सीधी लोकसभा ( Sidhi Lok Sabha Seat ) निर्वाचन क्षेत्र मध्य प्रदेश के 29 लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में से एक महत्वपूर्ण सीट है। ये निर्वाचन क्षेत्र पूरे सीधी और सिंगरौली जिलों और शहडोल जिले के कुछ हिस्से को कवर करता है। सीधी लोकसभा सीट की अहम लोकसभा सीटों में से एक है। इस बार की जीत को जोड़कर बीजेपी यहां से अबतक कुल तीन बार से चुनाव जीत चुकी है।
सीधी लोकसभा सीट पर पहला चुनाव 1962 में हुआ था। तब कांग्रेस के आनंद चंद्रा ने जीत हासिल की थी। 1962 से 1979 के उपचुनाव तक ये सीट सामान्य थी, लेकिन परिसीमन के बाद 1980 में ये सीट अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवार के लिए आरक्षित हो गई। परिसीमन के बाद पहले चुनाव में कांग्रेस के मोतीलाल सिंह को जीत मिली थी।
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भाजपा के डॉ. राजेश मिश्रा चुनाव जीते
सीधी लोकसभा सीट से बीजेपी ने डॉ. राजेश मिश्रा को उतारा था, जो अब इस सीट से निर्वाचित हो गए हैं। ये उनका दूसरा चुनाव है। इससे पहले वह बसपा से विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं। डॉ. मिश्रा चुरहट तहसील अंतर्गत अकौरी गांव के निवासी हैं। उनकी उम्र 67 साल है। उन्होंने मेडिकल की शिक्षा इंदौर से प्राप्त कर चिकित्सा के क्षेत्र में रहे हैं। जिला चिकित्सालय में शासकीय चिकित्सक के रूप में भी उन्होंने सेवाएं दीं। उसके बाद खुद का नर्सिंग होम संचालित किया। इनके दो बेटे हैं। बड़े बेटे डॉ. अजय मिश्रा निजी स्कूल का संचालन कर रहे हैं। छोटे बेटे डॉ. अनूप मिश्रा भी पिता के नक्शे कदम पर चलते हुए शासकीय चिकित्सक बतौर जिला अस्पताल में नौकरी करने के बाद त्यागपत्र देकर निजी अस्पताल चला रहे हैं। डॉ. राजेश मिश्रा का सियासी सफर बसपा के साथ शुरू हुआ था। साल 2008 में वे सीधी विधानसभा से बतौर प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतरे थे। उन्हें 13741 मत मिले थे। बीजेपी कांग्रेस के बाद वे तीसरे स्थान पर थे। साल 2009 में तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के हाथों बीजेपी की सदस्यता ली थी। तब से भाजपा में रहकर विधानसभा व लोकसभा में टिकट की मांग करते हुए दावेदारी जता रहे थे। डॉ. राजेश मिश्रा विधानसभा चुनाव 2023 में सीधी सीट से दावेदारी जता रहे थे। टिकट नहीं मिलने पर नाराज होकर सभी पदों से इस्तीफा दे दिया था।
डॉ.राजेश मिश्रा छात्र जीवन से ही राजनीति की शुरूआत कर दी थी। उन्होंने मेडिकल की पढ़ाई के दौरान साल 1979 इंदौर चिकित्सा महाविद्यालय में छात्रसंघ के अध्यक्ष बने थे। इसके बाद देवी अहिल्याबाई विश्वविद्यालय इंदौर में छात्र संघ से चयनित सदस्य का निर्वहन किया। इसके बाद दंत चिकित्सा महाविद्यालय इंदौर की सिल्वर जुबिली में बेस्ट आउट गोइंग स्टूडेंट फार ओवर आल एक्टविटीज का एवार्ड प्राप्त किया था। वह मप्र इंडियन डेंटल एसोसिएशन में कई वर्षों तक उपाध्यक्ष भी रहे। इसके साथ ही द्वितीय वर्ग चिकित्सा अधिकारी संघ में संभागीय सचिव का दायित्व निभाया।
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चुनाव हारे कांग्रेस उम्मीदवार कमलेश्वर पटेल
सीधी सीट पर जीतने वाले बाजपा उम्मीदवार के निकटतम प्रतिद्वंदी रहे कांग्रेस के कमलेश्वर पटेल के पिता स्वर्गीय इंद्रजीत कुमार मंत्री और विधायक रह चुके हैं। कमलेश्वर स्वयं प्रदेश में 18 महीने की कांग्रेस सरकार के दौरान पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री रहे हैं। लेकिन इस बार प्रदेश में चली बाजपा की आंधी में वो सीट जीतने में असफल रहे हैं।सीधी लोकसभा सीट का इतिहास
सीधी लोकसभा सीट शुरुआती दौर में सोशलिस्टों के कब्जे में थी। पहले दो चुनाव में ये शहडोल सीट के साथ जुड़ी रही। इसके बाद कांग्रेस ने यहां अपनी पैठ बनाकर इसे अपना गढ़ बना लिया। साल 1962, 1967, 1980, 1984 और 1991 में यहां से कांग्रेस प्रत्याशी जीते। बीच में कई बार जनसंघ और भाजपा के प्रत्याशी ने भी यहां से जीत हासिल की। लेकिन अब भाजपा इस सीट पर स्थायी कब्जा जमाए बैठी है।कांग्रेस के हाथ से फिसली सीधी लोकसभा सीट बीते कई सालों से भाजपा के पाले में है।कई दिग्गज आजमा चुके हैं ‘हाथ’
इस संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस के कई दिग्गजों ने हाथ आजमाया, लेकिन उन्हें करारी शिकस्त मिली। पूर्व मुख्यमंत्री स्व. अर्जुन सिंह के पुत्र अजय सिंह राहुल और भाई राव रणबहादुर सिंह भी यहां से चुनाव लड़ चुके हैं। वर्ष 2009, वर्ष 2014 और वर्ष 2019 में लगातार तीन चुनाव जीतकर भाजपा हैट्रिक लगा चुकी है। भाजपा का वोट प्रतिशत भी लगातार बढ़ रहा है। जीत के बाद भाइयों में बढ़ा विवाद सीधी जिले के चुरहट के पूर्व राजघराने के सबसे बड़े बेटे व पूर्व मुख्यमंत्री स्व. अर्जुन सिंह के भाई राव रणबहादुर सिंह वर्ष 1971 में निर्दलीय चुनाव मैदान में उतर गए। उनके मैदान में आने से भारतीय जनसंघ और कांग्रेस के नेताओं की चुनौती बढ़ गई। जनता ने राव रणबहादुर सिंह पर भरोसा जताया और लोकसभा में भेजा। बताया जाता है कि राव रणबहादुर सिंह के चुनाव मैदान में उतरने से अर्जुन सिंह नाराज थे। निर्दलीय चुनाव जीतने पर दोनों भाइयों में सियासी मतभेद भी शुरू हो गया। अर्जुन सिंह सीट को आरक्षित कराने के प्रयास में जुट गए। विवाद इतना बढ़ा कि वो भाई के विरुद्ध कोर्ट में गवाही देने तक पहुंच गए थे। साल 1980 में यह सीट एसटी के लिए आरक्षित हो गई। साल 2008 के परिसीमन के बाद सामान्य सीट हो गई। उधर, राव रणबहादुर सिंह वर्ष 1998 में चिन्मय मिशन आश्रम में रहने के लिए आ गए थे और अंत तक यहीं से जुड़े रहे।
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स्टिंग आपरेशन में फंस गए थे भाजपा सांसद
सीधी लोकसभा सीट 12 दिसंबर, 2005 को उस समय पूरे देश में चर्चा में आ गई, जब भाजपा के तत्कालीन सांसद चंद्र प्रताप सिंह पर सदन में सवाल पूछने के बदले 35 हजार रुपये की रिश्वत लेने के आरोप लगे। रिश्वत लेने का स्टिंग आपरेशन भी किया गया था। आरोपों की जांच करने के लिए सदन ने 23 दिसंबर, 2005 को विशेष समिति गठित की। जांच में चंद्र प्रताप सिंह दोषी पाए गए। उनके साथ 11अन्य सांसद भी दोषी पाए गए थे। सांसदों को निष्कासित करने का प्रस्ताव सदन में लाया गया। इसके बाद सांसद को निष्कासित कर दिया गया। इसके बाद वर्ष 2007 में उपचुनाव हुआ। उपचुनाव में कांटे की टक्कर में जीती कांग्रेस वर्ष 2007 के उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में मानिक सिंह चुनाव मैदान में थे। तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह की प्रतिष्ठा दांव पर लगी थी। प्रदेश में भाजपा की सरकार थी। दोनों दलों की प्रतिष्ठा दांव पर थी। भाजपा के तमाम मंत्री और विधायक सीधी में डटे रहे तो कांग्रेस ने भी पूरा जोर लगा दिया। क्षेत्र की जनता ने अर्जुन सिंह के नाम को प्राथमिकता दी और मानिक सिंह जीत गए। मानिक सिंह केवल 1500 वोट से जीते थे। कांटे की टक्कर के इस चुनाव की क्षेत्र में अकसर चर्चा होती है।
विधानसभा वार जानकारी और कुल मतदाता
सीधी संसदीय क्षेत्र में 8 विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं सीधी, चुरहट, धौहनी, सिहावल, देवसर, चितरंगी, सिंगरौली और ब्यौहारी शहडोल कुल मतदाता – 20,18,153 पुरुष मतदाता- 10,46,395 महिला मतदाता- 9,71,744 और थर्ड जेंडर-14 हैं।2019 का जनादेश
-बीजेपी के रीति पाठक को 6,98,342 वोट मिले (जीते)-कांग्रेस के अजय सिंह को 4,11,818 वोट मिले
-बसपा के रामलाल पनिका को 26,540 वोट मिले