वहीं, दूसरी तरफ पालपुर घराने के वारिस गोपाल सिंह ने खुदाई कराने वाले अपसरों पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि, उनकी पुरानी गढ़ी और संपति का मामला न्यायालय में चल रहा है। फिर वन विभाग बिना अनुमति के वहां खुदाई कैसे की। जब खुदाई में खजाना निकला तो तत्काल प्रशासन, पुलिस और उन्हें मौके पर बुलाना चाहिए था। ताकि पता लग पाता कि, खजाने में क्या- क्या और कितनी मात्रा में निकला है। लेकिन, खुदाई टीम के प्रभारी अफसरों की ओर से उन्हें सूचित नहीं किया गया। उन्होंने ये भी कहा कि, इसके बावजूद सूचना मिलने पर जब खुदाई के दूसरे दिन वो स्वयं मौके पर पहुंचे तो कूनों के अधिकारियों ने करीब 5 घंटे तक उन्हें गेट पर ही रोके रखा।
पुलिस और रियासत के वंशजों को सूचना क्यों नहीं दी- आरोप
उनका ये भी आरोप है कि, जिन मजदूरों ने पहले दिन खुदाई कार्य किया, उन्हें और उनके साथ साथ अन्य स्टाफ को भी अधिकारियों द्वारा बदल दिया गया। यही नहीं, जेसीबी मशीन भी बदल दी। मौके पर जहां खजाना निकला, उस स्थान को भी मिट्टी डालकर ऐसा दिखाने की कोशिश की गई, मानों वहां खुदाई हुई ही न हो। उन्होंने आगे ये भी कहा कि, जब इस संबंध में कूनो डीएफओ प्रकाश वर्मा से बात करने की कोशिश की गई पर उन्होंने अपनी व्यस्तता का हवाला देते हुए मिलने का समय ही नहीं दिया। अब सवाल ये है कि, जब खजाना 11 बजे जेसीबी से खुदाई में निकला था तो इसकी सूचना पुलिस प्रशासन और पालपुर रियासत को तुरंत ही तत्काल क्यों नहीं दी गई।
पालपुर विरासत के वंशज ने उठाए सवाल
अब इसे लेकर जिम्मेदारों की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। पालपुर विरासत के वंशज गोपाल सिंह का कहना है कि, जैसे ही मुझे इस खुदाई के बारे में सूचना मिली, मैं स्वयं राष्ट्रीय पार्क पहुंचा। मुझे पिपलबावड़ी गेट पर 5 घंटे रोके रखा। मुझे अंदर जाने की अनुमति ही नहीं दी गई। जैसे तैसे अंदर जाकर देखा तो वहां पूरा खुदाई वाला स्थान समतल किया जा चुका था। मानों जैसे यहां खुदाई हुई ही न हो। मिले खजाने को लेकर उन्होंने सवाल उठाया कि, क्या कोई राजघराना जमीन में सिर्फ 40 सिक्के गढ़ाएगा ? ये सोचने वाली बात है।
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