपनी कावड़ यात्रा लोधेश्वर महादेव पर जल अर्पित कर यात्रा का समापन करते है।
सावन माह में लगता है मेला
सावन माह में मंदिर में पूजा-अर्चना के लिए भारी भीड़ उमड़ती है। देर रात से शिवभक्त जल चढ़ाने के लिए लाइन में लग जाते हैं। सावन में शिव आराधना और पूजा-अर्चना का बड़ा महत्व है। यहां सावन भर मेला लगता है। मंदिर के पुजारी द्वारा मंदिर में तैयारियां पूरी हैं। वहीं सुरक्षा व्यवस्था के लिए इस बार प्रशासन ने बैरिकेड्स सहित अन्य व्यवस्था करवाई है। पुलिस के जवानों के अलावा महिला पुलिस और पीएसी भी तैनात की गई है। जलाभिषेक के समय व्यवस्था संभालने के लिए तहसीलों के एसडीएम लगाए गए हैं।