इस बार गूंजेंगे मेड इन इंडिया पटाखे
– चीनी पटाखों को मात देने की तैयारी-90 फीसदी उत्पादन अकेले शिवकाशी से- उत्पादन घटा, डिमांड भी कम रहने के आसार
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चेन्नई. चीनी सामग्री के बहिष्कार व स्वदेशी को बढ़ावा देने की मुहिम का असर इस बार पटाखों पर दिख सकता है। पारंपरिक पटाखों की जगह अब हरित पटाखों ने ली है लेकिन ये पटाखे अपेक्षाकृत महंगे हैं। सस्ते होने के चलते लोग अब तक चीनी पटाखे अधिक खरीदते रहे हैं। चीन से अवैध तरीके से आ रहे पटाखों का मुद्दा राज्य एवं केन्द्र सरकार के समक्ष भी उठाया है। प्रधानमंत्री के मेक इन कैम्पेन को बढ़ावा मिल सकता है। ऐसे में इस बार मेड इन इंडिया पटाखों की गूंज सुनाई देगी।
पटाखा उद्योग का हब
भारत में आपूर्ति किए जाने वाले पटाखों में शिवकाशी का योगदान 90 फीसदी है। पटाखा इण्डस्ट्री का बिजनेस करीब छह हजार करोड़ का है। करीब आठ लाख परिवार इस बिजनेस पर निर्भर हैं। तमिलनाडु के शिवकाशी एवं आसपास पटाखा बनाने वाली इकाइयां लॉकडाउन के चलते 42 दिन बन्द रही। पटाखा निर्माता इकाइयों से जुड़े लोगों का कहना है कि इस बार दीपावली पर 40 फीसदी उत्पादन कम रहने की उम्मीद है। शिवकाशी देश के पटाखा उद्योग का हब है। यहां रजिस्टर्ड पटाखा निर्माताओं की संख्या 1070 है। छोटी-बड़ी मिलाकर करीब दो हजार इकाइयां हैं। बिना प्रोपर लाइसेंस व सुरक्षा नियमों का पालन करते कई उत्पादन इकाइयां भी कार्यरत हैं। निरंतर चलने वाली औद्योगिक गतिविधियों के कारण इसे भारत का कुटी जापान या मिनी जापान भी कहा जाता है।
अभी 70 फीसदी इकाइयां ही चालू
तमिलनाडु फायर वक्र्स एंड अमोरसेज मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (तनफामा) के अनुसार लॉकडाउन के बाद भी अभी 70 फीसदी इकाइयां ही शुरू हो पाई है। ये इकाइयां 50 फीसदी कर्मचारियों, सोशल डिस्टेंस व व्हीकल पास की पालना के साथ काम कर रही है। पटाखा इकाइयों को लॉकडाउन से करीब 300 करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ा है। अब इकाइयां शुरू हुई तो आधे कर्मचारी ही कार्यरत हंै।
पारम्परिक पटाखों पर 2018 से प्रतिबंध
प्रदूषण के मद्देनजर 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने पारम्परिक पटाखों पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसके बाद पटाखा निर्माता इकाइयों ने श्रमिकों को पर्यावरण के अनुकूल हरित पटाखे बनाना सिखाया। इन पटाखों के निर्माण एवं श्रमिकों के प्रशिक्षण के लिए नागपुर के वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद ( सीएसआईआर) और राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (एनईईआरआई) का सहारा लिया। बैरियम नाइट्रेट के वैकल्पिक रसायन का इस्तेमाल कर हरित पटाखे बनाए। हरित पटाखों के इस्तेमाल से प्रदूषक तत्व 30 फीसदी तक कम हुए। इसमें ध्वनि प्रदूषण को 160 डीबी से नीचे लाकर 125 डीबी तक किया गया। हालांकि यह अब भी तय किए गए 90 डीबी से अधिक है।
क्या है ग्रीन पटाखे
सुप्रीम कोर्ट ने पटाखों में इस्तेमाल में होने वाले बेरियम नाइट्रेट, एंटीमोनी, लिथियम, मर्करी, आर्सेनिक व लेड आदि केमिकल्स पर पाबंदी लगाई थी। इनमें बेरियम नाइट्रेट सबसे खतरनाक है। ग्रीन पटाखों में बेरियम नाइट्रेट का इस्तेमाल नहीं होता। इसके अलावा एल्युमिनियम की मात्रा कम रखी जाती है। राख का इस्तेमाल नहीं किया जाता। कई केमिकल का इस्तेमाल न होने की वजह से ग्रीन पटाखे केवल सफेद व पीली रोशनी देते हैं। समस्या यह है कि 70 से 80 रुपए किलो वाले बेरियम नाइट्रेट की जगह तीन से साढ़े तीन हजार रुपए किलो वाला पोटेशियम पेरियोडेट इस्तेमाल करना पड़ रहा है। ऐसे में ग्रीन पटाखे अपेक्षाकृत अधिक महंगे पड़ रहे हैं। बेरियम नाइट्रेट के बिना ग्रीन पटाखे में केवल चकरी, अनार, लड़ी, फूलझडी, पेंसिल आदि ही बनाए जा सकते हैं लेकिन इनकी मांग बहुत कम है।
पटाखा कारोबार : एक नजर
– 1100 उत्पादन इकाइयां
– आठ लाख लोगों को रोजगार
– सालाना छह से साढ़े छह हजार करोड़ का बिजनेस
– 2018 से पारम्परिक पटाखों पर प्रतिबंध
– मौजूदा समय में ग्रीन पटाखों का चलन
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