मासिक दुर्गाष्टमी पूजा विधि (Durgashtami Puja Vidhi)
1. मासिक दुर्गाष्टमी के दिन सुबह जल्दी उठकर दैनिक क्रिया से निवृत्त होने के बाद, स्नान ध्यान करें और लाल रंग के साफ-सुथरे कपड़े पहनें। इसके बाद तांबे के पात्र में लाल रंग का तिलक डालकर सूर्य देवता को अर्ध्य दें।
2. इसके बाद घर की साफ-सफाई करके पूजा स्थान और घर में गंगाजल छिड़कें और उसे शुद्ध करें।
3. लकड़ी का एक साफ पाटा या चौकी लें, फिर उसपर लाल वस्त्र बिछाएं। वहीं गंगाजल छिड़ककर चोकी को शुद्ध कर लें।
1. मासिक दुर्गाष्टमी के दिन सुबह जल्दी उठकर दैनिक क्रिया से निवृत्त होने के बाद, स्नान ध्यान करें और लाल रंग के साफ-सुथरे कपड़े पहनें। इसके बाद तांबे के पात्र में लाल रंग का तिलक डालकर सूर्य देवता को अर्ध्य दें।
2. इसके बाद घर की साफ-सफाई करके पूजा स्थान और घर में गंगाजल छिड़कें और उसे शुद्ध करें।
3. लकड़ी का एक साफ पाटा या चौकी लें, फिर उसपर लाल वस्त्र बिछाएं। वहीं गंगाजल छिड़ककर चोकी को शुद्ध कर लें।
4. इसके बाद चौकी पर मां दुर्गा की प्रतिमा या तस्वीर को स्थापित करें और उनकी पूजा करें।
5. मां को लाल रंग के फूल चढ़ाएं और धूप-दीप जलाएं। इसके साथ ही मां को 16 श्रृंगार का सामान भी चढ़ाएं।
6. फल और मिठाई अर्पित करने के बाद मां दुर्गा की आरती उतारें।
7. इसके बाद मां दुर्गा की ज्योति जलाकर दुर्गा सप्तसती का पाठ करें, सूर्यास्त पर भी दुर्गासप्तशती का पाठ करना चाहिए, इस दिन दुर्गा चलीसा का पाठ भी कर सकते हैं।
8. सप्तसती का पाठ करने के बाद ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चै’ मंत्र का जाप करना चाहिए।
9. फिर माता दुर्गा को चढ़ाए गए 16 श्रृंगार के सामान किसी सुहागन या नवदुर्गा के मंदिर में दे दें। मान्यता है कि ऐसा करने से घर खुशियों से भर जाता है।
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इसलिए खास है दुर्गा अष्टमी आज दुर्गा अष्टमी है, इस दिन माता दुर्गा की विधि विधान से पूजा की जाती है। लेकिन आज का यह पर्व एक और वजह से खास है, आज शुक्रवार है। यह दिन महालक्ष्मी की पूजा और व्रत का भी दिन है, इस तरह दुर्गाष्टमी खास हो गई है। इस दिन पूजा से माता दुर्गा और महालक्ष्मी दोनों की कृपा प्राप्त होती है।
इसलिए खास है दुर्गा अष्टमी आज दुर्गा अष्टमी है, इस दिन माता दुर्गा की विधि विधान से पूजा की जाती है। लेकिन आज का यह पर्व एक और वजह से खास है, आज शुक्रवार है। यह दिन महालक्ष्मी की पूजा और व्रत का भी दिन है, इस तरह दुर्गाष्टमी खास हो गई है। इस दिन पूजा से माता दुर्गा और महालक्ष्मी दोनों की कृपा प्राप्त होती है।
मासिक दुर्गाष्टमी के समय इन बातों का ध्यान रखें
1. घर में सुख समृद्धि के लिए मां की ज्योति आग्नेय कोण में जलाना चाहिए।
2. पूजा करने वाले व्यक्ति का मुंह, पूर्व या उत्तर दिशा में होना चाहिए।
3. पूजा के समय पूजा का सामान दक्षिण पूर्व दिशा में होना चाहिए।
1. घर में सुख समृद्धि के लिए मां की ज्योति आग्नेय कोण में जलाना चाहिए।
2. पूजा करने वाले व्यक्ति का मुंह, पूर्व या उत्तर दिशा में होना चाहिए।
3. पूजा के समय पूजा का सामान दक्षिण पूर्व दिशा में होना चाहिए।
कभी न करें ये गलती
1. पूजा करते समय तुलसी, आंवला, दूर्वा, मदार और आक के फूल नहीं चढ़ाना चाहिए।
2. घर में मां दुर्गा की एक ही फोटो रखनी चाहिए, एक से अधिक फोटो रखना ठीक नहीं माना जाता।
1. पूजा करते समय तुलसी, आंवला, दूर्वा, मदार और आक के फूल नहीं चढ़ाना चाहिए।
2. घर में मां दुर्गा की एक ही फोटो रखनी चाहिए, एक से अधिक फोटो रखना ठीक नहीं माना जाता।
मासिक दुर्गाष्टमी का महत्व
मासिक दुर्गाष्टमी का बड़ा महत्व है, इस दिन शक्ति की आराधना से माता प्रसन्न होकर भक्त के हर दुख दूर करती हैं और सुख, समृद्धि प्रदान करती हैं। इससे धन खूब आता है।
मासिक दुर्गाष्टमी का बड़ा महत्व है, इस दिन शक्ति की आराधना से माता प्रसन्न होकर भक्त के हर दुख दूर करती हैं और सुख, समृद्धि प्रदान करती हैं। इससे धन खूब आता है।
माता दुर्गा आरती (Mata Durga Ki Aarati)
जय अम्बे गौरी मैया, जय मंगल मूर्ति।
तुमको निशिदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी।। टेक ।।
मांग सिंदूर बिराजत, टीको मृगमद को।
उज्ज्वल से दोउ नैना, चंद्रबदन नीको।। जय..।।
कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै।
रक्तपुष्प गल माला, कंठन पर साजै।। जय..।।
जय अम्बे गौरी मैया, जय मंगल मूर्ति।
तुमको निशिदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी।। टेक ।।
मांग सिंदूर बिराजत, टीको मृगमद को।
उज्ज्वल से दोउ नैना, चंद्रबदन नीको।। जय..।।
कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै।
रक्तपुष्प गल माला, कंठन पर साजै।। जय..।।
केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्परधारी।
सुर-नर मुनिजन सेवत, तिनके दुःखहारी ।। जय..।।
कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती।
कोटिक चंद्र दिवाकर, राजत समज्योति।। जय..।।
शुम्भ निशुम्भ बिडारे, महिषासुर घाती।
धूम्र विलोचन नैना, निशिदिन मदमाती।। जय..।।
चौंसठ योगिनि मंगल गावैं, नृत्य करत भैरू।
बाजत ताल मृदंगा, अरू बाजत डमरू।। जय..।।
भुजा चार अति शोभित, खड्ग खप्परधारी।
मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी।। जय…।।
कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती।
श्री मालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योति।। जय..।।
श्री अम्बेजी की आरती, जो कोई नर गावै।
कहत शिवानंद स्वामी, सुख-सम्पत्ति पावै।। जय..।।