जब भगवान विष्णु ने अपना आठवां अवतार श्रीकृष्ण के रुप में लिया तब कुछ परस्थितियों के कारण श्रीकृष्ण के हाथों शिवजी का धनुष टूट गया। यह घटना उस समय हुई जब कंस ने अक्रूरजी द्वारा श्रीकृष्ण को नंदगांव में मथुरा बुलाकर उनकी हत्या की योजना बनाई थी।
कंस के बुलावे पर श्रीकृष्ण अक्रूरजी के साथ धनुष यज्ञ में शामिल होने के लिए मथुरा आए। कंस से मिलने के पहले श्रीकृष्ण नगर भ्रमण करने चल पड़े। नगर भ्रमण करते हुए श्रीकृष्ण उस मंदिर पहुंच गए जहां यज्ञ का आयोजन किया था। उस ही मंदिर में कंस ने भगवान शिव का धनुष रखा था और इसी धनुष के लिए यज्ञ का आयोजन भी किया था
श्रीकृष्ण ने बालक की तरह उत्सुक होकर इस धनुष को छूने की इच्छा जताई फिर मंदिर के पुजारी और धनुष के रक्षक सैनिकों से कहा कि वह इस धनुष को उठाकर देखना चाहते हैं। कृष्ण की इच्छा सुन कर पहले सभी हंसने लगे कि भला एक बालक इस धनुष को कैसे उठा सकता है, लेकिन श्रीकृष्ण ने खेल-खेल में ही धनुष को उठाकर तोड़ दिया।
कंस ने जब धनुष के टूटने का समाचार सुना तो वह घबरा गया क्योंकि ऐसी भविष्यवाणी थी की जो इस धनुष को उठा लेगा उसके हाथों कंस का वध होगा। मथुरा की जनता में खुशी का माहौल बन गया की कंस को मारने वाला आ गया। इस घटना के अगले ही दिन श्रीकृष्ण ने कंस का वध कर दिया और मथुरा को कंस के अत्याचार से मुक्त करवाया।