शादी उसकी थी, जो आठ साल पहले पति के साथ जिंदगी की रंगत छोड़ चुकी थी। लेकिन, अब उसकी जिंदगी में खुशियों की बहार उसके चेहरे के भावों में थी। जी, हां यह शादी थी सिटी डिस्पेन्सरी नम्बर दो के सामने ओमप्रकाश माथुर के परिवार में 2006 में दिल्ली से बहू बनकर आई कजली की।
जो 2009 में बीमारी से पति पंकज की मौत के बाद से नीरसता के अंधेरों में खोई थी। लेकिन, ससुराल पक्ष ने कजली को बहु की जगह बेटी का रूप देकर उसे घर से बाहर न केवल कामकाज की आजादी दी, बल्कि अच्छा रिश्ता मिलते ही रविवार को उसके फिर से हाथ पीले भी कर दिए। रैवासा पीठाधीश्वर महाराज राघवाचार्य के सानिध्य में वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ असम निवासी दिनेश मोदी के साथ कजली परिणय सूत्र में बंध गई और उसकी जिंदगी को फिर से एक नई दिशा मिल गई।
शादी ने दिए समाज को ये दो संदेश
दिनेश और कजली की शादी समाज के लिए दो संदेश छोड़ गई। पहला बहु और बेटी एक समान का और दूसरा शादी के नाम पर पैसों की बर्बादी रोकने का। ओमप्रकाश और उनके बड़े बेटे अरविंद माथुर का कहना था कि शादी का उद्देश्य कजली का घर फिर से बसाकर उसे खुशियों की सौगात देना था। जिसमें वे किसी तरह का कोई दिखावा या प्रचार नहीं चाहते। लिहाजा समारोह को शहर से सादगी से आयोजित किया गया।
दिनेश और कजली की शादी समाज के लिए दो संदेश छोड़ गई। पहला बहु और बेटी एक समान का और दूसरा शादी के नाम पर पैसों की बर्बादी रोकने का। ओमप्रकाश और उनके बड़े बेटे अरविंद माथुर का कहना था कि शादी का उद्देश्य कजली का घर फिर से बसाकर उसे खुशियों की सौगात देना था। जिसमें वे किसी तरह का कोई दिखावा या प्रचार नहीं चाहते। लिहाजा समारोह को शहर से सादगी से आयोजित किया गया।
सादे समारोह में तीन परिवार के लोग बने साक्षी
कजली और दिनेश की शादी बेहद ही सादगी और सौहार्द के माहौल में हुई। रैवासा की जीणमाता धर्मशाला में हुई शादी में वर- वधु पक्ष के अलावा कजली के पीहर पक्ष के लोग भी शामिल हुए। जिनकी सबकी संख्या मिलाकर करीब 100 थी। शादी में निकासी से लेकर फेरे और विदाई तक की सारी रस्में निभाई गईं, लेकिन साजो- सज्जा या अन्य किसी चीज पर कोई फिजूलखर्ची नहीं की गई।
कजली और दिनेश की शादी बेहद ही सादगी और सौहार्द के माहौल में हुई। रैवासा की जीणमाता धर्मशाला में हुई शादी में वर- वधु पक्ष के अलावा कजली के पीहर पक्ष के लोग भी शामिल हुए। जिनकी सबकी संख्या मिलाकर करीब 100 थी। शादी में निकासी से लेकर फेरे और विदाई तक की सारी रस्में निभाई गईं, लेकिन साजो- सज्जा या अन्य किसी चीज पर कोई फिजूलखर्ची नहीं की गई।
बहू बनकर आई थी, बेटी बनकर जा रही हूं
शादी के दौरान कजली की खुशी उसके चेहरे से साफ झलक रही थी। आंखों में नए सफर की खुशी और अपनों से बिछडऩे के आंसू साफ छलक रहे थे। शादी के बारे में पूछने पर कजली का यही कहना था कि जिस घर में बहु बनकर आई थी, वहां की बेटी बनकर वह एक नई जिंदगी की शुरुआत कर बेहद खुश है। हालांकि परिवार से बिछडऩे का गम भी है।
शादी के दौरान कजली की खुशी उसके चेहरे से साफ झलक रही थी। आंखों में नए सफर की खुशी और अपनों से बिछडऩे के आंसू साफ छलक रहे थे। शादी के बारे में पूछने पर कजली का यही कहना था कि जिस घर में बहु बनकर आई थी, वहां की बेटी बनकर वह एक नई जिंदगी की शुरुआत कर बेहद खुश है। हालांकि परिवार से बिछडऩे का गम भी है।
अविवाहित था दिनेश, खुद रखा शादी का प्रस्ताव
दिनेश और कजली के शादी तक पहुंचने की दास्तां भी अनूठी रही। दोनों रानोली में साथ काम करते हैं। साथ काम करते समय ही दिनेश को कजली के साथ हुए हादसे की जानकारी मिली। जिसे सुनकर ही दिनेश ने कजली से शादी का फैसला कर लिया। अविवाहित होने के बावजूद भी दिनेश ने कजली से शादी का प्रस्ताव उसके ससुराल पक्ष के सामने रखा, जिसमें कजली के पीहर पक्ष के साथ रजामंदी मिलते ही शादी की तारीख मुकम्मल कर दी गई।
दिनेश और कजली के शादी तक पहुंचने की दास्तां भी अनूठी रही। दोनों रानोली में साथ काम करते हैं। साथ काम करते समय ही दिनेश को कजली के साथ हुए हादसे की जानकारी मिली। जिसे सुनकर ही दिनेश ने कजली से शादी का फैसला कर लिया। अविवाहित होने के बावजूद भी दिनेश ने कजली से शादी का प्रस्ताव उसके ससुराल पक्ष के सामने रखा, जिसमें कजली के पीहर पक्ष के साथ रजामंदी मिलते ही शादी की तारीख मुकम्मल कर दी गई।
पहली शादी का सामान भी लौटाया
शादी में यूं तो कोई फिजूलखर्ची नहीं थी। लेकिन, बेटी बनी बहु के लिए ओमप्रकाश के परिवार ने जरुरत का हर सामान कजली के साथ विदा किया। पहले शादी में मिली बाइक से लेकर अन्य समान तक भी सब कजली को साथ दिया गया है।
शादी में यूं तो कोई फिजूलखर्ची नहीं थी। लेकिन, बेटी बनी बहु के लिए ओमप्रकाश के परिवार ने जरुरत का हर सामान कजली के साथ विदा किया। पहले शादी में मिली बाइक से लेकर अन्य समान तक भी सब कजली को साथ दिया गया है।