सागर। वर्णी भवन मोराजी में विराजमान मुनिश्री क्षमासागर महाराज के समाधिमरण के बाद निकली पद्मासन पालकी शोभायात्रा में सागर उमड़ पड़ा। शोभायात्रा में बच्चों से लेकर वृद्धो और महिला-पुरूष सहित युवक-युवतियों ने श्रीफल लेकर अपने गुरूवर को विदाई दी। भाग्योदय तीर्थ के समीप एक खेत पर मुनिश्री का विधि विधान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। उल्लेखनीय है कि संत शिरोमणि जैनाचार्य विद्यासागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनिश्री क्षमासागर महाराज का वर्षाकालीन चार्तुमास इस वर्ष पंतनगर स्थित उदासीन आश्रम में संपन्न हुआ था। चार्तुमास के समापन पर मुनिश्री विहार कर वर्णीभवन मोराजी पहुंचे थे। पिछले कुछ वर्षों से अस्वस्थता के बावजूद भी मुनिश्री ने साधना निरंतर जारी रखी। पिछले चार दिनों से गिरते स्वास्थ्य के कारण मुनिश्री अन्न-जल भी ग्रहण नहीं कर सके। शुक्रवार की सुबह 5 बजे के आसपास मुनिश्री ने अंतिम सांस लेते हुये देह को त्याग दिया। मुनिश्री के समाधिमरण की सूचना शहर के साथ-साथ दूर दराज के क्षेत्रों में भी कुछ ही पल भर में पहुंच गई। देखते ही देखते वर्णीभवन मोराजी में समाधिप्राप्त मुनिश्री के दर्शनों के लिए श्रद्धालुओं का तांता लग गया। पालकी शोभायात्रा शुरू होने के पूर्व मुनिश्री भावसागर महाराज ने मुनिश्री क्षमासागर को विदाई दी। सुबह 10 बजे मुनिश्री महासागर तथा आर्यिका मृदुमति माताजी, निर्णयमति माताजी के सानिध्य में पद्मासन मुद्रा में मुनिश्री की पालकी शोभायात्रा शुरू हुई जो विभिन्न मार्गों से होती हुई छोटा करीला स्थित खेत पर पहुंची। जहां पर मुनिश्री महासागर महाराज ने भक्ति का वाचन कर ब्रहचारी धीरज भैया, भरत भैया सहित अन्य की उपस्थिति में मुनिश्री की अंतिम क्रियाएं संपन्न कराईं। समाधिमरण के पूर्व मंत्रोच्चार कराया गया। जैन धर्म के अनुसार धर्मावलंबियों द्वारा समाधिमरण में श्रीफल (नारियल) चढाए गए। शोभायात्रा में सागर विधायक सहित अनेक जनप्रतिनिधि व लोग शामिल थे। शोभायात्रा में मुनिश्री के गृहस्थ जीवन के बड़े भाई डॉ. अरूण सिंघई सहित परिजन चल रहे थे। मुनिश्री क्षमासागर का जीवन परिचय मुनि श्री का जन्म 20 सितबर 1957 सागर के चकराघाट क्षेत्र में हुआ था। उन्होने सागर विश्वविद्यालय से एमटेक की शिक्षा प्राप्त की। उनका गृहस्थ जीवन का नाम सिंघई वीरेन्द्र कुमार था। माता-पिता आशादेवी सिंघई जीवनकुमार जैन के घर जन्मे क्षमा सागर महाराज ने 10 जनवरी 1980 नैनागिरि में क्षुल्लक दीक्षा, 07 नवबर 1980 मुक्तागिरि में ऐलक दीक्षा व 20 अगस्त 1982 को मुनि दीक्षा ली। उन्होने पगडंडी सूरज तक, मुनि क्षमासागर की कविताएं जैसे काव्य संग्रह लिखे।