मंदिर

39 साल में बनकर तैयार हुआ था एशिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर, पत्थरों से आती है डमरू की आवाज

Highest Temple in Asia हिमाचल प्रदेश की पहाडिय़ों में स्थापित यह मंदिर अपने चमत्कारों के लिए देश-दुनिया में प्रसिद्ध है। इस मंदिर के बारे में बताया जाता है कि मंदिर में लगे पत्थरों को यदि आप हाथ से थपथपाते हैं, तो आपको डमरू की आवाज आती है।

Mar 01, 2023 / 11:08 am

Sanjana Kumar

Highest Temple in Asia भारत एक ऐसा देश जो अपने अनोखे इतिहास और रोचक कथाओं के साथ ही मंदिरों और उनके रहस्यों के लिए दुनिया भर में जाना जाता है। भारत के पौराणिक मंदिरों की एक लिस्ट तैयार की जाए ऐसे हजारों मंदिर मिल जाएंगे जो एक रोचक इतिहास अपने में समेटे होंगे, तो कुछ रहस्यमयी और कुछ के चमत्कार आपको दैवीय शक्तियों के बारे में सोचने को मजबूर कर देंगे। पत्रिका.कॉम के इस लेख में आज हम आपको बता रहे हैं एक ऐसे ही शिव मंदिर के बारे में जिसे एशिया के सबसे ऊंचे शिव मंदिर के रूप में जाना जाता है। इस शिव मंदिर का नाम है जटोली शिव मंदिर। हिमाचल प्रदेश की पहाडिय़ों में स्थापित यह मंदिर अपने चमत्कारों के लिए देश-दुनिया में प्रसिद्ध है। इस मंदिर के बारे में बताया जाता है कि मंदिर में लगे पत्थरों को यदि आप हाथ से थपथपाते हैं, तो आपको डमरू की आवाज आती है।

महाशिवरात्रि पर यहां उमड़ता है जनसैलाब
जटोली शिव मंदिर हिमाचल प्रदेश के सोलन शहर से करीब सात किमी की दूरी पर स्थित है। महाशिवरात्रि के दिन यहां श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। खासकर महाशिवरात्रि और सावन माह में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। स्थिति यह होती है कि दर्शन करने में भक्तों को घंटों इंतजार करना होता है।

 

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जटोली शिव मंदिर 39 साल में हुआ तैयार
माना जाता है कि भगवान शिव ने इस स्थान पर तपस्या की थी। बाद में यहां स्वामी कृष्ण परमहंस आए और उन्होंने भी यहां तपस्या की। मान्यता है कि कृष्ण परमहंस के कहने पर ही इस शिव मंदिर का निर्माण कराया गया था। जानकारी के अनुसार, मंदिर को बनाने में करीब 39 साल लग गए थे। कहा जाता है कि मंदिर में लगे पत्थरों को थपथपाने से एक खास तरह की आवाज आती है, जो डमरू जैसी सुनाई पड़ती है।

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जलकुंड
जटोली शिव मंदिर के पास ही एक जलकुंड भी स्थित है और इस जलकुंड से जुड़ी एक कहानी भी यहां प्रचलित है। साल 1950 में जब स्वामी कृष्णानंद परमहंस यहां आए थे, तब सोलन में पानी की कमी चल रही थी। पानी की कमी के कारण यहां के लोगों को काफी मुश्किलों में जीवन गुजारना पड़ता था। ऐसे में स्वामी कृष्णानंद परमहंस ने घोर तपस्या की और फिर शिव ने अपने त्रिशूल से प्रहार किया और जल की धारा फूट पड़ी। तभी से यहां जलकुंड अस्तित्व में हैं। माना जाता है कि तब से आज तक इस स्थान पर पानी की कमी की परेशानी नहीं हुई। यहां के लोग मानते हैं कि त्रिशूल से बने इस जलकुंड के पानी से स्नान करने पर शरीर निरोगी हो जाता है।

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यह भी जानें

– जटोली शिव मंदिर के गुंबद की ऊंचाई 111 फीट बताई जाती है।
– हाल ही में इस मंदिर पर 11 फीट लंबा स्वर्ण कलश चढ़ाया गया है।
– मंदिर की कुल ऊंचाई 122 फीट तक है।
– जटोली शिव मंदिर में प्रवेश करने के लिए ही श्रद्धालुओं को 100 सीढिय़ां चढऩी पड़ती हैं।
– मंदिर के बाहर और चारों तरफ अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित की गई हैं।
– पहाड़ों पर मौजूद होने के कारण चारों तरफ प्रकृति का बहुत अच्छा नजारा भी देखने को मिलता है।
– एशिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर होने के कारण यह पर्यटन के लिहाज से भी काफी महत्वपूर्ण माना जाता है।
– जटोली शिव मंदिर के अंदर स्फटिक मणि शिवलिंग है।
– इस मंदिर में भगवान भोलेनाथ के साथ माता पार्वती भी विराजमान हैं।
– मंदिर का भवन देखने लायक है और मंदिर के चारों तरह पहाड़ और जंगल होने से इस खूबसूरती भी बढ़ जाती है।
– भव्य होने के साथ ही शिव मंदिर में काफी बारीक कारीगरी की गई है। यही कारण है कि इस मंदिर को बनाने में 39 साल लगे थे।
– शिव मंदिर का निर्माण द्रविड़ शैली से किया गया है, जिसकी नक्काशी अद्भुत है।

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