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अब पितृ पक्ष में ही आती है मालपुओं की महक

हलवाई श्योपाल सैनी, बाबूलाल कटारिया ने बताया कि एक दशक पूर्व तक मालपुए, जलेबी व कंगन ही पहली पसंद हुआ करते थे।

सीकरSep 27, 2024 / 02:57 pm

Santosh Trivedi

श्रीमाधोपुर कस्बे में संस्कृति के नजारे ही नहीं लोक संस्कृति के पकवानों की महक भी लुप्त हो चली है। कस्बे में एक दशक पूर्व तक जहां मालपुए, जलेबी व कंगन की दुकानों का बाजार लगता था, जिसमें मालपुओं व जलेबी की महक उड़ा करती थी। जैसे जैसे मावे के मिठाइयों का चलन बढ़ा तब से यह सब गायब से हो गए। अब मालपुओं व जलेबी की इक्का-दुक्का दुकाने रह गई। अब सिर्फ १६ दिन तक चलने वाले पितृपक्ष (श्राद्ध) में ही संस्कृति के नजारे ही नहीं लोक संस्कृति के पकवानों मालपुए, जलेबी व कंगन की महक कस्बे में आती है। हलवाई श्योपाल सैनी, बाबूलाल कटारिया ने बताया कि एक दशक पूर्व तक मालपुए, जलेबी व कंगन ही पहली पसंद हुआ करते थे। सुबह से शाम तक मालपुए व जलेबी की दुकानों पर भीड़ लगी रहती थी, लेकिन अब गिनती के लोग ही मालपुए व जलेबी की मांग करने आते है। सिर्फ श्राद्ध पक्ष में ही मालपुए व कंगन बनते हैं।

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