शिवांश ने बताया कि इंदौर के कॉलेज से बीएससी एग्रीकल्चर के अंतिम वर्ष में अध्ययन कर रहे हंै। पढ़ाई के दौरान मशरूम की खेती के विषय में जाना साथ ही किताबी ज्ञान का जमीनी स्तर पर प्रयोग करते हुए अपने गांव में पुराने कच्चे मकान में 10 बाई 10 के कमरे में इसकी शुरुआत किया जिसके परिणाम भी उत्साहजनक मिल रहे हैं। इसी वर्ष मई 2024 में मशरूम की खेती की शुरुआत की, जिसमें 10 बाय 10 के कमरे में 100 बैग बनाए गए थे। एक-एक बैग में 70 रुपए की लागत आई, जिसमें प्रति बैग ढाई किलो का उत्पादन लिया गया। इस तरह 100 बैग में 250 किलोग्राम मशरूम का उत्पादन हुआ। यह फसल लगातार दो से ढाई महीने निकलती है। 100 बैग तैयार करने में मात्र दस हजार रुपए के आसपास की लागत आई थी।
कीमत दिलाने में प्रचार बना मददगार
शुरुआत में आसपास के क्षेत्र में मशरूम का बाजार मूल्य नहीं मिलने से इसको विक्रय करने में दिक्कतों का सामना करना पड़ा फिर धीरे-धीरे सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों को मशरूम के प्रति जागरूक किया। जिसमें समझाया कि किस तरह इसके सेवन करने से यह मानव जीवन के लिए कितना उपयोगी साबित होता है। लगातार किए प्रचार के बाद सिवनी, छपारा, लखनादौन और जबलपुर में यह मशरूम 300 रुपए किलो के हिसाब से बाजार में बिकने लगा।
इस तरह की कमरे में शुरुआत
मशरूम की खेती में हुई मेहनत और जोखिम के विषय में शिवांश ने बताया कि सर्वप्रथम 15 दिन खाद तैयार करना पड़ता है। उसके बाद उन्होंने इंदौर से लाए बीज का इसमें रोपण किया फिर अगले 15 दिन लगातार पानी दिया। इस तरह 45 दिनों में मशरूम की निकालना प्रारंभ हो गया। इस तरह लगातार प्रतिदिन दो से ढाई महीने इसका उत्पादन जारी रहता है। साथ ही इसका उत्पादन में तापमान की सबसे अहम भूमिका है। कमरे के तापमान को बनाए रखने के लिए एसी का भी उपयोग करना पड़ता है। वहीं मई से जुलाई महीने तक फसल लेने के बाद दूसरी बार अक्टूबर, नवंबर से वर्तमान समय तक लगातार इसका उत्पादन जारी है जो अपने अंतिम पड़ाव में है।
एसडीओ शिवांश से हुए प्रेरित, लगाए मशरूम
इस खेती को देखने जब लखनादौन वन विभाग के एसडीओ शिवांश के गांव पहुंचे तो वे भी बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने भी युवा कृषक की सलाह पर मशरूम की खेती की शुरुआत की। उन्होंने वन विद्यालय लखनादौन में 1100 बैग ओयस्टर मशरूम लगवाए हैं, जिससे प्रतिदिन 40 किलो की पैदावार हो रही है।
युवा सोच ने बनाया आदर्श कृषक
प्रोडक्ट को बेचने में शिवांश को शुरूआत में समस्या आई, लेकिन सोशल मीडिया का सहारा लेकर अब उसे इस खेती से निकलने वाली पैदावार के अच्छे दाम मिल रहे हैं। बहरहाल छपारा जनपद के छोटे से गांव में मशरूम की खेती करने वाले युवा किसान ने परंपरागत खेती से हट कर अलग करने का जोखिम उठाया था, जिसमें उनके परिजनों ने पूरा सहयोग दिया, जिससे धीरे ही सही किंतु उनको इसमें सफलता मिली साथ ही युवाओ के प्रेरणा स्त्रोत भी बन रहे हैं।