जैन मुनि तरुण सागर का जीवन परिचय
मुनि तरुण सागर का बचपन का नाम पवन कुमार जैन है। उनका जन्म दिनांक 26 जून 1967 ग्राम गोहची जिला दमोह मध्य प्रदेश में हुआ था। जन्म स्थली ग्राम गोहची से 2 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम झलौन की शासकीय माध्यमिक शाला में उन्होंने कक्षा ६वीं तक अध्ययन किया। तब उनकी उम्र १३ वर्ष के करीब थी। उनके साथ अध्ययरत चक्रेश जैन,विनोद जैन,अशोक जैन,नन्नू लाल यादव उनके अच्छे मित्रों में थे। अशोक जैन बताते है कि शिक्षा के दौरान स्काउट आदि कार्यक्रम में शिक्षक चतुर्भुज दास के साथ अनेक नगरों व महानगरों में वह पवन जैन के साथ में गए।वह क्षण- जब पवन कुमार तरुण सागर बनने के लिए तैयार हो गए
तरुण सागर के गृहस्थ जीवन के चाचा रिटायर्ड शिक्षक सुंदरलाल जैन बताते है कि दिनांक 8 मार्च 1981 को बालक पवन कुमार जैन(मुनि तरुण सागर) स्कूल से छुट्टी होते ही झलौन गांव में बस स्टैंड चौराहे पर अपने पसंदीदा व्यंजन को खाने के लिए एक मिष्ठान की दुकान पर जलेबी खाने लगते है। उसी दिन आचार्य पुष्पदंत सागर महाराज का ग्राम में आगमन हुआ था। दिगंबर जैन मंदिर झलौन प्रांगण में आचार्य के प्रवचन चल रहे थे। प्रवचन प्रांगण से करीब 500 मीटर से भी अधिक दूरी पर बस स्टैंड चौराहा है। आचार्यश्री के प्रवचन की आवाज लाउडस्पीकर के माध्यम से बालक पवन कुमार की कानों में गूँजी। आचार्य श्री प्रवचन में बोल रहे थे “तुम भी भगवान बन सकते हो”। यह वह क्षण था कि पवन कुमार तरुण सागर बनने के लिए तैयार हो गए थे।त्याग तपस्या से पाया मुनि पद, हुए विख्यात
अब बालक पवन कुमार को भगवान बनने का जुनून सवार हो गया था। आचार्य की शरण में जाकर भगवान बनाने की इच्छा व्यक्त करते है। फिर उन्हें बताया जाता है कि कैसे भगवान बन सकते है। जीवन के उन क्षणों के बाद ब्रह्मचर्य, क्षुल्लक, ऐलक और मुनि दीक्षा कर 3 दशकों की अथक साधना, चिंतन किया। अब दिगंबर जैन मुनि और क्रांतिकारी संत तरुण सागर के रूप में देश-विदेश में सर्वाधिक सुने व पढ़े जाने वाले मुनि बन चुके थे। तरुण सागर महाराज की आंखों में भारत की तस्वीर और तकदीर बदलने वाला सपना ही नहीं वरन पूरी मानवता को बचाने का एक तार्किक व सुनियोजित कार्यक्रम भी मौजूद था।जिसके कारण उन्हें सिर्फ जैन समुदाय ही नहीं अन्य समुदाय के लोग भी उनकी प्रवचनों को सुनने को आते थे।
पहली बार किसी 13 वर्ष के बालक को जैन दीक्षा दी गई
संत परंपरा के इतिहास में तरुण सागर जी का नाम एक क्रांतिकारी संत के रूप में जाना जाता था, क्योंकि भारत के जैन धर्म की 2500 वर्ष भारत के इतिहास में पहली बार किसी 13 वर्ष के बालक को जैन दीक्षा दी गई। पहली बार किसी संत का नाम गिनीज ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड और लिम्का बुक ऑफ रिकॉड्र्स में दर्ज हुआ। पहली बार जैन धर्म की दिगंबर और श्वेतांबर समुदाय को एक मंच पर लाने का काम किया। पहली बार ही किसी संत ने लाल किले से राष्ट्र को संबोधित किया। पहली बार किसी संत ने किसी विधानसभा में प्रवचन दिए थे। पहली बार किसी मुनि ने मुनि की व्याख्या किसी टीवी इंटरव्यू में की थी।तुम अमृत हो, शरीर मृत्यु ।।
तुम शाश्वत हो, शरीर क्षणिक ।।
तुम सदा हो, सदा रहोंगे।।
शरीर अभी हैं, अभी नहीं हो जाएगा।।
तुम चैतन्य हो, शरीर मिट्टी।।