सावन सोमवार व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार किसी शहर में एक साहूकार था जिसके घर में किसी भी चीज की कोई कमी नहीं थी। केवल वह और उसकी पत्नी इस बात से दुखी थे कि उनकी कोई संतान नहीं थी। संतान प्राप्ति की इच्छा से वह हर सोमवार को भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा किया करते थे। साहूकार की पूजा से खुश होकर माता पार्वती ने भगवान भोलेनाथ से उसे पुत्र प्राप्ति का वरदान देने का आग्रह किया, परंतु भोलेनाथ ने कहा कि इनकी भाग्य में संतान सुख नहीं है।
लेकिन माता पार्वती के बार-बार आग्रह करने पर भगवान शिव वरदान देने को तैयार तो हो गए परंतु उन्होंने कहा कि इनके जो भी संतान होगी वह अल्पायु होगी। भोलेनाथ के वरदान से साहूकार के घर एक पुत्र ने जन्म लिया। साहूकार को पता था कि उसका पुत्र अधिक समय तक जीवित नहीं रहेगा।
जब साहूकार का पुत्र 11 वर्ष का हो गया तो उसने उसके मामा के साथ शिक्षा प्राप्ति के लिए काशी भेज दिया। साथ ही जाने से पहले अपने पुत्र से कहा कि रास्ते में वह जहां भी रुके वहां ब्राह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा दे और यज्ञ करे।
साहूकार का पुत्र और मामा जब रास्ते में जा रहे थे तो एक नगर के राजा के बेटी की शादी होने वाली थी परंतु जिस राजकुमार से उसका विवाह होने वाला था वह खाना था और राजा को इस बात का पता नहीं था। तब राजकुमार के पिता ने इस बात का फायदा उठाते हुए अपने काने बेटे की जगह साहूकार के बेटे को दूल्हा बना कर बैठा दिया और उसी से राजकुमारी का विवाह हो गया। परंतु काशी से निकलने का समय आया था साहूकार के पुत्र ने राजकुमारी के दुपट्टे पर सच्चाई लिख दी कि तुम्हारा विवाह तो मुझसे हुआ है लेकिन जिस राजकुमार के साथ तुम ससुराल जाओगी वह काना है। राजकुमारी ने यह बात जानकर काने राजकुमार से अपना विवाह तोड़ दिया।
इसके बाद जब साहूकार का बेटा और मामा काशी पहुंच गए तो वह 16 साल का हो चुका था। 16 साल का होते ही उसकी तबीयत बिगड़ने लगी तथा कुछ दिनों बाद मृत्यु भी हो गई। इस बात से दुखी हुआ मामा रोने लगा। उसी दौरान भगवान शिव और माता पार्वती वहां से गुजर रहे थे। तब शिवजी ने मृतक बच्चे को देखकर कहा कि यह तो उसी साहूकार का बेटा है। यह सुनकर माता पार्वती बहुत निराश हो गईं।
तब वह दोबारा हठ लेकर बैठ गईं कि शिवजी साहूकार के बेटे को पुनः जीवित कर दें। देवी पार्वती के बार-बार ऐसा कहने पर शिवजी ने व्यापारी के पुत्र को दोबारा जिंदा कर दिया। अपनी शिक्षा पूर्ण करने के बाद जब वह मामा के साथ दोबारा अपने शहर जा रहा था तो रास्ते में उसी जगह रुका जहां पर उसका विवाह राजकुमारी से कर दिया गया था।
तब राजा ने साहूकार के पुत्र को पहचानकर और खूब सारा धन देकर अपनी राजकुमारी के साथ उसे विदा कर दिया। जब साहूकार को यह बात पता चली तो वह खुशी से फूला नहीं समाया। उसी रात साहूकार के सपने में भगवान शिव आकर बोले कि, मैंने तुम्हारे सोमवार व्रत करने और व्रत कथा सुनने से प्रसन्न होकर ही यह फल दिया है और तुम्हारी बेटे को दीर्घायु प्रदान की है। इस प्रकार मान्यता है कि सावन सोमवार के दिन इस व्रत कथा को सुनने अथवा पढ़ने से हर इच्छा पूरी होती है।
(डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई सूचनाएं सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। patrika.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ की सलाह ले लें।)