ऐसे में 4 दिन बाद से ही दीपावली 2021 का पर्व शुरु होने जा रहा है। जिसके चलते मंगलवार,2 नवंबर को धनतेरस मनाया जााएगा। ऐसे में आज हम आपको धन के देवता कुबेर के मंदिरों के बारे में बता रहे हैं। जानकारों के अनुसार धनतेरस के दिन कुबेर की पूजा के अलावा इनके मंदिरों का दर्शन अत्यंत विशेष माना गया है।
देश में मौजूद कुबेर के प्रमुख मंदिरों में से एक मंदिर मध्यप्रदेश के विदिशा में मौजूद है। यहां ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी की विशाल कुबेर प्रतिमा मौजूद है। यूं तो भारत में कुबेर (यक्षों) की असंख्य छोटी-बड़ी प्रतिमाएं हैं, लेकिन इनमें निर्माणकाल और प्रतिमाओं के आकार की दृष्टि से कुछ प्रमुख हैं।
पुरातत्व से जुड़े जानकारों के मुताबिक निर्माणकाल और प्रतिमाओं के आकार की दृष्टि से देश में कुछ प्रमुख कुबेर प्रतिमाएं हैं। इनमें से एक विदिशा में है जबकिमथुरा, पटना, भरतपुर के अलावा खंडवा जिले में स्थित कुबेर भंडारी का मंदिर के अतिरिक्त पुणे महाराष्ट्र, करनाली बड़ौदा, रत्नमंगलम चेन्नई में भी स्थित है। वहीं यह भी माना जाता है कि मदुरई के प्रसिद्ध मंदिर में पूजी जाने वाली मीनाक्षी देवी कुबेर की ही पुत्री हैं।
इनके अलावा भगवान शंकर की तपोस्थली देवभूमि उत्तराखंड के जागेश्वर महादेव (अल्मोड़ा) के मुख्य परिसर से कुछ कदमों की दूरी पर एक छोटी पहाड़ी की चोटी पर कुबेर मंदिर है। इस मंदिर को अत्यधिक चमत्कारी माना जाता है। यह मंदिर परिसर मुख्य मंदिर परिसर से लगभग 300 से 400 मीटर दूर है। इस परिसर के दो मुख्य मंदिर कुबेर मंदिर और देवी चंदिका मंदिर हैं।
देवभूमि में मौजूद इस मंदिर के संबंध में मान्यता है कि जो भी व्यक्ति यहां से एक सिक्का अपने साथ ले जाने के बाद उसे संभाल कर अपने पूजा स्थल या तिजोरी में रखकर रोज उसकी पूजा करता है, उसे आजीवन कभी गरीबी का मुंह नहीं देखना पड़ता।
यहां कुबेर मंदिर एक उठें हुए मंच पर बना है और रेखा-शिखर वास्तुकला का अनूपम उदाहरण हैं। वास्तुशिल्प शैली में यह महा-मृत्युनजय मंदिर जैसा दिखता है। मंदिर में एक दुर्लभ एक मुखी शिवलिंग भी है जो दसवीं शताब्दी ईस्वी की तारीख का है साथ ही शक्ति पंथ की देवी चंदिका मां का मंदिर है, जो कि वल्लबी शैली में बनाया गया है।
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बैस नदी से मिली थी कुबेर की यह विशाल प्रतिमा
वहीं मध्यप्रदेश के विदिशा में मौजूद कुबेर की यह विशाल प्रतिमा स्थानीय बैस नदी से प्राप्त हुई थी। वर्षों तक नदी में उल्टी पड़ी होने के कारण इसके स्वरूप को पहचाना नहीं जा सका और यह पत्थर की बड़ी चट्टान ही समझी जाती रही, जिससे ग्रामीण चट्टानरूपी कुबेर की इस प्रतिमा की पीठ पर वर्षों तक स्नान करते और कपड़े धोते रहे।
जब कई वर्षों बाद मिट्टी का कटाव बढ़ा और नदी का पानी कम हुआ तो इस प्रतिमा के पैर कुछ ग्रामीणों को दिखे तो उन्हें किसी विशाल प्रतिमा का आभास हुआ। इसके बाद भारी मशक्कत के बाद प्रतिमा को सीधा किया गया तो इसकी पहचान ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी के कुबेर के रूप में हुई। यह दुर्लभ प्रतिमा अब जिला पुरातत्व संग्रहालय के मुख्य द्वार पर मौजूद है।
हाथ में धन की थैली लिए हैं कुबेर
विदिशा में कुबेर की यह प्रतिमा 12 फीट ऊंची है, इस प्रतिमा के शीर्ष पर पगड़ी और कंधों तक उत्तरीय वस्त्र है। कानों में कुण्डल और गले में भारी कंठा है।
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मान्यता के अनुसार कुबेर अपने भक्तों को शक्ति, समृद्धि और कल्याण प्रदान करते हैं। उनकी इस प्रतिमा के एक हाथ में धन की थैली स्पष्ट दिखाई देती है। कुबेर प्रतिमा के साथ ही बैसनगर से 5 फीट की यक्षिणी की प्रतिमा भी मिली थी, जिसे कुबेर की पत्नी के रूप मेंं मान्य किया जाता है। यह प्रतिमा भी जिला संग्रहालय में मौजूद है।
राजसी ठसक वाले धनपति कुबेर
कुबेर का धनपति रूप भी विदिशा जिले के ग्राम बढ़ोह से प्राप्त हुआ है। 7-8 वीं शताब्दी की यह कुबेर प्रतिमा राजसी ठसक के साथ दिखाई देती है। इस प्रतिमा पर ठाठ-बाट से सिंहासन पर बैठे कुबेर का एक पैर धन के बर्तन पर रखा हुआ है, जैसे वे धन की रक्षा में मुस्तैद है। उनके एक हाथ में धन की थैली है, सिर पर मुकुट और पीछे विशाल आभामंडल अलंकृत है। इनके बाल कंधों तक फैले हैं, भुजाओं में बाजूबंद और गले में हार है। कुबेर महाराज के दोनों ओर यक्ष-यक्षिणी चंवर लिए सेवा में दिखते हैं, दरअसल अथर्ववेद में कुबेर को यक्षराज भी कहा गया है।
ओंकारेश्वर में स्थित कुबेर भंडारी का मंदिर:
ओंकारेश्वर में स्थित कुबेर भंडारी का मंदिर भी देश में काफी प्रसिद्ध है, मान्यता के अनुसार इस मंदिर में धनतेरस के दिन दर्शन करने मात्र से धन की देवी लक्ष्मी की कृपा होती है। ऐसे में इस मंदिर में दर्शन करने के लिए श्रद्धालुओं का आना जाना लगा रहता है। जब ओंकारेश्वर में श्रद्धालु आते हैं तो वहां एक बार दर्शन करने के लिए जरूर पहुंचते हैं।
यहां है कुबेर भंडारी का मंदिर
ओंकारेश्वर बांध बनने के पहले कुबेर भंडारी का मंदिर नर्मदा और कावेरी के संगम पर स्थापित था, लेकिन जब बांध बना तो इस मंदिर के लिए शासन ने एक ट्रस्ट बनाकर ओंकार प्रसादालय के पास स्थापित कर दिया, हालांकि पुराने मंदिर को विस्थापित नहीं कर पाए इसलिए वह डूब में चला गया। नवीन मंदिर में भी भक्त दर्शन करने के लिए जाते हैं। दीपावली के समय इस मंदिर में काफी भीड़ होती है।
ऐसे समझें कुबेर को
कुबेर लंकापति रावण के सौतेले भाई और शिवभक्त भी हैं, शिव की उपसना के दौरान भगवान शंकर खुश होकर इनको धनेश होने का आशीर्वाद दिया था, कुबेर के पास ही पुष्पक विमान था, जिसकी विशेषता यह थी कि चाहे जितने लोग बैठे एक सीट हमेशा खाली रहती है। लेकिन रावण ने उसे छीन लिया था। हालांकि रावण के मरने के बाद यह विमान वापस मिल गया। इसलिए इनकी पूजा करने से धन संपदा की कमी नहीं होती है।