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भीष्म अष्टमी पूजा विधिः भीष्म अष्टमी के दिन भीष्म पितामह के सम्मान में एकोदिष्ट श्राद्ध की प्रथा है। यह श्राद्ध वह व्यक्ति करता है जिसके पिता जीवित न हों, परंतु कुछ लोग भीष्म अष्टमी के दिन अनुष्ठान करते हैं। लोग भीष्म पितामह की आत्मा की शांति के लिए पास की नदी में जाते हैं और तर्पण की रस्म पूरी करते हैं। इस रीति से वे पूर्वजों का सम्मान भी करते हैं। कई लोग गंगा में डुबकी लगाते हैं, उबले चावल और तिल चढ़ाते हैं। इस दिन कई लोग उपवास रखते हैं और देवताओं का आशीर्वाद पाने के लिए भीष्म अष्टमी मंत्र का जाप करते हैं। कुरूक्षेत्र में इसको विशेष रूप से मनाया जाता है। लोग भीष्म कुंड में डुबकी लगाते हैं और पूजा करते हैं।
भीष्म अष्टमी पूजा विधिः भीष्म अष्टमी के दिन भीष्म पितामह के सम्मान में एकोदिष्ट श्राद्ध की प्रथा है। यह श्राद्ध वह व्यक्ति करता है जिसके पिता जीवित न हों, परंतु कुछ लोग भीष्म अष्टमी के दिन अनुष्ठान करते हैं। लोग भीष्म पितामह की आत्मा की शांति के लिए पास की नदी में जाते हैं और तर्पण की रस्म पूरी करते हैं। इस रीति से वे पूर्वजों का सम्मान भी करते हैं। कई लोग गंगा में डुबकी लगाते हैं, उबले चावल और तिल चढ़ाते हैं। इस दिन कई लोग उपवास रखते हैं और देवताओं का आशीर्वाद पाने के लिए भीष्म अष्टमी मंत्र का जाप करते हैं। कुरूक्षेत्र में इसको विशेष रूप से मनाया जाता है। लोग भीष्म कुंड में डुबकी लगाते हैं और पूजा करते हैं।
भीष्म अष्टमी तिथिः पंचांग के अनुसार माघ शुक्ल अष्टमी की शुरुआत 28 जनवरी को सुबह 8.43 बजे से हो रही है, जबकि यह तिथि 29 जनवरी सुबह 9.05 बजे संपन्न हो रही है। इस दिन कुरूक्षेत्र में बड़ी संख्या में लोग स्नान ध्यान के बाद श्राद्ध और तर्पण करते हैं।
भीष्म अष्टमी मंत्रः इस दिन लोग वैयाघ्रपद गोत्राय सांकृत्यप्रवराय च। गंगापुत्राय भीष्माय सर्वदा ब्रह्मचारिणे। भीष्मः शान्तनवो वीरः सत्यवादी जितेन्द्रियः। आभिरभिद्रवाप्नोतु पुत्रपौत्रौचितां क्रियाम् मंत्र का जाप भी करते हैं।