धर्म और अध्यात्म

जयंती विशेष 28 मई : महान स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर

हिंदू धर्म को राजनीतिक रूप से संगठित करने वाले दुनिया के पहले क्रांतिकारी “वीर सावरकर”

May 28, 2019 / 12:35 pm

Shyam

जयंती विशेष 28 मई : महान स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर

28 मई 1883 को जन्‍में वीर सावरकर ही वही पहले व्यक्ति थे जिन्होंने ही सबसे पहले 1857 के महान स्‍वतंत्रता संग्राम के इतिहास को लिखकर पूरे ब्रिटिश शासन को चौंका दिया था। उस वक्त देश की आजादी और भारतीय समाज के भीतर हिंदू धर्म में हो रहे तमाम उथल-पुथल के बीच एक शख्‍स ऐसा भी था, जिसने हिंदू धर्म के उस स्‍वरूप को देश की जनता के सामने रखा, जिसे खुद भारत ने नहीं पहचाना था। यही दुनिया का ऐसा पहला शख्‍स था जिसने हिंदू धर्म को राजनीतिक रूप से संगठित करने का प्रयास शुरू किया और हिंदुत्‍व की विचारधारा की नींव रखी। यह विराट मेधा का व्‍यक्‍तित्‍व न केवल एक क्रांतिकारी था, बल्‍कि हिंदू समाज के लिए युगप्रवर्तक की भूमिका में सामने आया।

 

सावरकर भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के बेहद अहम सेनानी और प्रखर राष्ट्रवादी नेता थे। एक स्वाधीनता-संग्रामी के साथ ही सावरकर चिन्तक, लेखक, कवि, ओजस्वी वक्ता और राजनेता भी थे। भारतीय सभ्‍यता के इतिहास में सावरकर एकमात्र ऐसे इतिहासकार भी रहे हैं, जिन्होंने हिन्दू राष्ट्र की संकल्‍पना देश के सामने रखी।

 

वीर सावरकर ने काला पानी (अण्डमान निकोबार ) को एक तीर्थ स्थान के रूप में देखा है। क्योंकि जिनका भी भारत की आज़ादी में महत्व पूर्ण योगदान रहा और जिनसे अंग्रेज डरते थे उनको यातना देने के लिए काला पानी भेज जाता था। 1904 में अभिनव भारत नामक एक क्रान्तिकारी संगठन की स्थापना करने वाले सावरकर ने 10 मई, 1907 को इंडिया हाउस, लन्दन में प्रथम भारतीय स्‍वंत्रता संग्राम 1857 की जयंती मनाई और अंग्रेजों द्वारा इस संग्राम को गदर मानने पर आपत्‍ति दर्ज कराते हुए इसे प्रथम स्‍वंत्रता संग्राम कहा। सावरकर ने यह वह काम किया, जिसे लेकर दुनिया में भारत के उस स्‍वंत्रता संग्राम को बगावत के रूप में देखा गया, लेकिन सावरकर के इस काम से भारत की छवि पूरी दुनिया में बदल गई और दुनिया में यह संदेश गया कि भारतीय जनता ब्रिटिश हुकूमत से आजाद होना चाहती है।

 

सावरकर ता-उम्र हिंदू समाज में जाति-प्रथा से लेकर तमाम कुरुतियों का भी विरोध किया। काला पानी की लंबी सजा से निकलने के बाद सावरकर की मुलाकात 1921 में राष्‍ट्रीय स्‍वयं सेवक संघ के संस्‍थापक हेडगेवार से हुई। बाद में उन्‍हें जब दोबारा जेल हुई तो उन्‍होंने हिंदुत्‍व पर शोध ग्रंथ लिखा। सावरकर ने हिंदू धर्म को राजनीतिक रूप से एक दिशा दी और हिंदुत्‍व के दर्शन को सामने रखा, जो राष्‍ट्रीय स्‍वयं सेवक संघ के संघ दर्शन का भी आधार बना। सावरकर ने पूरे देश को उसी की संस्‍कृति और सभ्‍यता के हिसाब से जीने का एक दर्शन और विचार दिया। खास बात यह है कि उन्‍होंने भौगोलिक, सांस्‍कृतिक सीमाओं को राजनीतिक रूप से एक करने का विचार दिया।

 

भारतीय स्‍वंत्रता संग्राम में अपनी तरह से भूमिका निभाने वाले यह क्रांतिकारी हमेशा अखंड भारत का पक्षधर रहा और अंतिम समय तक भारतीय समाज को जगाने के प्रयास करता रहा। विशेष रूा से हिंदुत्‍व दर्शन, साहित्‍य, राजनीति, कला, संस्‍कृति पर कलम चलाने वाले इस चिंतक का 26 फरवरी 1966 को चिर निद्रा में सदैव के लिए सो गया।

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