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पितरों की शांति के लिए करा रहे शिवपुराण, भागवत कथा और गरुड़ पुराण

पितृ पक्ष में कथा का श्रवण करने से पितरों को शांति मिलती है। कथा श्रवण करने वालों के परिवार के लिए पुण्यदायी भी रहती है। श्रद्धा भाव से पितरों के पूजन तर्पण से मानव को सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है। मनुष्य देवच, पितृ एं ऋषि ऋणि होता है, भागवत सुनने से उन्हें इन ऋणों से मुक्ति मिल जाती है।

सागरSep 21, 2024 / 04:56 pm

Rizwan ansari

मनुष्य योनि में आकर जीव को सत्कर्म करना चाहिए : केशव महाराज

मनुष्य योनि में आकर जीव को सत्कर्म करना चाहिए : केशव महाराज

शहर में विभिन्न स्थानों पर हो रहा कथा का आयोजन

सागर. पितृ पक्ष में कथा का श्रवण करने से पितरों को शांति मिलती है। कथा श्रवण करने वालों के परिवार के लिए पुण्यदायी भी रहती है। श्रद्धा भाव से पितरों के पूजन तर्पण से मानव को सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है। मनुष्य देवच, पितृ एं ऋषि ऋणि होता है, भागवत सुनने से उन्हें इन ऋणों से मुक्ति मिल जाती है। यही वजह है कि शहर में विभिन्न स्थानों पर कथाओं का आयोजन किया जा रहा है। पितृपक्ष शुरू होते ही भागवत कथा, शिवपुराण और गरुड़ पुराण शुरू हो गए हैं।
मनुष्य योनि में आकर जीव को सत्कर्म करना चाहिए : केशव महाराज
मकरोनिया राम दरबारमें पितृपक्ष के उपलक्ष्य में चल रही शिव महापुराण कथा में शुक्रवार को कथा व्यास केशव गिरी महाराज ने कहा कि सत्कर्म करने वाले व्यक्ति को देखकर समाज में एक ऊर्जा का संचार होता है। जिसे देखकर समाज को आगे बढऩे की प्रेरणा भी मिलती है। इसलिए सत्कर्म करना ही श्रेष्ठ है। मनुष्य को 84 लाख योनियों को भोगने के बाद यह मनुष्य तन प्राप्त होता है और यह मनुष्य तन ही मोक्ष का साधन कहा गया है। साधन का धाम और मोक्ष का द्वारा यह मनुष्य योनि है। उन्होंने कहा कि मनुष्य योनि में आकर जीव को सत्कर्म करना चाहिए। सत्कर्म करना ही सफलता की पहली सीढ़ी है। क्योंकि जो मनुष्य जैसा कर्म करता है उसके अनुसार ही भाग्य व दुर्भाग्य का निर्माण होता है। उन्होंने कहा कि सौभाग्य का निर्माण हमारे अपने अच्छे एवं बुरे कर्मों के अनुसार होता है। यदि कोई मनुष्य गेहूं बोएगा तो उसे गेहूं की खेती ही काटने को मिलेगी और वही मनुष्य यदि कहीं कांटों को बोएगा तो कांटों को ही प्राप्त करेगा। जो जैसा कर्म करता है उसको उसी कर्म के अनुसार फल प्राप्त होता है। कथा व्यास ने कहा कि मानव जीवन एक बार मिलता है। इसलिए हमें अपने जीवन में दया और सत्कर्म के रास्ते पर चलना चाहिए। मानव धर्म में दया और सत्कर्म ही सबसे बड़ा धर्म है। सभी के प्रति स्नेह रखना ही मानव धर्म है।
संस्कार विहीन जीवन ही धुंधकारी की समस्या को प्रकट करता है : सनत कुमार खंपरिया
सागर. राजघाट रोड स्थित रुद्रेश्वर महादेव मंदिर में चल रही सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा में शुक्रवार को कथा व्यास पंडित सनत कुमार खंपरिया ने कहा कि कथा जीवन के उद्देश्य एवं अपने स्वरूप को समझने के साथ ही सत्य आचरण को धारण करने का संदेश देती है। संस्कार विहीन जीवन ही धुंधकारी की समस्या को प्रकट करता है। जब माता-पिता संस्कारवान होंगे तो परिवार संस्कारवान होगा। बच्चे संस्कारवान होंगे तभी समाज संस्कारवान बनेगा। यह बात पितृपक्ष के उपलक्ष्य में उन्होंने भक्त प्रहलाद की कथा सुनाते हुए बताया कि कैसे हिरण कश्यप ने भक्त प्रह्लाद को मारने का आदेश दिया था। इस दौरान जब आग का भयानक जलवा हुआ, तब भक्त प्रह्लाद ने हरि नाम का सुमरन किया और भगवान श्रीकृष्ण ने नरसिंह अवतार में हिरण कश्यप को मारकर भक्त प्रह्लाद को बचाया। इसके बाद ध्रुव चरित्र का प्रसंग सुनाते हुए बताया कि ध्रुव की साधना, उनके सत्कर्म और ईश्वर के प्रति अटूट श्रद्धा के कारण ही उन्हें वैकुंठ लोक प्राप्त हुआ।

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