एशिया का सबसे बड़ा सीवेज उपचार संयंत्र
यह संयत्र 665 करोड़ रुपये की लागत से बनाया जा रहा जो भारत के साथ एशिया का सबसे बड़ा सीवेज उपचार संयंत्र माना जा रहा है। यह 564 एमएलडी क्षमता वाला ओखला में बनाया जा रहा है। इसके साथ ही दो और संयंत्र बनाए जा रहे है जिसमें एक कुंडली में 204 एमएलडी क्षमता के साथ 239 करोड़ रुपये की लागत से तैयार कराया जा रहा है, वहीं दूसरा रिठाला में 182 एमएलडी की क्षमता के साथ 211 करोड़ रुपये की लागत से बन रहा है।
यह संयत्र 665 करोड़ रुपये की लागत से बनाया जा रहा जो भारत के साथ एशिया का सबसे बड़ा सीवेज उपचार संयंत्र माना जा रहा है। यह 564 एमएलडी क्षमता वाला ओखला में बनाया जा रहा है। इसके साथ ही दो और संयंत्र बनाए जा रहे है जिसमें एक कुंडली में 204 एमएलडी क्षमता के साथ 239 करोड़ रुपये की लागत से तैयार कराया जा रहा है, वहीं दूसरा रिठाला में 182 एमएलडी की क्षमता के साथ 211 करोड़ रुपये की लागत से बन रहा है।
3,273 एमएलडी सीवेज उत्पन्न करता है दिल्ली
सरकारी आंकड़ों के हिसाब से दिल्ली सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में से एक है। यहां 3,273 एमएलडी का सीवेज उत्पन्न होता है। जिसमें से 2,340 एमएलडी का उपचार किया जा रहा है। वहीं कम से कम 933 एमएलडी सीवेज को सीधे बिना किसी उपचार के यमुना नदी में छोड़ा जा रहा है जो इसको और अधिक प्रदूषित करता जा रहा है।
सरकारी आंकड़ों के हिसाब से दिल्ली सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में से एक है। यहां 3,273 एमएलडी का सीवेज उत्पन्न होता है। जिसमें से 2,340 एमएलडी का उपचार किया जा रहा है। वहीं कम से कम 933 एमएलडी सीवेज को सीधे बिना किसी उपचार के यमुना नदी में छोड़ा जा रहा है जो इसको और अधिक प्रदूषित करता जा रहा है।
क्या काम करता है सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट
सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट हमारे घरों और बड़ी फैक्ट्रियों से निकलने वाले गंदे पानी को सीधे नदी में मिलने से रोकता है। इसमें दूषित पानी को फिर से उपयोग में लाने के लिए एसटीपी का प्रयोग किया जाता है। पानी को साफ करने के लिए भौतिक, रासायनिक और जैविक विधि का प्रयोग किया जाता है। जिससे दूषित पानी दोबारा उपयोग के लायक बन पाता है।
सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट हमारे घरों और बड़ी फैक्ट्रियों से निकलने वाले गंदे पानी को सीधे नदी में मिलने से रोकता है। इसमें दूषित पानी को फिर से उपयोग में लाने के लिए एसटीपी का प्रयोग किया जाता है। पानी को साफ करने के लिए भौतिक, रासायनिक और जैविक विधि का प्रयोग किया जाता है। जिससे दूषित पानी दोबारा उपयोग के लायक बन पाता है।