एएसआई के अफसरों की मानें तो वर्ष 1973 से 1977 तक मथुरा उत्खनन में जो प्रमाण मिले थे, उसमें मथुरा की प्राचीनता पुरातात्विक तिथि के अनुसार 2600 से 2700 साल वर्ष पूर्व की आंकी गई थी, जबकि इस उत्खनन के बाद मथुरा की प्राचीनता 5100 साल पुरानी होने के प्रमाण मिल रहे हैं। पहले उत्खनन में पीजीडब्ल्यू संस्कृति के पात्रों में केवल 5 टुकड़े ही प्राप्त हुए थे और नियमित जमाव तो मिला नहीं था, जबकि बहज में सैकड़ों मिट्टी के बर्तन मिले हैं, ये भगवान श्रीकृष्ण के समय के बताए जा रहे हैं। कुछ प्रमाण भगवान श्रीकृष्ण के पहले के मानव जीवन के भी बताए जा रहे हैं।
– बहज उत्खनन में मध्य पाषाण कालीन संस्कृति के भी प्रमाण मिले है। हालांकि अधिकारियों ने इसकी जानकारी देने से मना कर दिया।
– यहां हड्डियों से निर्मित औजार भी मिल चुके है, जिसमें सूई के आकार के ऐसे अनूठे औजार शामिल है, जो पहले देश में कहीं भी नहीं मिले हैं।
– एएसआई ने बहज गांव में 10 जनवरी 2024 से उत्खनन कार्य शुरू किया
– खुदाई में सबसे कुषाण कालीन अवशेष, उसके बाद शुंग कालीन, मौर्य कालीन, महाजनपद कालीन संस्कृति के भी अवशेष मिले हैं।
बहज में 10 जनवरी से उत्खनन कार्य चल रहा है, इसमें पुरास्थल के नीचे विश्व में पहली बार पुरातात्विक उत्खनन में विलुप्त नदी के प्रमाण मिले हैं। इसमें विभिन्न प्राचीन संस्कृतियों के ऐसे प्रमाण भी मिले हैं, जो भारतीय पुरातत्व संबंधी अध्ययन को नए आयाम देंगे।
– विनय कुमार गुप्ता, अधीक्षण पुरातत्वविद्, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण जयपुर मंडल