श्मशान या कब्रिस्तान का नाम सुनते ही किसी के भी मन में डर घुस जाएगा। इस पर भी अगर उसे रात को इन स्थानों पर जाने या इनके पास से जाने के लिए कहा जाए तो वो बेचारा मर ही जाएगा।
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बहुत से लोग इसे अंधविश्वास मानते हैं, जबकि कुछ लोग इसे एक मनोवैज्ञानिक समस्या मानते हैं। आध्यात्म विज्ञान के जानकारों के अनुसार श्मशान अथवा कब्रिस्तान ऐसे स्थान हैं जो नकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण होते हैं। असल समस्या इसी नकारात्मक ऊर्जा के कारण आती है।
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इन स्थानों पर अपने प्रियजनों का अंतिम संस्कार करने आए लोग दुख और शोक में विलाप करते हैं, जो कि यहां के माहौल को नकारात्मक बना देती है। लंबे समय तक ऐसा होते रहने से यह ऊर्जा प्रचंड मात्रा में इकट्ठा हो जाती है। जिनकी मानसिक शक्ति प्रबल है या जिन लोगों की प्रबल इच्छाशक्ति है, उन पर ऐसी चीजों का असर कम होता है। इसके विपरीत जो लोग कमजोर दिल वाले होते हैं, उन पर ऐसी शक्तियां जल्दी हावी हो जाती हैं।
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इस पर भी अगर कोई व्यक्ति नेगेटिव थिंकिंग रखता है तो इन शक्तियों का उस पर बहुत ज्यादा असर होता है और वो इनके वश में हो जाता है। रात को जबकि दिमाग भी एकाग्र होता है और नकारात्मक शक्तियां भी प्रबल होती है, श्मशान की नकारात्मक शक्तियां जल्दी ही व्यक्ति पर हावी हो जाती है।
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कई बार यह मनोवैज्ञानिक भी हो सकता है और वास्तविक भी। इससे मुक्ति पाने का एकमात्र यही उपाय है कि उस व्यक्ति को जल्दी से जल्दी किसी सकारात्मक ऊर्जा वाले स्थान यथा तीर्थस्थल पर ले जाया जाए या उसे उस माहौल से बाहर निकाला जाए। अगर ऐसा संभव नहीं है तो फिर घर में ही पूजा-पाठ आदि क्रियाओं द्वारा दैवीय ऊर्जा का आव्हान कर नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति पाने का प्रयास किया जाता है।
आम तौर पर ऐसे मामलों में गायत्री मंत्र, दुर्गासप्तशती के मंत्र अथवा हनुमान और भैरव जैसे देवताओं के मंत्र विशेष रूप से कार्य करते हैं। उन्हें किसी भजन-कीर्तन में ले जाया जाए अथवा पूजा-पाठ वाले माहौल में ले जाया जाए तो भी नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति मिल जाती है।
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