धर्म और अध्यात्म

विचार मंथन : ये जो कान है, केवल दुनियां की बातों को सुनने के लिए है, गुरु की बातों को तो सिर्फ दिल से सुना जाता है- संत कबीर

daily thought vichar manthan : अभी तो तू बहरा है, पहले अपने बहरेपन को ठीक कर, कबीर की उलटबांसी
 

Aug 21, 2019 / 05:41 pm

Shyam

विचार मंथन : ये जो कान है, केवल दुनियां की बातों को सुनने के लिए है, गुरु की बातों को सिर्फ तो दिल से सुना जाता है- संत कबीर

कबीर की यह उलटबांसी

बाबा कबीर के एक शिष्य थे- शेख रसूल। साधना करने की प्रगाढ़ चाहत लिए हुए वे कबीर बाबा के पास आए। उनकी चाहत थी कि बाबा उन्हें मंत्र दें। जप की कोई विधि बताएं। अक्कड़- फक्कड़ कबीर के निराले जीवन की विधियां भी निराली थी। उन्होंने शेख रसूल को देखा फिर हंसे और हंसते हुए उन्होंने कहा- देख मैं तुझे मंत्र तो दूंगा, पर तब जब तू सुनने लायक हो जाएगा। अभी तो तू बहरा है, पहले अपने बहरेपन को ठीक कर। अपनी उलटबासियों के लिए विख्यात कबीर की यह उलटबांसी रसूल को समझ में न आयी। क्योंकि उनके कान तो ठीक थे। उन्हें सुनायी भी सही देता है।

 

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गुरु की बातों को दिल से सुना जाता है

समझने के फेर में पड़े शेख रसूल को बाबा कबीर ने चेताया, अरे भाई ये जो कान है, वे तो दुनियां की बातों को सुनने के लिए हैं। गुरु की बातों को तो सिर्फ दिल से सुना जाता है। दिल कहे और दिल सुने। ऐसा हो तो गुरु और शिष्य के बीच संवाद पनपता है। बात रसूल को समझ में आ गयी। उसी क्षण से उन्होंने कानों की सुनी पर मन की हटाकर दिल की गहराइयों में प्रवेश करने की तैयारी करने लगे। गुरु के लिए उफनता प्रेम, सच्ची श्रद्धा, वे ही मेरा उद्धार करेंगे, यह वे ही एक मात्र आशा उनकी चेतना की गहराइयों में सघन होने लगी। इस सघनता को लिए वह जीवन के उथलेपन से गहरेपन में प्रविष्ट होने लगे।

 

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सद्गुरु के प्रति अथाह प्रेम

दिन गुजरे, रातें बीतीं। पहले तो सांसारिक कोलाहल ने उनकी राह रोकी। सतही पथरीलापन उनकी राहों में आड़े आया, पर श्रद्धा उनका सम्बल थी, उनके हृदय में आशा का प्रदीप था। सद्गुरु के प्रति अथाह प्रेम उनका पाथेय था। शेख रसूल अपनी गहराइयों में उतरते गए। उन्हें अचरज तब हुआ, जब उन्होंने पाया कि अन्तस की गहराइयों में न तो कोलाहल का अस्तित्व है और न पथरीली ठोकरों का। वहाँ तो बस पवित्र जीवन संगीत प्रवाहित है। यही गहराइयों में उन्होंने अपने सद्गुरु बाबा कबीर की मुस्कराती छबि देखी।

 

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सद्गुरु की प्रेममयी परावाणी

इस अन्तरदर्शन ने उन्हें जीवन की सार्थकता दे दी। उन्होंने अपने सद्गुरु की प्रेममयी परावाणी को अपने हृदय में सुना- बेटा! जो अपने गुरु के स्वर को हृदय के संगीत में पहचान लेता है, वही सच्चा शिष्य है। इस घटना के बाद शेख रसूल कबीर के पास काफी दिनों तक नहीं आए। जब किसी ने उन्हें यह बात कही, तो वे जोर से हंस पड़े। उनकी इस हंसी में गुरु की कृपा, और शिष्य साधना का सम्मिलित संगीत था। इस स्वर माधुर्य की स्मृति कैसे बनी रहे? इसकी चर्चा, इसका मनन उन्हें जीवन संगीत का नया बोध देगा।

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