उस चुनाव में भी जनता के युमना प्रसाद शास्त्री से वह चुनाव हार गईं थी। इसी चुनाव में बसपा ने भी विमला देवी को प्रत्याशी बनाया था। उस दौरान जिले में पार्टी अपनी पैठ बना रही थी, बसपा को 26 प्रतिशत से अधिक वोट मिले थे। इसके पहले के चुनावों में निर्दलीय या फिर छोटे दलों की ओर से महिलाओं को प्रत्याशी बनाया जाता रहा लेकिन कोई मुकाबले में नहीं रहीं। इस सीट पर कोई महिला प्रत्याशी जीत का स्वाद नहीं चख सकी है।
रीवा-मऊगंज जिले में सभी राष्ट्रीय राजनीतिक दलों के पास महिला नेतृत्व मौजूद है। लंबे समय से सत्ता में काबिज भाजपा में करीब दो दर्जन की संख्या में महिला नेत्रियां हैं जो प्रदेश स्तर पर काम कर रही हैं। इसमें करीब आधा दर्जन महिलाएं लोकसभा टिकट के लिए भी दावेदार थीं। रायशुमारी के दौरान इनके नाम पार्टी नेतृत्व को बताए गए थे लेकिन पुराने चेहरे को ही रिपीट किए जाने की वजह से चर्चा नहीं हुई। ऐसे ही कांग्रेस में भी हैं जो संगठन में प्रदेश पदाधिकारी के साथ ही विधानसभा का चुनाव लड़ती रहीं हैं। कांग्रेस ने महिला उम्मीदवार तो बनाया लेकिन दूसरे दल से आई नेत्री को जिसके चलते असंतोष के स्वर भी फूट रहे हैं।
वर्ष 1952 में पहले सांसद के रूप में कांग्रेस से राजभान सिंह तिवारी चुने गए थे। 1957 और 1962 में शिवदत्त उपाध्याय, 1967 में शंभूनाथ शुक्ला भी कांग्रेस से जीते। वर्ष 1971 में महाराजा मार्तंड सिंह निर्दलीय, 1977 में यमुना प्रसाद शास्त्री जनता पार्टी, 1980 में मार्तंड सिंह निर्दलीय, 1984 में मार्तंड सिंह कांग्रेस, 1989 में यमुना प्रसाद शास्त्री जनता दल, 1991 में भीम सिंह पटेल बसपा, 1996 में बुद्धसेन पटेल बसपा, 1998 में चंद्रमणि त्रिपाठी भाजपा, 1999 में सुंदरलाल तिवारी कांग्रेस, 2004 में चंद्रमणि त्रिपाठी भाजपा, 2009 में देवराज सिंह पटेल बसपा, 2014 में जनार्दन मिश्रा भाजपा एवं वर्ष 2019 में जनार्दन मिश्रा भाजपा की ओर से सांसद चुने गए। उक्त सांसदों में अब तक कोई महिला नहीं चुनी गई है।
लोकसभा का पिछला चुनाव वर्ष 2019 में हुआ। इसमें 23 उम्मीदवार चुनाव मैदान में थे। दो महिला प्रत्याशी रहीं। भारतीय शक्ति चेतना पार्टी की ओर से रीता त्रिपाठी, जिन्हें 3032 वोट ही मिल पाए। सपाक्स से शकुंतला मिश्रा को 3719 वोट मिले थे। इसके अलावा अन्य सभी उम्मीदवार पुरुष थे।