रावण के तप से प्रसन्न होकर भगवान भोलेनाथ ने उसकी नाभि में अमृत कुंड बना दिया, जिससे उसे जीवन के लिए शक्ति मिलती थी। शिवजी के मंदिरों से अनेक परंपराएं जुड़ी हुई हैं लेकिन संभवत: यह पहला मंदिर है जहां भगवान से पहले रावण की पूजा की जाती हो। इसके पीछे यह मान्यता है कि अगर रावण की पूजा किए बिना शिवजी की पूजा की जाए तो भगवान उस पूजन का फल नहीं देते।
रावण ने शिव को अपने तप से किया था प्रसन्न पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार रावण ने भगवान शिव की तपस्या की। प्रसन्न होकर भगवान ने उसे वरदान मांगने के लिए कहा। वरदान में रावण ने स्वयं महादेव को ही मांग लिया। तब शिवजी ने उसे एक शिवलिंग दिया और उसे लंका ले जाने की आज्ञा प्रदान की। साथ ही यह शर्त भी रख दी कि लंका पहुंचने से पहले इसे मार्ग में कहीं मत रखना।
रावण शिवलिंग को लेकर आ रहा था। रास्ते में थकान के कारण उसने शिवलिंग को रख दिया। तब से यह हमेशा के लिए यहीं स्थापित हो गया। मगर इससे शिव के प्रति रावण की भक्ति में कमी नहीं आई। वह रोज लंका से आकर भगवान की पूजा करने लगा। वह शिवजी को कमल के सौ पुष्प रोज चढ़ाता था। जब उसकी पूजा सफल होने को थी, तब एक दिन ब्रह्माजी ने कमल का एक पुष्प अदृश्य कर दिया। रावण इससे तनिक भी विचलित नहीं हुआ। उसने अपना शीश शिवजी को चढ़ा दिया। इससे शिवजी बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने रावण को नाभि में अमृत कुंड होने का वरदान और इस स्थान को कमलनाथ महादेव का नाम दिया। तब से यह स्थान इसी नाम से जाना जाता है और यहां भगवान शिव से पहले रावण की पूजा होने लगी।