रामपुरा निवासी भानु कुमार ओझा और अर्जुन मिस्त्री की यह कहानी ढाई दशक पुरानी है। ओझा बताते हैं कि जब वे सिरोही में कक्षा 4 में पढ़ते थे, तब उनके पड़ोस में किराए पर रहने वाले अर्जुन मिस्त्री से उनकी दोस्ती हुई।
उम्र में फासला होने के बावजूद दोनों साथ-साथ खेले-कूदे और आगे बढ़े। बाद में अर्जुन मिस्त्री जयपुर चले गए। वे अकेले ही थे। उनके आगे-पीछे कोई नहीं था। 70 वर्षीय बुजुर्ग अर्जुन कुमार की पिछले दिनों तबीयत बिगड़ गई। मित्र भानु कुमार सिरोही से जयपुर गए। उनको जयपुर से रामपुरा लेकर आए। यहां दोस्त की सेवा की।
आर्थिक हालत कमजोर, फिर भी निभाई मित्रता
भानु कुमार ओझा की आर्थिक हालत कमजोर होने के बावजूद उन्होंने पूरी शिद्दत से मित्रता निभाई और मानवता के नाते उन्होंने अपने मित्र अर्जुन का स्वयं के पैसे से इलाज कराया।
सिरोही से इलाज के लिए उदयपुर भी ले गए, लेकिन उनको बचा नहीं सके। मिस्त्री आरएसएस से जुड़े रहे। उन्होंने राम जन्म भूमि आंदोलन में भी हिस्सा लिया था।
अंतिम समय भी निभाया फर्ज
ओझा अपने दोस्त का शव गांव रामपुरा लेकर आए और विधि-विधान के साथ अंतिम संस्कार किया। बाद में अजारी के मार्कंडेश्वर जाकर अस्थियों का विसर्जन किया। इस पूरे घटनाक्रम में ओझा के परिवार ने भी पूरा सहयोग किया। ओझा खुद रामपुरा में किराए के मकान में रहते हैं।
अर्जुन मिस्त्री ने श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन में लिया था हिस्सा
अर्जुन मिस्त्री आरएसएस के वरिष्ठ स्वयंसेवक थे। अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन में कारसेवक के रूप में हिस्सा लिया था। उन्होंने आदर्श विद्या मंदिर में कई साल तक सेवाएं दी। पूरा जीवन प्रचारक के रूप में बिताया। मिस्त्री एयरफोर्स में थे, लेकिन 1975 में आपातकाल के समय 24 घंटे थाने के अंदर बंद रहने से उनको नौकरी से हटा दिया था। मृत्यु से पहले वे जयपुर से आगे कुंडा गांव में अवसादग्रस्त रूप में एक कमरे में रहते थे। माता व भाई की मृत्यु होने के बाद उनके आगे पीछे कोई नहीं था और खुद भी 70 वर्ष के थे।