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World Day Against Child Labour: कोरोना काल में बच्चों को बालश्रम से बचाने की कोशिशें ज्यादा करनी होंगी

जनगणना 2011 के अनुसार भारत में 14 वर्ष से कम उम्र के 10.1 मिलियन (1.1 करोड़) बाल मजदूर हैं। इनमें 56 लाख लड़के और करीब 45 लाख लड़कियां हैं।

Jun 11, 2020 / 03:58 pm

Mohmad Imran

World Day Against Child Labour: कोरोना काल में बच्चों को बालश्रम से बचाने की कोशिशें ज्यादा करनी होंगी

कोरोना वायरस (NOVEL Corona virus COVID-19) संक्रमण से दुनिया के हर देश में अर्थव्यवस्था और स्वास्थ्य सुविधाएं धराशायी हो गई हैं। नौकरियां जानें और बेरोजगारी (UNEMPLOYMENT DUE TO CORONA VIRUS PANDEMIC) बढऩे की दर हर गुजरते दिन के साथ लगातार ऊपर की ओर जा रही है। ऐसे में परिवार का पेट पालने का संकट बच्चों का बचपन भी छीन रहा है। शुक्रवार को वल्र्ड डे अगेंस्ट चाइल्ड लेबर (World Day Against Child Labour) है। इस साल की थीम को कोरोना संक्रमण से जोड़ते हुए इसका बच्चों पर पडऩे वाले असर पर रखी गई है। बच्चों के लिए काम करने वाली वैश्विक संस्था यूनिसेफ ने कहा है कि कोरोना महामारी के दौर में हमें बालश्रम के विरोध में और मजबूती से खड़ा होना होगा। यूनिसेफ (UNICEF) का मानना है कि महामारी में सबसे ज्यादा प्रभावित छोटे बच्चे ही होते हें क्योंकि उनकी अपने परिवार पर निर्भरता सबसे ज्यादा होती है। बेरोजगारी और महामारी से उत्पन्न आर्थिक संकट दुनिया के विभिन्न देशों में लाखों-करोड़ों बच्चों को बालश्रम (CHILD LABOUR) की ओर धकेल सकती हैं।
कोरोना से बढ़ेगा बालश्रम (CHILD LABOUR WILL INCREASE DUE TO COVID-19)
यूनिसेफ संस्था का मानना है कि कोरोना से प्रभावित होने वालों में बच्चे पहले पायदान पर खड़े हैं। यूनिसेफ के अनुसार दुनियाभर में पहले से ही 152 मिलियन (15.2 करोड़) बच्चे बालश्रम से जुड़े हुए हैं। इसमें एक बड़ा हिस्सा दक्षिण एशिया में भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश जैसे विकासशील देशों में ज्यादा है। इतना ही नहीं 72 मिलियन (करीब 7.2 करोड़) तो बेहद जटिल और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक कामों में संलिप्त हैं। महामारी के इस दौर में ये बच्चे पहले से ज्यादा कमजोर ओर असुरक्षित हो गए हैं। काम के लंबे घंटों के बावजूद असुरक्षित माहौल में ये बच्चे काम करने को विवश हैं।
World Day Against Child Labour: कोरोना काल में बच्चों को बालश्रम से बचाने की कोशिशें ज्यादा करनी होंगी
कोरोना: 8.6 करोड़ बच्चे गरीबी रेखा में
हाल ही यूनिसेफ और बच्चों के लिए काम करने वाले एक सामाजिक संगठन सेव द चिल्ड्रन (save the children) के नए अध्ययन में सामने आया कि कोरोना वायरस के कारण हाशिए पर पहुंची वैश्विक अर्थव्यवस्था के कारण साल 2020 के अंत तक निम्न और मध्यम आय वाले देशों में गरीबी रेखा वाले घरों में रहने वाले बच्चों की संख्या में 8.6 करोड़ (86 मिलियन) तक की वृद्धि हो सकती है। यूनिसेफ के कार्यकारी निदेशक हेनरीटा फोर ने अध्ययन के हवाले से कहा कि नोवेल कोरोना वायरस के कारण उत्पन्न वित्तीय चुनौतियों से बेरोजगार और गरीब एवं निम्न आय वर्ग वाले परिवारों को बचाने के लिए तत्काल कार्रवाई ही एकमात्र उपाय है।
World Day Against Child Labour: कोरोना काल में बच्चों को बालश्रम से बचाने की कोशिशें ज्यादा करनी होंगी
दो तिहाई अकेले गरीब देशों में
अगर सरकारें ऐसा नहीं करेंगी तो इन निम्न और मध्यम आय वाले देशों में गरीबी रेखा वाले घरों में रहने वाले बच्चों की संख्या 67.2 करोड़ (672 मिलियन) तक पहुंच सकती है। इनमें से करीब दो-तिहाई बच्चे अकेले उप-सहारा अफ्रीका और दक्षिण एशिया में ही होंगे। जबकि यूरोप और मध्य एशिया के देशों में ऐसे बच्चों की आबादी में 44 फीसदी का उछाल आ सकता है। वहीं बात करें लैटिन अमरीका और कैरिबियाई देशों की तो यहां भी 22 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है। जनगणना 2011 के अनुसार भारत में १14 वर्ष से कम उम्र के 1 crore बाल मजदूर हैं। इनमें 5.6 लाख लड़के और करीब 4.5 लाख लड़कियां हैं। यूनिसेफ और सेव द चिल्ड्रन ने चेतावनी देते हुए कहा कि इस महामारी के कारण वैश्विक आर्थिक संकट का प्रभाव दो गुना हो गया है। बेरोजगार होने का तत्काल नुकसान यह है कि परिवारों के सामने भोजन, पानी, चिकित्सा सहित अन्य मूल आवश्यकताओं को पूरा करने का यक्ष प्रश्न खड़ा है। इससे आने वाले समय में भारत समेत अन्य विकासशील देशों में बाल विवाह, हिंसा, शोषण और दुव्र्यवहार में वृद्धि होने की आशंका भी है।
World Day Against Child Labour: कोरोना काल में बच्चों को बालश्रम से बचाने की कोशिशें ज्यादा करनी होंगी
वल्र्ड डे अगेंस्ट चाइल्ड लेबर का इतिहास
हर साल 12 जून को बाल श्रमिकों की दुर्दशा उजागर करने के लिए सरकारों, नियोक्ताओं और श्रमिक संगठनोंएवं नागरिक समाज के साथ-साथ दुनिया भर के लाखों लोगों को जागरूक करता है और उनकी मदद के लिए कई कैंपेन भी चलाए जाते हैं। 5 से 17 आयु के कई बच्चे ऐसे काम में लगे हुए हैं जो उन्हें सामान्य बचपन से वंचित करते हैं। 2002 में, संयुक्त राष्ट्र की संस्था इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन ने इसी वजह से वल्र्ड डे अगेंस्ट चाइल्ड लेबर की शुरुआत की थी।

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