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हिंदी दिवस विशेष: शेखावाटी के कालजयी कलमवीरों ने राष्ट्रीय व अन्र्तराष्ट्रीय मंच तक पहुंचाई राष्ट्रभाषा

राष्ट्रपति महात्मा गांधी ने राष्ट्रभाषा को राष्ट्र की आवाज कहा था। इसी आवाज को अन्तरराष्ट्रीय मंचों तक पहुंचाने में शेखावाटी के साहित्यकारों की भी महती भूमिका रही है।

सीकरSep 14, 2022 / 12:06 pm

Sachin

हिंदी दिवस विशेष: शेखावाटी के कालजयी कलमवीरों ने राष्ट्रीय व अन्र्तराष्ट्रीय मंच तक पहुंचाई राष्ट्रभाषा

सचिन माथुर
सीकर. राष्ट्रपति महात्मा गांधी ने राष्ट्रभाषा को राष्ट्र की आवाज कहा था। इसी आवाज को अन्तरराष्ट्रीय मंचों तक पहुंचाने में शेखावाटी के साहित्यकारों की भी महती भूमिका रही है। इनमें साहित्य के साथ पत्रकारिता के माध्यम से हिंदी की सेवा कर पद्म भूषण सम्मान पाने वाले झुंझुनूं के जसरापुर निवासी पं. झाबरमल शर्मा व युगोस्लाविया में विश्व कविता समारोह में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले चूरू के मणि मधुकर जैसे लेखक शामिल हैं, जो अपने हिंदी लेख, कविता- कहानियों, निबंध, उपन्यास और साहित्य के माध्यम से हिंदी जगत में अमिट हस्ताक्षर बन चुके हैं। हिंदी दिवस पर आज हम ऐसे ही कुछ हिंदी सेवकों से परिचय करवा रहे हैं, जिनके लेख इतिहास के पन्नों में अमर आलेख के रूप में लिपिबद्ध हैं।

पत्रकारिता के साथ हिंदी की सेवा
पत्रकारिता जगत के पुरोधा और पद्म भूषण पंडित झाबरमल शर्मा का संबंध झुंझुनूं के खेतड़ी कस्बे के जसरापुर गांव से रहा। उनके हिंदी लेखन में योगदान को देखते हुए उन्हें महाराणा कुंभा पुरस्कार, अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा साहित्य वाचस्पति की पदवी, राजस्थान अकादमी का साहित्यकार सम्मान और साहित्य मनीषी की उपाधि से सम्मानित किया गया। देश के उपराष्ट्रपति से प्राप्त राजस्थान मंच का अभिनंदन ग्रंथ और 1980 में राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी से पद्म भूषण अलंकरण सम्मान से उन्होंने शेखावाटी और साहित्य दोनों का गौरव बढ़ाया। 1888 में जन्मे पंडित झाबरमल ने कोलकाता से ज्ञानोदय, मारवाड़ी बंधु व कलकत्ता समाचार और मुंबई से भारत समाचार पत्र निकाला। 1911 में प्रयाग में अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन में शामिल होने के अलावा उन्होंने गद्य में हिंदी गीता रहस्य सार, खेतड़ी नरेश और विवेकानंद जैसी 14 और पद्य में तिलक गाथा और गांधी गुणानुवाद जैसी चार रचानाएं लिखी। कारावास की कहानी, गणेश शंकर विद्यार्थी, यूरोप का महायुद्ध और भारतीय दर्शन जैसे कई प्रसिद्ध पत्रों का संपादन कर हिंदी साहित्य और पत्रकारिता के मूल्यों को पराकाष्ठा तक पहुंचाया।

अनुपम है सुधाकर शास्त्री की कविता व कृपाराम के दोहे
सीकर में हिंदी को सशक्त करने वाले साहित्यकारों में सुधाकर शास्त्री, कृपाराम बारहठ, सुमेर सिंह शेखावत, पंडित हनुमतप्रसाद पुजारी आदि का नाम प्रमुखता से शामिल हैं। इनमें सुधाकार शास्त्री की सांप्रदायिक सौहार्द पर लिखी कविता ‘मैं करूं इबादत भगवान से, तू करे इबादत अल्लाह से’ आज भी लोगों के स्मृति पटल पर अंकित है। कृपा राम बारहठ के राजिये के दोहे और सुंदरदास की रचनाएं भी कालजयी है। सुमेर सिंह शेखावत जैसे लेखकों ने भी साहित्य में सीकर का गौरव बढ़ाया है। जिनकी ‘मरु मंगल’ केरल विश्वविद्यालय तक के विद्यार्थियों का शेखावाटी की संस्कृति से परिचय करवा रही है। हिंदी सेवकों में पंडित हनुमत प्रसाद पुजारी भी महत्वपूर्ण नाम है। जिन्होंने मास्टर भगवान दास के सहयोग से हिंदी विद्या भवन की नींव रखी। हिंदी बुक डिपो के साथ हिंदी प्रकाशन भी शुरू किया। जिसने माध्यमिक शिक्षा बोर्ड तक की किताबें प्रकाशित की।

युगोस्लाविया में किया देश का प्रतिनिधित्व
चूरू के राजगढ़ के सेउवा गांव निवासी मनीराम शर्मा ने साहित्य संसार में मणि मधुकर नाम से पहचान बनाई। उन्होंने चार उपन्यास, पांच कहानी संग्रह, सात नाटक, एक एकाकी संग्रह, चार कविता संग्रह, ‘सूखे सरोवर का भूगोल’ रिपोर्ताज, बाल उपन्यास सुपारी लाल और बाल काव्य अनारदाना और अकथ, कल्पना जैसी छह पत्रिकाओं का संपादन किया। प्रसिद्ध रचना पगफेरो के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। हिंदी की सेवा करने पर उन्हें प्रेमचंद और कालीदास पुस्कार भी प्राप्त हुए। हिंदी के आकाश में उनकी ऊंचाइयों का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि 1980 में युगोस्लाविया में आयोजित विश्व कविता समारोह में वे भारत के एकमात्र प्रतिनिधि कवि थे, जिनका चयन भारत सांस्कृतिक सम्बद्ध परिषद के चयन मंडल ने किया था।

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