किताब में सहाना ने लिखा है, उनके दादा मदार हुसैन खां थे। उनके पूर्वज हिंदू थे। पूर्वज दीनानाथ देव शर्मा ने तपस्या करने के लिए भौतिक संसार त्याग दिया था। दीनानाथ अखंड भारत के कोमिल्ला जिले के शिवपुर (अब बांग्लादेश) के मूल निवासी थे। बाद में त्रिपुरा आ गए।
उन्हें त्रिपुरा राजा से शाही सम्मान भी मिला। बोरो बाबा (अलाउद्दीन खां) ने आत्मकथा में लिखा है कि दीनानाथ देव यहां शांताय नामक पहाड़ी पर एक काली मंदिर में रहने लगे थे। यहां उन्होंने ध्यान और तंत्र विद्या का अभ्यास किया।
कैसे बने मुसलमान
सहाना लिखती हैं, दीनानाथ के बेटे सिराजू ईस्ट इंडिया कंपनी से प्लासी की लड़ाई लड़ रहे थे। तब अंग्रेज परस्त नवाब खिलाफ थे। सिराजू के दल को इस युद्ध में नुकसान पहुंचा। बिखराव के बाद नवाबों की सेना ने उन पर दबाव बनाया। खुद को बचाने के लिए अपनी हिंदू पहचान त्याग दी, शम्स फकीर बन गए। तब से आगे की पीढ़ियां मुस्लिम नामों से जानी जाने लगीं।
बाबा के पोते ने नाम में जोड़ा देव शर्मा
सहाना की तरह अलाउद्दीन खां के पोते आशीष खां ने पूर्वजों की हिंदू पहचान मानकर नाम में देव शर्मा जोड़ा। अपना नाम आशीष खां देव शर्मा लिखते हैं। वे बाबा के शिक्षित इकलौते जीवित शिष्य हैं। अमरीका में रहते हैं।