सिर्फ भारत ही नहीं अपितु पूरे विश्व में उनके असंख्य अनुयायी हैं। सत्य साईं Satya Sai Baba के बारे में कहा जाता है कि वे भक्तों की विपत्ति के समय उनकी पुकार तत्परता से सुनते थे। सच्चे मन से उन्हें याद करने पर उनकी तस्वीर से अपने आप ही भभूत निकलती है। 84 वर्ष की आयु में 24 अप्रैल 2011 को एक लंबी बीमारी के बाद बाबा ने चिरसमाधि ले ली।
आम आदमी से लेकर राष्ट्रपति तक उनके भक्तों में शामिल रहे हैं, लेकिन पुट्टपर्थी के सत्य साईं बाबा Satya Sai Baba के आध्यात्मिक प्रभाव के साथ ही उनसे विवाद भी जुड़े रहे हैं। भारत में अनेक आध्यात्मिक संत हुए हैं, लेकिन माना जाता है कि सत्य साईं बाबा Satya Sai Baba के नाम और प्रसिद्धि की बराबरी शायद ही कोई कर सके।
वे पेदू वेंकप्पाराजू और मां ईश्वराम्मा की 8वीं संतान थे। जिस क्षण नवजात शिशु के रूप में सत्य साईं Satya Sai Baba ने जन्म लिया था, उस समय घर में रखे वाद्ययंत्र स्वत: ही बजने लगे और एक रहस्यमय सर्प बिस्तर के नीचे से फन निकालकर छाया करता पाया गया।
सत्यनारायण भगवान की पूजा का प्रसाद ग्रहण करने के पश्चात उनका यानि सत्य साईं बाबा Satya Sai Baba जन्म हुआ था अत: उनका बचपन में नाम ‘सत्यनारायण’ रखा गया। बचपन में उनका नाम ‘सत्यनारायण राजू’ था।
बताया जाता है कि एक सामान्य परिवार में 23 नवम्बर 1926 को जन्मे सत्यनारायण राजू ने 20 अक्टूबर 1940 को 14 साल की उम्र में खुद को शिरडी वाले साईं बाबा Sai Baba का अवतार कहा। जब भी वह शिरडी साईं बाबा की बात करते थे तो उन्हें ‘अपना पूर्व शरीर’ कहते थे। उन्होंने शिरडी के साईं बाबा के पुनर्जन्म की धारणा के साथ ही सत्य साईं बाबा के रूप में पूरी दुनिया में ख्याति अर्जित की।
सत्य साईं बाबा Satya Sai Baba का असर पूरी दुनिया में फैला हुआ है और भारत के अलावा विदेशों में भी उनके लाखों भक्त हैं। बाबा के नामचीन भक्तों में प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्री समेत आला दर्जे के नेता, फिल्मी सितारे, उद्योगपति और खिलाड़ी शामिल रहे हैं।
साईं के स्टार भक्तों में सचिन तेंदुलकर, सुनील गावस्कर, अमिताभ बच्चन, रजनीकांत और मुहम्मद रफी शामिल रहे हैं। सत्य साईं Satya Sai Baba के भक्तों की तादात लाखों में है। जो 24 अप्रैल 2011 में उनके निधन के बाद भी कम नहीं हुई। जीवन के आखिरी वक्त में सत्य साईं ने चमत्कार करना बंद कर दिया था।
सत्य साईं satyasai बाबा अपने चमत्कारों के लिए भी प्रसिद्ध रहे और वे हवा में से अनेक चीजें प्रकट कर देते थे और इसके चलते उनके आलोचक उनके खिलाफ प्रचार करते रहे। शुरुआती जीवन में ही सत्यनारायण राजू को ‘असामान्य प्रतिभा’ वाले परोपकारी बालक की संज्ञा दी गयी।
कहा जाता है कि जब वे हाईस्कूल में पढ़ रहे थे तो उन्हें एक विषैले बिच्छू ने काट लिया और वे कोमा में चले गए। जब वे कोमा से उठे तो उनका व्यवहार विचित्र-सा हो गया था।
उन्होंने खाना-पीना सब बंद कर दिया और सिर्फ पुराने श्लोक और मंत्रों का उच्चारण करते रहते थे। उन्होंने मात्र 8 वर्ष की अल्प आयु से ही सुंदर भजनों की रचना शुरू की थी।
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सत्य साईं बाबा के अनुयायियों ने 1944 में पुट्टपर्थी में एक छोटा मंदिर बनवाया और उनके 25वें जन्मदिन पर 1950 में उन्हीं के द्वारा पुट्टपर्थी में ‘प्रशांति निलयम’ आश्रम की स्थापना की गई। सत्य साईं satyasai बाबा ने अपने जीवन काल में बहुत-सी शिक्षण संस्थाओं, अस्पतालों व अन्य मानवसेवा के कार्यों के निर्माण में अपना योगदान दिया।
: प्रशांति निलयम में बाबा का विश्वस्तरीय अस्पताल और रिसर्च सेंटर करीब 200 एकड़ में फैला हुआ है। पुट्टपर्ती में स्थित इस अस्पताल में 220 बिस्तरों में निःशुल्क सर्जिकल और मेडिकल केयर की सुविधाएं उपलब्ध हैं। श्री सत्य साईं इंस्टीट्यूट ऑफ हायर मेडिकल साइंस बेंगलुरू में 333 बिस्तर गरीबों के लिए बनाए गए हैं।
: आंध्र प्रदेश में 20 वी सदी के वक्त बहोत बुरा अकाल पड़ा था तब भगवान श्री सत्यसाई बाबाजी ने लगभग 750 गांवो के लिए पानी की व्यवस्था की थी।
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सत्य सांई बाबा के अमूल्य विचार : inspirational quotes of Sathya Sai Baba
– देना सीखो, लेना नहीं। सेवा करना सीखो, राज्य नहीं।
– दिन का आरंभ प्रेम से करो। प्रेम से दिन व्यतीत करो। प्रेम से ही दिन को भर दो। प्रेम से दिन का समापन करो। यही प्रभु की ओर का मार्ग है।
– यदि धन की हानि हो तो कोई हानि नहीं हुई। यदि स्वास्थ्य की हानि हो तो कुछ हानि हुई। यदि चरित्र की हानि हुई तो समझो सब कुछ ही क्षीण हो गया।
– सभी से प्रेम करो। सभी की सेवा करो।
– ये तीन बातें सर्वदा स्मरण रखो- संसार पर भरोसा ना करो। प्रभु को ना भूलो। मृत्यु से ना डरो।
– सहायता सर्वदा करो। दुःख कभी मत दो।
– कर्तव्य ही भगवान है तथा कर्म ही पूजा है। तिनके सा कर्म भी भगवान के चरणों में डाला फूल है।
– तुम मेरी ओर एक पग लो, मैं तुम्हारी ओर सौ पग लूंगा।
– अहंकार लेने और भूलने में जीता है। प्रेम देने तथा क्षमा करने में जीता है।
– प्रेम रहित कर्तव्य निंदनीय है। प्रेम सहित कर्तव्य वांछनीय है। कर्तव्य रहित प्रेम दिव्य है।
– शिक्षा का मंतव्य धनार्जन नहीं हो सकता। अच्छे मूल्यों का विकास ही शिक्षा का एकमात्र मंतव्य हो सकता है।
– समय से पहले आरंभ करो। धीरे चलो। सुरक्षित पहुंचों।
– उतावलापन व्यर्थता देता है। व्यर्थता चिंता देती है। इसलिए उतावलेपन में मत रहो।
– धन आता और जाता है। नैतिकता आती है और बढ़ती है।
– तुम एक नहीं तीन प्राणी हो- एक जो तुम सोचते हो तुम हो, दूसरा जो दूसरे सोचते हैं तुम हो, तीसरा जो तुम यथार्थ में हो।