सूरत जिले की बारडोली तहसील में बारडोली के बाद दूसरा महत्वपूर्ण योगदान सरभोण गांव का रहा है। बारडोली सत्याग्रह की जानकार प्रज्ञा कलार्थी ने बताया कि वर्ष 1921 में बापू ने जब असहयोग आंदोलन वापस लिया, उन्होंने आंदोलन में शामिल रहे स्वतंत्रता सेनानियों को गांवों में जाकर काम करने के लिए कहा था। गांधीजी की प्रेरणा से जुगतराम दवे, उत्तमचंद शाह, छोटुभाई देसाई, डॉ. त्रिभुवनदास शाह, डॉ. मंगलदास, नरहरी परिख समेत अन्य असहयोग आंदोलन के नेताओं ने सरभोण गांव को चुना और यहां आश्रम की स्थापना की।
आश्रम से किसानों के साथ ही आदिवासी लोगों में जागृति लाने के लिए प्रौढ़ शिक्षा, रात्रि शिक्षा, बुनाई शाला, व्यसन मुक्ति, आंगनवाड़ी, नारी सशक्तीकरण जैसी रचनात्मक गतिविधयां संचालित की गईं। अग्रेज जब भी बारडोली में स्वराज आश्रम को सील करते थे, गतिविधियों का केंद्र यही सरभोण आश्रम बनता था। धीरे-धीरे सरभोण आश्रम सेनानियों की छावनी में तब्दील हो गया था।
अब चलता है सहकारी मंडली का दफ्तर सरभोण आश्रम में जिस जगह डॉ. त्रिभुवनदास और डॉ. मंगलदास ने दवाखाना शुरू किया था, वहां फिलहाल सरभोण विभाग विविध कार्यकारी आपबल सहकारी मंडली का दफ्तर संचालित हो रहा है। आश्रम के पीछे अब भी हलपति सेवा संघ संचालित उत्तर बुनियादी शाला चल रही है, जिसमें सूरत, तापी, नर्मदा, डांग, वलसाड समेत दक्षिण गुजरात के आदिवासी बच्चे शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं।
लोगों को संगठित करने में विशेष योगदान स्वराज आश्रम के साथ ही सरभोण आश्रम का भी बारडोली सत्याग्रह के दौरान लोगों को संगठित करने में विशेष योगदान रहा है। स्वराज आश्रम के प्रमुख भिखा पटेल ने बताया कि गांधीजी ने इस क्षेत्र में किसानो की समस्या के साथ ही हलपति समाज और अन्य आदिवासी समाज में शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया था। उस समय स्वराज आश्रम के तहत सरभोण समेत अलग-अलग क्षेत्रों में आश्रम स्थापित किए गए थे। सरभोण के इस आश्रम को मरम्मत की दरकार है। स्थानीय लोग लंबे अरसे से सरकार से आश्रम को बचाने की मांग कर रहे हैं।
श्री भुवन था जो हो गया सरभोण गांव का मूल नाम श्री भुवन यानी देवों और ऋषियों का घर था। बाद में इसे सुर भवन कहा जाने लगा। सुर भवन से अब यह सरभोण गांव के नाम से पहचाना जा रहा है। नामों के उच्चारण में आ रहे अंतर के कारण श्री भुवन गांव सरभोण बन गया।