शहडोल. राज्य परिवहन के पहिए थमने के बाद इसकी पूरी संपत्ति खुर्द-बुर्द हो गई। नगर के गोरतरा स्थित डिपो की भूमि नीलाम हो गई और पुराने बस स्टैण्ड स्थित टिकट काउंटर व बसों के खड़े होने के स्थान पर नगर पालिका ने काम्पलेक्स बना दिया। संभागीय मुख्यालय में राज्य परिवहन निगम की निशानी के रूप में गोरतरा में एक टूटा फूटा शेड व एक पूरी तरह से कबाड़ हो चुकी बस खड़ी है। जगह की नीलामी हो जाने की वजह से इसे भी समाप्त कर जल्द ही यहां बड़ी-बड़ी इमारतें खड़ी हो जाएंगी। उल्लेखनीय है कि आम जन की सुविधा के लिए अलग-अलग रूटों पर राज्य परिवहन निगम की बसों का संचालन किया जा रहा था। जानकारों का कहना है कि मुख्यालय से 20-25 बसों का संचालन होता था। इन बसों के संचालन के लिए परिचालक से लेकर मैनेजर तक नियुक्त किए गए थे। इसके संचालन के लिए शासन स्तर से फंड जारी होता था। इसके बाद भी राज्य परिवहन का घाटा बढ़ता गया और एक दिन इसे बंद करने की नौबत आ गई। कर्मचारियों को परिवहन सहित अन्य विभागों में नियुक्त कर दिया गया। बसों व अन्य संपत्ति की भोपाल स्तर से नीलामी हो गई और जो कुछ अन्य संपत्ति थी वह भी खुर्द-बुर्द हो गई।
किराए से चलता था डिपो, गोरतरा में हुआ शिफ्ट
जानकारी के अनुसार शुरुआती दौर में राज्य परिवहन निगम का बस डिपो नगर के बुढ़ार चौक से नए बस स्टैण्ड रोड स्थित बडेरिया टाइल्स के पास बाडे में किराए पर संचालित था। यहां बकायदे बसों को खड़ा करने के साथ ही मेंटेनेंस, डीजल के लिए पेट्रोल पंप, कर्मचारियों के कार्यालय के साथ ही अन्य व्यवस्थाएं थी। इसके बाद गोरतरा पेट्रोल पंप के पीछे लगभग छह एकड़ भूमि राज्य परिवहन के बस डिपो के लिए एलाट की गई थी। यहां भी वाहनों के मेंटेनेंस सहित अन्य व्यवस्थाएं बनाई गई थी।
रूट पर नहीं दौड़ती थी प्राइवेट बसें
पुराने बस स्टैण्ड से अलग-अलग रूटों में राज्य परिवहन की बसें दौड़ती थी। बस ओनर्स एसोसिएशन के जिलाध्यक्ष महंत गौतम ने बताया कि जिन रूटों में राज्य परिवहन की बसों का संचालन होता था उनमें प्राइवेट बसों के संचालन की अनुमति नहीं थी। मुख्यालय से रीवा, सीधी, इलाहाबाद, अंबिकापुर, सतना, शहपुरा सहित अन्य मार्गों में राज्य परिवहन की बसों का संचालन होता था।
बस स्टैंड से डिपो तक तैनात थे कर्मी
राज्य परिवहन में सेवा देने वाले पवन मिश्रा ने बताया कि मुख्यालय से राज्य परिवहन की लगभग 20-25 बसें चलती थी। इनके संचालन के लिएबस स्टैण्ड के साथ ही डिपो में भी कर्मचारी नियुक्त थे। इनमें बस चालक, परिचालक, राज्य परिवहन के क्लर्क, मैनेजर, टिकट काउंटर कर्मचारी, एनाउंसमेंट कर्मचारी, वर्कशॉप हेल्पर, सुपरवाइजर, स्टोर कीपर मिलाकर लगभग 100 से अधिक कर्मचारी तैनात थे।
बढ़ता गया खर्चा, कम नहीं हुआ घाटा
जानकारों की माने तो राज्य परिवहन का संचालन आम जन की सुविधा को ध्यान में रखकर किया जा रहा था। इनके विधिवत संचालन के लिए शासन स्तर से फंड भी जारी होता था। इसका खर्चा बढ़ता गया और बसों के संचालन से जो पैसे आते थे वह भी पूरी तरह से जमा नहीं होते थे। निचले स्तर पर ही कर्मचारियों ने गड़बड़ी शुरु कर दी थी। ऐसे में घाटा बढ़ता गया और धीरे-धीरे बसों के संचालन को बंद करने की नौबत आ गई।
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