गणेशोत्सव के दौरान भगवान गणेश के 12 स्वरूपों की पूजा की जाएगी। कहा जाता है कि इन दिनों में पूजा करने से भगवान गणेश जल्द प्रसन्न होते हैं और सभी तरह की मनोकामनाओं की पूर्ति करते हैं। मान्यता है कि भादो माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को स्नान और उपवास करने से शुभ फल प्राप्त होता है और सौभाग्य की वृद्धि होती है।
मान्यता के अनुसार, भगवान गणेश का जन्म भादो माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मध्याह्न में हुआ था। यही कारण है कि इस दिन भगवान गणेश की पूजा, व्रत और जागरण किया जाता है। इस दौरान श्रद्धालु भगवान गणेश को खुश करने के लिए हर तरह के जतन करते हैं।
कैसे हुआ था भगवान गणेश का जन्म? पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार माता पार्वती अपने शरीर पर हल्दी का उबटन लगाई हुई थीं। जब उन्होंने अपने शरीर से हल्दी का उबटन हटाया तो उससे छोटा सा एक पुतला बना दिया और अपने तपोबल से उसे पुतले में प्राण डाल दिया। इस तरह बाल गणेश का जन्म हुआ।
जन्म के पश्चात माता पार्वती स्नान करने चली गईं और बाल गणेश को द्वार पर बैठा दिया। जाने से पहले माता पार्वती ने बाल गणेश से कहा कि किसी को अंदर नहीं आने देना। इसी बीच भगवान शिव ( Lord Shiva ) वहां पहुंच गए और अंदर जाने लगे लेकिन बाल गणेश ने उनका रास्ता रोक दिया और अंदर जाने से मना कर दिया।
भगवान शिव बार-बार बाल गणेश से अंदर जाने के लिए कह रहे थे, लेकिन वे जाने नहीं दिये। तब भगवान शिव क्रोधित हो गए और त्रिशुल से बाल गणेश का सिर घड़ से अलग कर दिए। इसी बीच माता पार्वती स्नान करके बाहर निकली और द्वार पर पहुंच गईं। बाल गणेश की हालत देखकर रोने लगीं।
रोते हुए माता पार्वती ने भगवान शिव से कहा कि ये आपने क्या कर दिया। आपने अपने की पुत्र का सिर धड़ से अलग कर दिया। इतना सुनते ही शिव जी स्तब्ध हो गए। इसके बाद माता पार्वती ने भगवान शिव को गणेश जी के जन्म की बात बताई। तब भगवान शिव ने एक हाथी का सिर बाल गणेश के धड़ पर लगाकर उसमें प्राण डाल दिया। इस तरह बाल गणेश दोबारा जीवित हुए और गजानन कहलाए।