हलवाई श्योपाल सैनी, बाबूलाल कटारिया ने बताया कि एक दशक पूर्व तक मालपुए, जलेबी व कंगन ही पहली पसंद हुआ करते थे।
श्रीमाधोपुर कस्बे में संस्कृति के नजारे ही नहीं लोक संस्कृति के पकवानों की महक भी लुप्त हो चली है। कस्बे में एक दशक पूर्व तक जहां मालपुए, जलेबी व कंगन की दुकानों का बाजार लगता था, जिसमें मालपुओं व जलेबी की महक उड़ा करती थी। जैसे जैसे मावे के मिठाइयों का चलन बढ़ा तब से यह सब गायब से हो गए। अब मालपुओं व जलेबी की इक्का-दुक्का दुकाने रह गई। अब सिर्फ १६ दिन तक चलने वाले पितृपक्ष (श्राद्ध) में ही संस्कृति के नजारे ही नहीं लोक संस्कृति के पकवानों मालपुए, जलेबी व कंगन की महक कस्बे में आती है। हलवाई श्योपाल सैनी, बाबूलाल कटारिया ने बताया कि एक दशक पूर्व तक मालपुए, जलेबी व कंगन ही पहली पसंद हुआ करते थे। सुबह से शाम तक मालपुए व जलेबी की दुकानों पर भीड़ लगी रहती थी, लेकिन अब गिनती के लोग ही मालपुए व जलेबी की मांग करने आते है। सिर्फ श्राद्ध पक्ष में ही मालपुए व कंगन बनते हैं।
Hindi News / Sikar / अब पितृ पक्ष में ही आती है मालपुओं की महक