डॉल्फिन से फिर से आबाद हो सकता है राष्ट्रीय चंबल घड़ियाल अभयारण्य
वन विभाग से मिली जानकारी के अनुसार आम तौर पर डॉल्फिन अधिक गहराई वाले पानी के क्षेत्र में रहती है। लेकिन डॉल्फिन के बसाव क्षेत्र के आसपास समतल और कम बहाव व गहराई वाला क्षेत्र होना भी आवश्यक है। सवाईमाधोपुर के राष्ट्रीय चंबल घड़ियाल अभयारण्य का पालीघाट और झरेल का बालाजी क्षेत्र इसी प्रकार का है। ऐसे में यदि वन विभाग की ओर से इस दिशा में प्रयास किए जाएं तो सवाईमाधोपुर का राष्ट्रीय चंबल घड़ियाल अभयारण्य क्षेत्र भी डॉल्फिन से एक बार फिर से आबाद हो सकता है।
वन विभाग की ओर से किए जा रहे प्रयास
पालीघाट क्षेत्रीय वनाधिकारी किशन कुमार ने कहा कि राष्ट्रीय चंबल घड़ियाल अभयारण्य में डॉल्फिन के संरक्षण की अपार संभावनाए हैं। इस दिशा में वन विभाग की ओर से भी प्रयास किए जा रहे हैं। वर्तमान में राजस्थान में धौलपुर के राष्ट्रीय चंबल घड़ियाल अभयारण्य में डॉल्फिन हैं। बता दें कि राष्ट्रीय चंबल घड़ियाल अभयारण्य की स्थापना 1978 में हुई थी। यह अभयारण्य 635 वर्ग किमी में फैला हुआ है और तीन राज्यों से होकर गुजरता हैं। यहां 86 डॉल्फिन पाई गई हैं। वहीं, धौलपुर में भी 5 डॉल्फिन हैं।
यूपी सरकार ने शुरू की थी संरक्षण की पहल
पूर्व में डॉल्फिन के सरंक्षण के लिए उत्तरप्रदेश सरकार की ओर से पहल की गई थी। उत्तर प्रदेश वन विभाग की तत्कालीन राष्ट्रीय चंबल सेंचुरी प्रोजेक्ट की उप वन संरक्षक (वन्यजीव) आरुषि मिश्रा ने चंबल सेंचुरी में जल्द ही डॉल्फिन सेंचुरी क्षेत्र भी घोषित करने की कवायद शुरू की थी। राष्ट्रीय जलीय जीव डॉल्फिन के संरक्षण के लिए डॉल्फिन सेंचुरी का एक प्रस्ताव शासन को भेजा गया था। 2012 में उत्तर प्रदेश की नदियों में डॉल्फिन की हुई गणना में डॉल्फिन की संख्या 671 थी। इसमें से 78 चंबल में थी।
2020 को प्रधानमंत्री ने भी थी घोषणा
प्रधानमंत्री ने स्वतंत्रता दिवस 2020 पर दिए गए अपने भाषण में प्रोजेक्ट डॉल्फिन को लॉन्च करने की घोषणा की थी। यह प्रोजेक्ट टाइगर की तर्ज पर होगा। इसने बाघों की आबादी बढ़ाने में मदद की। वहीं राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन की ओर से प्रतिवर्ष 5 अक्टूबर को गंगा डॉल्फिन दिवस के रूप में मनाया जाता है।