उक्त विचार शिव महापुराण के दौरान पंडित प्रदीप मिश्रा ने व्यक्त किए। पंडित मिश्रा ने कहा कि कर्म की गति का भोग हमें भोगना पड़ता है। मिठाई और दवाई में अंतर है, हम मिठाई अपनी मर्जी से सेवन करते है, लेकिन दवाई डॉक्टर की सलाह से लेते है। जन्म लेने के बाद इस शरीर को पाने के बाद दुनिया के सारे दुख, सारी तकलीफे, सारे कष्ट, सारे रोग, बिमारी और दुख हमारे जीवन में जो-जो लिखा होगा वो सब आएगा, लेकिन ऐसा नहीं है कि दुख ही दुख मिलेगा। स्त्री की गोद और पुरुष की जेब कभी खाली नहीं रहनी चाहिए, अगर खाली रह जाए तो दुनिया जीने नहीं देती है, ताने देती है।
शिव महापुराण की कथा कहती है जैसे दिन होता है रात होती है, धूप होती है छांव होती है, ठीक उसी तरह सुख होता है दुख होता है। उस सुख और दुख के बीच में अगर किसी ने भगवान का गुणगान कर लिया उसने भगवान का भजन कर लिया उसकी जिंदगी सार्थक हो जाती है और उसका जीवन आनंदित हो जाता है।
आशुतोष का स्मरण करने से खत्म होजाता है मन का द्वेष
वहीं बीते दिन की कथा में पंडित जी ने बताया था कि सफलता और संतोष दो अलग-अलग चीज हैं। आप अपनी मेहनत से सफलता तो प्राप्त कर सकते है, लेकिन संतोष प्राप्त करने के लिए आपको कठिनाईयों का सामना करना पड़ेगा। भगवान भोले की भक्ति करने के बाद भी आपको सफलता प्राप्त होगी। आशुतोष का अर्थ शीघ्र प्रसन्न होने वाला होता है। देवों के साथ सभी दानवों ने भी भगवान शिव की स्तुति की है, सभी युगों में दानवों ने कभी भगवान शिव से दुश्मनी नहीं की न ही भगवान शिव ने दानवों सहित किसी प्राणी के साथ कभी विपरीत भाव रखा। इसलिए भगवान शिव सभी प्राणियों के लिए प्रिय एवं पूजनीय हैं, इसलिए भगवान शिव आशुतोष कहलाए।
उन्होंने कहा कि अगर कोई व्यक्तिभगवान शिव के आशुतोष स्वरूप का स्मरण कर भगवान शिव की अर्चना करता है तो उस व्यक्ति के सारे मन के द्वेष समाप्त हो जाते हैं। आज जगत के सभी प्राणियों को भी भगवान शिव के आशुतोष स्वरूप का अनुसरण करना चाहिए। जीवन में जब उलझन पैदा हो रही हो, जीवन मिलने के बाद भी उलझनों में वृद्धि हो रही हो तो मनुष्य को भगवान शिव के आशुतोष नाम का उच्चारण एवं स्मरण करना चाहिए।
हर मनुष्य को भगवान को उनके स्वरूप को अपने दिनचर्या में शामिल करना चाहिए। अपने व्यवसाय, दिनचर्या में जब सेवा एवं सहयोग को जोड़ देंगे तो भगवान शिव जो आपको देंगे उसकी कल्पना आप नहीं कर पाएंगे। आज शिव की दयालुता के कारण यह संसार शिवमय हो गया है। अब तो विदेशों में भी भगवान के मंदिरों का तेजी से निर्माण हो रहा है। महाशिवरात्रि के महत्व का वर्णन करते हुए पंडित मिश्रा ने कहा कि आशु का अर्थ होता है शीघ्र और तोश का अर्थ होता है तुष्ट होने वाला, प्रसन्न होने वाला। भगवान अपने भक्तों की प्रार्थना से तुरंत प्रसन्न हो जाते हैं, इसलिए उन्हें आशुतोष कहा जाता है। वे मात्र जल से अभिषेक कर देने से ही तुष्ट हो जाते हैं, अधिक कुछ करने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती।