विचार मंथन : जो सूरज की तरह जलेगा वही सूरज की तरह चमकेगा भी- डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम
यदि आधुनिक मानव अपनी कुशाग्रता, तीव्रता, कुशलता और विकास का घमंड करता है तो उसे यह भी स्मरण रखना चाहिए कि समय की इतनी बरबादी पहले कभी नहीं की गयी। कठोर एकाग्रता वाले कार्यों से वह दूर भागता है। विद्यार्थी-समुदाय कठिन और गम्भीर विषयों से भागते हैं। यह भी आलस्य-जन्य विकार का एक रूप है। वे श्रम कम करते हैं, विश्राम और मनोरंजन अधिक चाहते हैं। स्कूल-कालेज में पांच घंटे रहेंगे तो उसकी चर्चा सर्वत्र करते फिरेंगे, किन्तु उन्नीस घंटे जो समय नष्ट करेंगे, उसका कहीं जिक्र तक न करेंगे। यह जीवन का अपव्यय है।
व्यापारियों को लीजिये। बड़े-बड़े शहरों के उन दुकानदारों को छोड़ दीजिये, जो वास्तव में व्यस्त हैं। अधिकांश व्यापारी बैठे रहते हैं और चाहें तो सोकर समय नष्ट करने के स्थान पर कोई पुस्तक पढ़ सकते हैं और ज्ञान-वर्धन कर सकते हैं, रात्रि-स्कूलों में सम्मिलित हो सकते हैं, मन्दिरों में पूजन-भजन के लिए जा सकते हैं, सत्संग-स्वाध्याय कर सकते हैं। प्राइवेट परीक्षाओं में बैठ सकते हैं। निरर्थक कार्यों-जैसे व्यर्थ की गपशप, मित्रों के साथ इधर-उधर घूमना-फिरना, सिनेमा, अधिक सोना, देर से जागना, हाथ-पर-हाथ धरे बैठे रहना- से बच सकते हैं।
दिन-रात के चौबीस घंटे रोज बीतते हैं, आगे भी बीतते जायेंगे। असंख्य व्यक्तियों के जीवन बीतते जाते हैं। यदि हम मन में दृढ़तापूर्वक यह ठान लें कि हमें अपने एक-एक दिन, समय के हर पल से सबसे अधिक लाभ उठाना है, प्रत्येक क्षण का सर्वाधिक सुन्दर तरीके से उपयोग करना है तो कई गुना लाभ उठा सकते हैं।
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