इस संबंध में ज्योतिष के जानकार पंडित सुनील शर्मा का कहना है कि आस्था और विश्वास का कोई भी रूप नहीं होता। साथ ही यह भी सत्य है कि जहां आस्था होती है, वहां चमत्कार भी होते हैं। ठीक इसके उलट यह भी उतना ही सही है कि जहां चमत्कार होते हैं, लोगों की आस्था वहां और भी बढ़ जाती है।
दरअसल भारत में कई ऐसे धर्मस्थल हैं, जिनका अपना कोई न कोई विशेष महत्व है, लेकिन मध्यप्रदेश के शाजापुर जिले में करीब 9 साल पहले हुई एक घटना ने यहां के लोगों को आश्चर्य में डाल दिया। इस जगह हुए चमत्कार से यहां के लोगों का भगवान के प्रति विश्वास और गहरा हो गया।
ऐसे में आज हम आपको मंदिर में हुउ एक ऐसी विचित्र घटना के बारे में बताने जा रहे हैं, जो आज भी भक्तों की आस्था और विश्वास की डोर को मजबूत करती दिखती है। बताया जाता है कि यह मंदिर मध्य प्रदेश के शाजापुर जिले में कालीसिंध नदी के किनारे एक माता मंदिर स्थित है। जहां ज्वाला देवी मंदिर की तरह 24 घंटे दीपक जलता रहता है।
यहां खास बात तो यह है कि जहां एक तरफ पानी से आग बुझ जाती है वहीं इस मंदिर का दीपक तेल या घी से नहीं बल्कि पानी से जलाया जाता है। वहीं इसका आज तक कोई कारण भी वैज्ञानिक नहीं ढ़ूंढ़ सके हैंं।
जानकारी के अनुसार मध्य प्रदेश के शाजापुर जिले के गड़ियाघाट मंदिर का रहस्य भी कुछ ऐसा ही है, यहां नौ सालों से एक पवित्र जोत प्रज्जवलित हो रही है। हालांकि देश में ऐसे अनेक मंदिर हैं, जहां इससे भी लंबी अवधि से दीये जल रहे हैं, लेकिन यहां जलने वाली इस जोत में काफी कुछ खास है। मंदिर के पुजारी का दावा है कि इस मंदिर में जो दीपक जल रहा है वह तेल या घी से नहीं नदी के पानी से जल रहा है। यानि दीपक में तेल नहीं बल्कि जल डाला जाता है। वहीं इस मंदिर में माता के चमत्कार से पानी पड़ते ही दीपक और ज्यादा तेजी से जलने लगता है।
पानी से दीया जला कैसे? ऐसे समझें पूरी कथा…
कालीसिंध नदी के किनारे आगर-मालवा के नलखेड़ा गांव से करीब 15 किलोमीटर दूर गाड़िया गांव के पास माता का यह मंदिर है। इस मंदिर को गड़ियाघाट वाली माता के मंदिर के नाम से जाना जाता है।
यहां के पुजारी का कहना है कि पूर्व में यहां देवी मां के सामने सामान्य तेल का दीपक ही जलाया जाता था, लेकिन 9 साल पहले एक रात स्वप्न में उन्हें मंदिर की देवी ने दर्शन दिए, माता ने ही उन्हें पानी से दीपक जलाने के लिए कहा।
जिसके बाद मां के आदेश पर सुबह उन्होंने ठीक वैसा ही किया। उन्होंने बताया कि इस चमत्कार के बारे में जब उन्होंने गांव के लोगों को इस बारे में बताया तो किसी ने उनका यकीन नहीं किया, लेकिन उन्होंने जब सबके सामने दीये में पानी डालकर जोत जलाई तो जोत प्रज्जवलित हो गई।
यहां तेल के बजाए पानी से जोत जलाए जाने का दावा किए जाने के बाद लोगों ने त्सुकतावश यहां आना शुरु किया। इस तरह मंदिर का गुणगान आस-पास के जगहों के साथ काफी दूर-दूर तक होने लगा। धीरे-धीरे मंदिर की प्रसिद्धि बढ़ती गई और आज दूर से यहां माता की चमत्कारी जोत का दर्शन करने के लिए आते हैं। नवरात्रों में तो यहां भारी संख्या में दर्शन के लिए आते हैं। कहा जाता है कि देवी के इस मंदिर के दर्शन से मनोकामनाएं शीघ्र पूर्ण होती हैं।
नदी के पानी का होता है इस्तेमाल
पानी से दीपक का जलना वाकई एक अद्भुत घटना है जिस पर यकीन करना मुश्किल है। इस बारे में पुजारी का दावा है कि दीये में कालीसिंध नदी का पानी डाला जाता है। जब दीये में पानी डाला जाता है, तो वह चिपचिपा तरल हो जाता है, जिससे दीपक लगातार जलता रहता है।
इस चमत्कारी घटना के इलाकों में फैलने के चलते श्रद्धालु यह चमत्कार देखने आने लगे। वहीं पुजारी क अनुसार पानी से जलने वाला ये दीया बरसात के मौसम में नहीं जलाया जाता है। उनका कहना है कि वर्षाकाल में कालीसिंध नदी का जल स्तर बढ़ने से यह मंदिर पानी में डूब जाता है। जिससे यहां पूजा करना संभव नहीं होता है। इसके बाद शारदीय नवरात्रि के प्रथम दिन यानी पड़वा तिथि से दोबारा जलाई जाती है, जो वर्षा ऋतु के आने तक जलती रहती है।