जानकारों के अनुसार रोहिड़ा की लकड़ी बेहद उपयोगी मानी जाती है। इसकी इमारती लकड़ी का फर्नीचर बनाने में ज्यादा उपयोग किया जाता है। जबकि असल में यह एक प्रकार की आयुर्वेदिक औषधि भी है। कहते हैं कि इसकी शाखा को पानी के गिलास में रात भर रखकर सुबह पी ले, तो शुगर और रक्तचाप के रोगियों के लिए बेहद लाभप्रद है। इसके अलावा फोड़े-फुंसियों पर इसकी छाल को पानी में घिसकर लगाने से भी रोगी के फोड़े-फुंसी ठीक हो जाते हैं।
थळी अंचल (रेतीले इलाके) की सूखी धरती का रोहिड़ा व इसके कसुमलरंगी फूल ही असली गहना है, जो मरुस्थलीय धरती के किसी श्रृंगार से कम नहीं हैं। किसी जमाने में तो यह क्षेत्र रोहिड़ा का हब रहा है और कम पानी में भी यह हरा-भरा रहता है। साथ ही यह एक मजबूत पेड़ है और इसकी तासीर भी शीतलता प्रदान करता है, लेकिन समय के साथ इसकी संख्या दिनोंदिन घटती जा रही है और सरकारी रोक के बावजूद चोरी-छिपे इसकी कटाई हो रही है। इसकी लकड़ी टिकाऊ भी होती है। कई जगह लोग घरों में दरवाजे-खिड़कियां व आलीशान फर्नीचर बनाने के लिए इसकी कटाई कर रहे हैं। पूर्व में वन विभाग इन पेड़ों को खूब लगाता था, लेकिन वो भी आज दिलचस्पी नही दिखा रहा है।
राजस्थान में रोहिड़ा बीकानेर जिले के साथ ही जोधपुर, चूरू, सीकर, नागौर, जालौर, पाली, जैसलमेर आदि क्षेत्रों में भी बहुतायत में उगता है। यह धोरों की धरती का राजा भी है। इसका पुष्प राजस्थान का राज्य पुष्प माना जाता है। जब इसके फूल खिलते हैं, तो रंग लाल होता है और कुछ दिनों बाद यह केशरिया रंग में बदल जाता है। जिसके कसुमल रंग पर कई गीत भी गाए जाते हैं। इसे टीकोवेला अंडुलिका के वैज्ञानिक नाम से भी पुकारा जाता है।