मामला संज्ञान में आने के बाद पत्रिका ने खबर को प्रमुखता से प्रकाशित किया। इसके बाद से अफरा-तफरी मच गई। प्रबंधन सामने आ कर पक्ष नहीं रखना चाहता है, लेकिन टोलकर्मियों को इस संबंध में दिशा-निर्देश देने की बात की जा रही है। अब किसी भी टोल पर कर्मचारी वाहन चालक से पूछेगा कि विगत टोल पर टैक्स का भुगतान तो नहीं किया गया है। अगर, टैक्स लिया गया है, तो पर्ची नहीं काटी जाएगी। लेकिन, इस पर आसानी से विश्वास नहीं किया जा सकता। ये अवैध वसूली टोल नाका शुरू होने के साथ ही शुरू हो गई थी। पर्ची ऑनलाइन कटती थी, लिहाजा ठेका कंपनी जानकारी न होने की बात से इंकार नही कर सकती। लेकिन, फिलहाल जिम्मेदारी से बचने का प्रयास हो रहा है।
इस पूरे मामले में जिला प्रशासन के अधिकारियों ने चुप्पी साध रखी है। खबर प्रकाशित होने के ४८ घंटे बाद भी किसी अधिकारी ने हकीकत जानना भी उचित नहीं समझा। तहसीलदार, एसडीएम, एडीएम सहित कलेक्टर सहित किसी भी अधिकारी के पास जनहित के मुद्दे के लिए समय नहीं निकला। जबकि, जिले में नियमानुसार काम हो, इसकी मॉनीटरिंग की जिम्मेदारी इन अधिकारियों को है। लोक सेवा के मामले तक में गंभीरता नहीं बरती जा रही है।
टोल वसूली कर रही ठेका कंपनी त्रिरूपति बिल्डकॉन लगातार मनमानी कर रही है। अनुबंध शर्त तक का पालन नहीं कर रही है। अब बाहरी वाहन चालकों से अवैध वसूली का मामला गंभीर है। ऐसे में नियम तोडऩे के कारण ठेका निरस्त हो जाना चाहिए। लेकिन, एमपीआरडीसी व जिला प्रशासन के अधिकारियों की मेहरबानी से सभी नियम विरुद्ध कार्यों पर पर्दा डाला जा रहा है।