क्या है यज्ञोपवीत (जनेऊ)
मान्यता के अनुसार सूत से बने जनेऊ के धागे ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक होते हैं। इसे देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण या फिर सत्व, रज और तम के साथ तीन आश्रमों का भी प्रतीक माना जाता है। हिंदू धर्म में इसके बगैर विवाह का संस्कार नहीं होता है।
क्यों बदला जाता है जनेऊ
धर्म ग्रंथों और गुरुदेव श्रीश्री रविशंकर के अनुसार हर व्यक्ति के कंधे पर मुख्य रूप से तीन जिम्मेदारी या ऋण होता है, माता-पिता के प्रति जिम्मेदारी, समाज के प्रति जिम्मेदारी और ज्ञान के प्रति जिम्मेदारी। यज्ञोपवीत (जनेऊ) हमें माता-पिता, समाज और गुरु के प्रति हमारी जिम्मेदारियों की याद दिलाता है। इसीलिए सूत के बने जनेऊ को तीन बार लपेटकर धारण करते हैं। जो हमें शरीर शुद्धि, मन शुद्धि और अपनी वाणी शुद्धि की ओर प्रेरित करता है।
इसी जनेऊ को सावन पूर्णिमा पर श्रवण नक्षत्र में संकल्प के साथ बदला जाता (श्रावणी उपाकर्म ) है। मान्यता है कि विशेष पूजा कर जनेऊ बदलने से साल भर में जाने अनजाने हुए पाप का प्रायश्चित होता है लाइफ में पॉजिटिविटी बनी रहती है। जनेऊ बदलते समय यह प्रार्थना की जाती है कि मुझे शक्ति प्रदान हो कि ‘मैं जो भी कर्म करूं वे कुशल और श्रुत हों’। मैं जो भी काम करूं, जिम्मेदारी से करूं। ऐसा करने से सभी लक्ष्य पूरे होते हैं। इस दिन नए जनेऊ के साथ नया संकल्प लिया जाता है। पुराने दिनों में महिलाओं को भी ये धागा पहनना होता था। ये केवल एक जाति या किसी और जाति तक ही सीमित नहीं था। इसे हर व्यक्ति पहनता था।
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धर्म ग्रंथों के अनुसार श्रावणी पूर्णिमा पर नदी के तट पर पंचगव्य (गाय के दूध, दही, घी, गोबर, गोमूत्र और पवित्र कुशा) से स्नान करना चाहिए। इसके बाद ऋषि पूजन, सूर्योपस्थान और यज्ञोपवीत पूजन करने के बाद नया यज्ञोपवीत (जनेऊ) धारण करना चाहिए। इस संस्कार से व्यक्ति का दूसरा जन्म हुआ माना जाता है। इसके बाद यज्ञ किया जाता है, जिसमें ऋग्वेद के विशेष मंत्रों से आहुतियां दी जाती हैं। प्राचीन काल में इस प्रकिया के बाद ही नए बटुकों की शिक्षा आरंभ की जाती थी। आज भी गुरुकुलों में इस परंपरा का पालन किया जाता है।
धर्म ग्रंथों के अनुसार श्रावणी पूर्णिमा पर नदी के तट पर पंचगव्य (गाय के दूध, दही, घी, गोबर, गोमूत्र और पवित्र कुशा) से स्नान करना चाहिए। इसके बाद ऋषि पूजन, सूर्योपस्थान और यज्ञोपवीत पूजन करने के बाद नया यज्ञोपवीत (जनेऊ) धारण करना चाहिए। इस संस्कार से व्यक्ति का दूसरा जन्म हुआ माना जाता है। इसके बाद यज्ञ किया जाता है, जिसमें ऋग्वेद के विशेष मंत्रों से आहुतियां दी जाती हैं। प्राचीन काल में इस प्रकिया के बाद ही नए बटुकों की शिक्षा आरंभ की जाती थी। आज भी गुरुकुलों में इस परंपरा का पालन किया जाता है।
जनेऊ पहनने के फायदे
1. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार जनेऊ पहनने से बुरे सपने नहीं आते।
2. जनेऊ पहनने वाला व्यक्ति सफाई के नियमों से बंधा रहता है। मान्यता है कि पवित्रता बनाए रखने के लिए इसे कान में लपेटते हैं तो दिमाग की नसें एक्टिव हो जाती हैं। याददाश्त तेज होती है।
3. इससे पहनने से व्यक्ति के पास बुरी शक्तियां नहीं आती और व्यक्ति का मन बुरे काम में नहीं लगता।
1. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार जनेऊ पहनने से बुरे सपने नहीं आते।
2. जनेऊ पहनने वाला व्यक्ति सफाई के नियमों से बंधा रहता है। मान्यता है कि पवित्रता बनाए रखने के लिए इसे कान में लपेटते हैं तो दिमाग की नसें एक्टिव हो जाती हैं। याददाश्त तेज होती है।
3. इससे पहनने से व्यक्ति के पास बुरी शक्तियां नहीं आती और व्यक्ति का मन बुरे काम में नहीं लगता।
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जनेऊ बदलने की विधि
1. रक्षाबंधन के दिन किसी नदी में स्नान करें या घर में किसी पवित्र नदी के जल से स्नान करें।
2. पूजन की सामग्री के साथ यज्ञोपवीत को पलाश के पत्ते पर रखकर धो लें।
3. फिर मंत्र पढ़ते हुए चावल, फूल आदि यज्ञोपवीत पर छोड़ें।
जनेऊ बदलने की विधि
1. रक्षाबंधन के दिन किसी नदी में स्नान करें या घर में किसी पवित्र नदी के जल से स्नान करें।
2. पूजन की सामग्री के साथ यज्ञोपवीत को पलाश के पत्ते पर रखकर धो लें।
3. फिर मंत्र पढ़ते हुए चावल, फूल आदि यज्ञोपवीत पर छोड़ें।
ये मंत्र पढ़ते जाएं
प्रथमतंतो ऊंकार आवाह्यामि
द्वितीयतंतो ऊंअग्नि आवाह्यामि
तृतीयतंतो ऊंसर्पानावाह्यामि
चतुर्थतंतो ऊंसोममावाह्यामि
पंचमतंतो ऊंपितृनावाह्यामि
षष्ठतंतो ऊंप्रजापतिमावाह्यमि
सप्ततंतो ऊंअनिलमावाह्यामि
अष्टमतंतो ऊंसूर्यमावाह्यामि
नवमतंतो ऊंविश्वानिदेवनावाह्यामि
प्रथम ग्रंथो ऊंब्रह्मणे नमः ब्रह्मणमावाह्यमि
द्वितीय ग्रंथो ऊंविष्णवे नमः विष्णुमावाह्यामि
तृतीय ग्रंथो ऊंरुद्रमावाह्यामि
4. इसके बाद तंतु का चंदन आदि से पूजन करें।
5. इसके बाद जनेऊ को दस बार गायत्रीमंत्र पढ़कर अभिमंत्रित कर लें।
6. इसके बाद जल हाथ में लेकर संकल्प लेकर गायत्री मंत्र पढ़कर जनेऊ पहनें और आचमन करें।
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विनियोगः ऊं यज्ञोपवीतमिति मंत्रस्य परमेष्ठी ऋषिः, लिङ्गोक्ता देवताः त्रिष्टुछंदः यज्ञोपवितधारणे विनियोगः
नए यज्ञोपवीत को धारण करने के बाद पुराने यज्ञोपवीत को सिर पर से कंठी जैसा बनाकर पीठ की तरफ से निकाल दें और जल में बहा दें।
विनियोगः ऊं यज्ञोपवीतमिति मंत्रस्य परमेष्ठी ऋषिः, लिङ्गोक्ता देवताः त्रिष्टुछंदः यज्ञोपवितधारणे विनियोगः
नए यज्ञोपवीत को धारण करने के बाद पुराने यज्ञोपवीत को सिर पर से कंठी जैसा बनाकर पीठ की तरफ से निकाल दें और जल में बहा दें।
जनेऊ पहनने का मंत्र
ॐ यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं, प्रजापतेयर्त्सहजं पुरस्तात्। आयुष्यमग्र्यं प्रतिमुञ्च शुभ्रं, यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः।। जनेऊ उतारने का मंत्र
एतावद्दिन पर्यन्तं ब्रह्म त्वं धारितं मया। जीर्णत्वात्वत्परित्यागो गच्छ सूत्र यथा सुखम्।।
यह भी जानें-
यज्ञोपवीत कब बदलें: जानकारों के अनुसार, सावन पूर्णिमा के अलावा यदि यज्ञोपवीत सरककर बाएं हाथ से नीचे आ जाए, गिर जाय, टूट जाय और शौचादि के समय कान में लपेटना भूल जाय और अश्पृश्य हो जाय तब बदल देना चाहिए। इसके अलावा चार महीने पुराने यज्ञोपवीत को भी बदल देना चाहिए। वहीं जननाशौच, मरणाशौच, श्राद्ध, यज्ञ, चंद्रग्रहण, सूर्य ग्रहण समाप्त होने पर नया यज्ञोपवीत पहनना चाहिए।
ॐ यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं, प्रजापतेयर्त्सहजं पुरस्तात्। आयुष्यमग्र्यं प्रतिमुञ्च शुभ्रं, यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः।। जनेऊ उतारने का मंत्र
एतावद्दिन पर्यन्तं ब्रह्म त्वं धारितं मया। जीर्णत्वात्वत्परित्यागो गच्छ सूत्र यथा सुखम्।।
यह भी जानें-
यज्ञोपवीत कब बदलें: जानकारों के अनुसार, सावन पूर्णिमा के अलावा यदि यज्ञोपवीत सरककर बाएं हाथ से नीचे आ जाए, गिर जाय, टूट जाय और शौचादि के समय कान में लपेटना भूल जाय और अश्पृश्य हो जाय तब बदल देना चाहिए। इसके अलावा चार महीने पुराने यज्ञोपवीत को भी बदल देना चाहिए। वहीं जननाशौच, मरणाशौच, श्राद्ध, यज्ञ, चंद्रग्रहण, सूर्य ग्रहण समाप्त होने पर नया यज्ञोपवीत पहनना चाहिए।
कौन पहने जनेऊ
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार गृहस्थ और वानप्रस्थ वाले व्यक्ति को दो यज्ञोपवीत और ब्रह्मचारी को एक यज्ञोपवीत पहनना चाहिए।